विधानसभा चुनावों के संकेत

विगत कई मास से देश में महाराष्ट्र, झारखंड के विधानसभा चुनावों तथा भिन्न-भिन्न राज्यों में होने वाले उप-चुनावों की चर्चा होती आ रही थी। अब इन चुनावों के परिणाम सामने आ गए हैं। महाराष्ट्र में भाजपा के नेतृत्व वाले महायुति गठबंधन ने बड़ी जीत प्राप्त की है और कांग्रेस के नेतृत्व वाला महाविकास अघाड़ी गठबंधन बुरी तरह से पिछड़ गया है। इस राज्य में कांग्रेस को खास तौर पर नमोशीजनक हार का सामना करना पड़ा है। भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन की जीत बेहद प्रभावशाली एवं आश्चर्यजनक रही है। दूसरी ओर झारखंड में कांग्रेस के नेतृत्व वाले ‘इंडिया’ गठबंधन जिसमें हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाला झारखंड मुक्ति मोर्चा मुख्य पक्ष था, बड़ी जीत हासिल करके एक बार फिर सरकार बनाने में सफल हुआ है। जहां तक अलग-अलग राज्यों में सम्पन्न हुए विधानसभा उप-चुनावों का संबंध है, उनमें पंजाब के 4 विधानसभा क्षेत्रों में हुए उप-चुनावों में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी ने 3 सीटों पर जीत हासिल की है, जबकि कांग्रेस सिर्फ एक सीट पर ही जीत हासिल कर सकी है। पंजाब की ये 4 सीटें इन क्षेत्रों के विधायकों द्वारा लोकसभा के चुनाव जीत जाने के कारण खाली हुई थीं। ये उप-चुनाव पंजाब की प्रमुख क्षेत्रीय पार्टी शिरोमणि अकाली दल (ब) द्वारा न लड़े जाने के कारण मुख्य मुकाबला कांग्रेस, आम आदमी पार्टी तथा भाजपा के बीच ही रह गया था, क्योंकि आम आदमी पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार का अभी अढ़ाई वर्षों का कार्यकाल शेष पड़ा है। इसलिए इन उप-चुनावों में आम आदमी पार्टी को सत्तारूढ़ पार्टी होने तथा उसका कार्यकाल शेष होने का लाभ मिला दिखाई देता है। इस तरह के भी संकेत मिल रहे हैं कि अकाली दल द्वारा चुनाव न लड़ने के कारण उसके अधिकतर वोट भी आम आदमी पार्टी के पक्ष में पड़े हैं। नि:संदेह इस चुनाव परिणाम से आम आदमी पार्टी के नेतृत्व एवं काडर के हौसले और बढ़ेंगे।
उत्तर प्रदेश में भाजपा को 9 में से 7 सीटें प्राप्त हुई हैं तथा समाजवादी पार्टी को सिर्फ 2 सीटों पर सन्तोष करना पड़ा है। पश्चिम बंगाल में ममता बैनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस 6 की 6 सीटें जीतने में सफल हुई है। उसकी यह जीत इसलिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि कुछ मास पूर्व कोलकाता के एक सरकारी अस्पताल में एक प्रशिक्षक डाक्टर की दुष्कर्म के बाद उसकी हत्या का मामला बहुत गर्माया रहा था। भाजपा ने इसका राजनीतिक लाभ उठाने के लिए पूरा ज़ोर लगा दिया था, परन्तु इसके बावजूद वहां तृणमूल कांग्रेस की जीत कुछ आश्चर्यजनक प्रतीत होती है। राजस्थान विधानसभा के उप-चुनावों में भाजपा ने 5 सीटें जीती हैं। कर्नाटक में कांग्रेस 3 सीटें जीतने में सफल हुई है। बिहार में भी भाजपा 2 सीटें जीतने में सफल हुई है। केरल की वायनाड लोकसभा सीट से प्रियंका गांधी भारी बहुमत लेकर सफल हो गई हैं। लोकसभा का यह उप-चुनाव भी देश में काफी दिलचस्प विषय बना हुआ था, क्योंकि लोकसभा के पिछले चुनावों में राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश के रायबरेली एवं केरल में वायनाड दोनों सीटों से चुनाव लड़ा था तथा दोनों सीटों पर वह विजयी रहे थे, परन्तु बाद में उन्होंने वायनाड की सीट खाली कर दी थी। इसी कारण इस सीट पर उप-चुनाव हुए हैं। प्रियंका गांधी का लोकसभा में पहुंचना, जहां कांग्रेस के लिए अच्छी खबर है, वहीं इसके साथ भाजपा की लोकसभा में कुछ चुनौतियां ज़रूर बढ़ सकती हैं। 
यदि महाराष्ट्र एवं झारखंड के चुनावों का कुछ विश्लेषण करें तो यह बात सामने आती है कि भिन्न-भिन्न सत्तारूढ़ पार्टियों द्वारा लोगों के लिए जो मुफ्त की योजनाएं घोषित की जाती हैं, उनका मतदाताओं पर अब गहन प्रभाव पड़ता है। झारखंड में ‘मईया सम्मान योजना’ जिसके तहत महिलाओं के खाते में सीधे पैसे डाले गए थे तथा लोगों के बिजली के बिल माफ किए गए थे, ने झारखंड मुक्ति मोर्चा को चुनाव जिताने में बड़ी भूमिका अदा की है। चाहे भाजपा ने वहां बंगलादेशी घुसपैठियों का मुद्दा ज़ोर-शोर से उठाया था तथा ‘कटेंगे तो बटेंगे’ का नारा भी पूरे ज़ोर से लगाया था परन्तु झारखंड में भाजपा की यह चुनाव रणनीति ज्यादा सफल हुई दिखाई नहीं दे रही। महाराष्ट्र में भी ‘लाडली बहना योजना’ जिसके तहत महिलाओं के खाते में सीधे पैसे डाले गये थे, ने अपना रंग दिखाया है। इसके अतिरिक्त विभिन्न वर्गों को जो अन्य लाभ दिए गए थे, उनसे भी भाजपा के नेतृत्व वाले महायुति गठबंधन को चुनाव जीतने में बड़ी सफलता मिली है। महाराष्ट्र में भाजपा की हिन्दू ध्रुवीकरण की रणनीति ने भी अपना काम किया है।
विधानसभा चुनावों में प्रभावी रहे उपरोक्त कारणों के अतिरिक्त एक और बड़ा कारण यह भी सामने आया है कि भाजपा की चुनाव व्यवस्था हमेशा की तरह एक बार फिर कांग्रेस से कहीं बेहतर रही है। पिछले 10 वर्ष से केन्द्र में तथा ज्यादातर विभिन्न राज्यों में भाजपा सत्तारूढ़ बनती आ रही है। काग्रेस भाजपा की चुनाव व्यवस्था का मुकाबला करने में आज तक भी बुरी तरह पिछड़ती दिखाई देती है। महाराष्ट्र में कांग्रेस की बुरी तरह हुई हार पार्टी के लिए एक बार पुन: बड़ी चुनौती बनकर सामने आई है। यदि कांग्रेस ने देश में प्रभावशाली राजनीतिक पार्टी के रूप में काम करना है तथा भिन्न-भिन्न राज्यों में भी  स्वयं को राजनीतिक तौर पर प्रासंगिक रखना है, तो उसे अपनी चुनावी रणनीति में तथा अपने संगठनात्मक ढांचे में बड़े बदलाव करने पड़ेंगे, नहीं तो यह देश की बड़ी एवं पुरानी पार्टी राजनीतिक तौर पर आगामी समय में और भी कमज़ोर हो सकती है। 

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