दिल्ली का दम घोंटता प्रदूषण बना चुनौती
दिल्ली में वायु प्रदूषण एक गंभीर समस्या के रूप में उभरा है। देश की राजधानी, जो अपनी सांस्कृतिक धरोहर, राजनीतिक गतिविधियों और वाणिज्यिक केंद्र के लिए प्रसिद्ध है, अब वायु गुणवत्ता के खराब होने के कारण विश्व स्तर पर चर्चित है। हर साल सर्दियों में दिल्ली का आसमान एक धुंध के आवरण से ढक जाता है, जिससे न केवल दृश्यता प्रभावित होती है, बल्कि लोगों के स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव पड़ता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दिल्ली दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक है, जहां वायु प्रदूषण का स्तर सुरक्षित सीमा से कई गुना अधिक हो चुका है।
दिल्ली में वायु प्रदूषण के बढ़ने के कई प्रमुख कारण हैं। जिसमें पहला है, वाहनों का बढ़ता उत्सर्जन। दिल्ली की सड़कों पर प्रतिदिन लाखों वाहन चलते हैं। ये वाहन न केवल यातायात को धीमा करते हैं बल्कि भारी मात्रा में प्रदूषक कण भी हवा में छोड़ते हैं। पैट्रोल और डीज़ल वाहनों से उत्सर्जित नाइट्रोजन ऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड जैसे गैसें वायुमंडल में घुलकर प्रदूषण के स्तर को और बढ़ा देती हैं। दिल्ली में कुल प्रदूषण का 40 प्रतिशत हिस्सा वाहन उत्सर्जन से आता है। दूसरा, निर्माण गतिविधियां और धूल कण। दिल्ली में चल रही निर्माण गतिविधियां, सड़क निर्माण, भवन निर्माण और अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स वायु प्रदूषण में भारी योगदान करते हैं। इनमें से अधिकांश निर्माण कार्य बिना पर्याप्त सुरक्षा उपायों के होते हैं, जिससे धूल और सूक्ष्म कण हवा में मिलते हैं और सांस की समस्याएं उत्पन्न करते हैं।
तीसरा कचरा जलाना। हर साल सर्दियों के दौरान, दिल्ली के आसपास के क्षेत्रों में फसलों के अवशेष जलाने की घटनाएं बढ़ जाती हैं। यह पराली जलाना पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में प्रमुख रूप से होता है, जिसका प्रभाव दिल्ली की वायु गुणवत्ता पर पड़ता है। पराली जलाने से निकले धुएं के कारण दिल्ली की हवा में पी.एम. 2.5 और पी.एम. 10 जैसे कणों की मात्रा बढ़ जाती है। चौथी, घरेलू और औद्योगिक उत्सर्जन। दिल्ली में छोटी और बड़ी औद्योगिक इकाइयों की बड़ी संख्या है, जो कोयला, तेल और गैस का उपयोग करती हैं। इन उद्योगों से उत्सर्जित धुआं और विषैले कण प्रदूषण में इजाफा करते हैं। इसके अलावा घरों में खाना पकाने के लिए लकड़ी और कोयले का जलाया जाना भी एक प्रमुख समस्या है।
दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण के कारण कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। इसका स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। दिल्ली में वायु प्रदूषण के कारण सांस संबंधी समस्याएं, जैसे अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और अन्य फेफड़ों की बीमारियां बढ़ रही हैं। इंडियन काउंसिल ऑफ मैडीकल रिसर्च (आईसीएमआर) के अनुसार दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण के कारण यहां के निवासियों की औसत जीवन प्रत्याशा में 6.8 साल की कमी आई है। बच्चों और बुजुर्गों पर वायु प्रदूषण का अधिक प्रभाव पड़ता है, जिससे उनमें हृदय रोग, फेफड़े के कैंसर और अन्य गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ गया है। साथ ही पर्यावरण पर भी प्रभाव दिखने लगा है।
