इंडिया’ गठबंधन में दरारें
इसी वर्ष भाजपा तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार ने अपनी तीसरी पारी शुरू की है। भारत में लगातार तीसरी बार श्री नरेन्द्र मोदी का प्रधानमंत्री बनना, जहां अहम घटनाक्रम है, वहीं इससे उनके अभी तक भी बने हुए प्रभाव की पुष्टि होती है। अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर भी उनका प्रभाव माना जाने लगा है। भारत की आवाज़ में वज़न दिखाई देता है। पिछले लोकसभा चुनावों में हालात को देखते हुए चिंतित हुए विपक्षी दलों ने ‘इंडिया’ गठबंधन के नाम पर चुनाव लड़े थे। यह गठबंधन वर्ष 2022 में अस्तित्व में आया था। बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने इसका दायित्व लिया था। पटना में जून, 2023 में हुई इस संबंध में बैठक में 15 दलों ने भाग लिया था। नितीश कुमार ने इस बैठक की अध्यक्षता की थी। उसके बाद अगले ही मास कर्नाटक राज्य के बैंग्लुरु शहर में इस संबंध में हुई बैठक की अध्यक्षता सोनिया गांधी ने की थी तथा विपक्षी दलों की संख्या दो दर्जन से बढ़ गई थी। उससे अगले मास ही अगस्त में मुम्बई में हुई बैठक में शिव सेना जिस के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे थे, ने इस बैठक की व्यवस्था की थी, तथा 2023 के सितम्बर मास में नई दिल्ली में हुई ‘इंडिया’ गठबंधन की बैठक में लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए सीटों के विभाजन तथा इकट्ठे रैलियां करने का कार्यक्रम बनाया गया था।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को इस गठबंधन का चेयरमैन घोषित किया गया था, परन्तु उसके शीघ्र बाद इस गठबंधन में दरारें पड़नी शुरू हो गई थीं। इसकी शुरुआत करने वाले नेता नितीश कुमार ने भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के साथ पुन: समझौता कर लिया था। लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए ‘इंडिया’ गठबंधन की ओर से होने वाली बैठकों में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के अतिरिक्त राहुल गांधी, राष्ट्रीय जनता दल के वरिष्ठ नेता लालू प्रसाद यादव, तेजस्वी यादव, समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव, शिव सेना के नेता उद्धव ठाकरे, शरद पवार, एम.के. स्टालिन, ममता बैनर्जी तथा वामपंथी पार्टी की ओर से सीताराम येचुरी तथा डी. राजा शामिल होते रहे थे। एक समय तो इस ‘इंडिया’ गठबंधन में 37 दल शामिल हो गये थे परन्तु लोकसभा चुनावों के दौरान ही इस गठबंधन में शामिल राजनीतिक दलों में सीटों के विभाजन को लेकर झगड़ा होने लगा था। ममता सहित कई अन्य वरिष्ठ नेताओं ने अपने दम पर ही चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी थी, परन्तु उत्तर प्रदेश तथा बिहार में कुछ हद तक यह गठबंधन बना रहा था।
इन यत्नों का परिणाम यह निकला कि भाजपा अपने दम पर पिछली बार की भांति इस बार लोकसभा में बहुमत तो न प्राप्त कर सकी परन्तु नितीश कुमार के जनता दल, चंद्र बाबू नायडू के नेतृत्व वाली तेलुगू देशम पार्टी तथा कुछ अन्य पार्टियों के साथ मिल कर वह केन्द्र में तीसरी बार सरकार बनाने में ज़रूर सफल हो गई। मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बन गये। ‘इंडिया’ गठबंधन का नेतृत्व कांग्रेस करती रही थी। आज भी खड़गे इसके चेयरमैन तथा राहुल गांधी लोकसभा में विपक्ष के नेता हैं, परन्तु राहुल गांधी की कार्यशैली से गठबंधन के ज्यादातर नेता सन्तुष्ट नहीं हैं। लोकसभा और इसके बाद हुए विधानसभा के चुनावों में विफल कारगुज़ारी के कारण कांग्रेसी कमज़ोर स्थिति में आ गए हैं। हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनावों में जहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की बढ़त रही, वहीं कांग्रेस और अन्य पार्टियों के हिस्से निराशा ही आई है, परन्तु पश्चिम बंगाल में ममता ने ज़रूर अब तक अपनी राजनीतिक पकड़ मज़बूत बनाये रखी है।
आज भी राहुल गांधी जिस तरह राजनीतिक मंच पर विचरण कर रहे हैं और जिस तरह के मुद्दों को ज़रूरत से ज्यादा उछाल रहे हैं, इस कारण ज्यादातर विपक्षी दल उनसे सन्तुष्ट नहीं प्रतीत होते। इन हालात के दृष्टिगत ही राहुल गांधी एवं कांग्रेस के विरुद्ध गठबंधन के भागीदारों में असन्तोष बढ़ता जा रहा है। विगत दिवस इसके ढांचे में बड़ी दरारें पड़ रही हैं। शरद पवार, अखिलेश यादव, लालू प्रसाद यादव तथा शिव सेना के संजय राउत जैसे नेताओं ने गठबंधन की कमान ममता बैनर्जी को सौंपने की मांग उठाई है। लालू प्रसाद ने तो यहां तक कह दिया है कि ममता को गठबंधन की कमान सम्भाल लेनी चाहिए। इस पर सिर्फ कांग्रेस का ही अधिकार नहीं है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार ने भी ममता को योग्य नेता बताते हुए उनका समर्थन किया है। चाहे कांग्रेस के कैम्प की ओर से इस बात के प्रति सकारात्मक समर्थन नहीं दिया गया, परन्तु फिर भी आगामी दिनों में इस मामले और भी गर्माने की उम्मीद की जा रही है। इस कारण यदि यह गठबंधन कमज़ोर होता है तो इसका बड़ा लाभ भाजपा को मिलेगा। अपनी अधिक मज़बूत हुई स्थिति में भाजपा अपने सैद्धांतिक एजेंडे को पूरा करने के लिए और भी उत्साहित हुई दिखाई देगी।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द