दिल्ली में पेड़-पौधों पर भी प्रदूषण का नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है जो बागवानी और कृषि उत्पादकता को कम कर रहा है। दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण के कारण स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च बढ़ा है। बीमारियों के उपचार और अस्पताल में भर्ती होने की संख्या में वृद्धि देखी गई है। पर्यटन उद्योग पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ा है, क्योंकि सर्दियों के दौरान धुंध के कारण पर्यटक कम संख्या में आते हैं, जिससे अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है। दिल्ली में प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कई प्रयास किए गए हैं। इनमें से कुछ प्रमुख कदम हैं। पहला, ऑड-ईवन योजना को लागू किया गया था। दिल्ली सरकार ने वाहनों के उत्सर्जन को कम करने के लिए ऑड-ईवन योजना लागू की थी। जिसे बाद में बंद कर दिया गया था। दूसरा, ग्रीन पट्टी निर्माण: दिल्ली में हरित पट्टी (ग्रीन बफर ज़ोन) बनाने का प्रयास किया जा रहा है, ताकि प्रदूषण के प्रभाव को कम किया जा सके। इसमें पेड़-पौधों की अधिकतम मात्रा में रोपण किया जा रहा है। तीसरा, फसलों के अवशेष जलाने पर प्रतिबंध लगाया गया है। पंजाब और हरियाणा के किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है कि वे फसल अवशेषों को जलाने के बजाय उन्हें नष्ट करने के अन्य तरीकों का उपयोग करें। सरकार सब्सिडी देकर किसानों को बायोडिग्रेडेबल मशीनें उपलब्ध करा रही है। चौथा, स्वच्छ ईंधन की ओर रुझान भी किया जा रहा है। दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार दोनों ने स्वच्छ ईंधन, जैसे सीएनजी और इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा दिया है। पैट्रोल और डीज़ल वाहनों के स्थान पर इलेक्ट्रिक बसों की संख्या बढ़ाने के लिए नई नीतियां बनाई जा रही हैं। प्रदूषण नियंत्रण के लिए संभावित समाधान निकालना सरकार के लिए टेढ़ी खीर बनती जा रही है। क्योंकि लगातार प्रयास के बावजूद सफलता नहीं मिली है। कई कदम उठाए जा चुके हैं, फिर भी दिल्ली में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए और भी अधिक ठोस प्रयासों की आवश्यकता है। सामाधन के लिए सरकार को कुछ बातों पर ध्यान देना होगा। जैसे कि पहला, स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों का उपयोग पर बल दिया जाना चाहिए। सौर और पवन ऊर्जा जैसे स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों का उपयोग बढ़ाया जाना चाहिए। घरों, उद्योगों और सरकारी इमारतों में सौर पैनलों का अधिकतम उपयोग किया जा सकता है, जिससे प्रदूषणकारी ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता कम हो।
दूसराएसार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा जाए। दिल्ली में मेट्रो और बस सेवाओं का विस्तार करना चाहिए ताकि लोग अपने निजी वाहनों का कम से कम उपयोग करें। इससे यातायात की भीड़ कम होगी और वायु प्रदूषण में भी कमी आएगी। तीसराए निर्माण गतिविधियों में सुधार करने की जरूरत है। निर्माण स्थलों पर धूल को नियंत्रित करने के लिए पानी का छिड़काव और धूल कणों को कम करने के लिए कड़े मानक लागू किए जाने चाहिए। इसके लिए सरकारी नीतियों का सख्ती से पालन करना आवश्यक है।
चौथे, इसके लिए जन जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए। प्रदूषण के प्रभाव और उसके समाधान के प्रति लोगों को जागरूक करना आवश्यक है। स्कूलों, कॉलेजों और कार्यस्थलों पर जागरूकता अभियान चलाकर उन्हें पर्यावरण-संवेदनशील बनाने की दिशा में प्रेरित किया जा सकता है। 5वीं, हवा की गुणवत्ता की निगरानी को सुदृढ ढंग से लागू किया जाए। दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में हवा की गुणवत्ता की निगरानी के लिए अत्याधुनिक उपकरण लगाए जाने चाहिए। इससे प्रदूषण के स्तर को मापने और आवश्यक कदम उठाने में मदद मिलेगी।
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