ऊर्जा स्रोतों का उचित उपयोग और संरक्षण बेहद ज़रूरी 

आज के लिए विशेष

प्रति वर्ष 14 दिसम्बर को भारत सरकार के विद्युत मंत्रालय द्वारा देश भर में ऊर्जा संरक्षण दिवस मनाया जाता है। वैसे तो क्योंकि यह सरकारी आयोजन है और जैसा कि अनुभव है कि धन और समय के व्यय के अतिरिक्त कुछ हासिल नहीं होता फिर भी पाठकों के लिए इस महत्वपूर्ण विषय की जानकारी आवश्यक है। 
ऊर्जा के स्रोत 
प्रकृति ने ऊर्जा के स्रोतों की उपलब्धता सृष्टि निर्माण से पहले ही कर दी थी। सबसे पहले सूर्य आता है जो सुबह सवेरे समस्त पृथ्वी को प्रकाश और ऊर्जावान बनाने के लिए निकल पडता है। अब उसके रास्ते में तो कुछ होता नहीं तो वह एक सौ पचास मिलियन किलोमीटर की दूरी से संसार के विभिन्न भागों को अपनी बनाई तालिका के अनुसार प्रकाशित करता रहता है। एक सेकेंड में तीन लाख किलोमीटर की गति से पृथ्वी तक पहुंचने के बाद लगभग तीन चौथाई प्रकाश वापिस वायुमंडल में पहुंच जाता है और जो रह जाता है वह प्राणियों, वनस्पतियों, जीव-जंतुओं और सभी प्रकार के ऊर्जा संसाधनों को जीवंत बनाये रखता है। ज़रा सोचिए जब सूर्य की एक चौथाई ऊर्जा से हम गर्मी के मारे बेचैन हो जाते हैं तो अगर कहीं थोड़ी सी भी और तपिश होती तो क्या होता?
मनुष्य चाहे अपनी कितनी ही डींग हांके, सच्चाई यह है कि प्रकृति ने ही ऊर्जा स्रोत बनाये हैं और वे नष्ट नहीं होने वाले हैं। इंसान बस इतना कर सकता है कि उनका उपयोग अपनी बुद्धि और विज्ञान की सहायता से कर सके। उदाहरण के लिए अणु शक्ति से बिजली बन सकती है तो एटम बम भी। कोयले से रसोई में भोजन बनाने से लेकर भाप इंजन, थर्मल प्लांट और उद्योग चल सकते हैं तो इसका गलत इस्तेमाल करने से निकले धुएं से वायु प्रदूषण भी होता है। प्राकृतिक गैस और तेल से खाना बनाने तथा अन्य कार्यों जैसे वाहन चलाने, उद्योग संचालन और व्यापार बढ़ाने का काम हो सकता है तो इनसे जीवन के लिए खतरा भी पैदा किया जा सकता है। 
वायु शरीर में प्राण फूंक सकती है तो यह प्रलय भी ला सकती है। इसी तरह जल का तांडव नृत्य देखा जा सकता है तो इसी से बिजली बनाने, सिंचाई करने और जीवन बचाने का काम करता है। जब ज़मीन से कच्चा तेल निकलता है तो रंग काला होता है लेकिन जब उसे रिफाइड कर पेट्रोल, डीज़ल में बदला जाता है तो वह सोने से भी अधिक मूल्यवान हो जाता है।
वैज्ञानिकों ने सूर्य से प्राप्त ऊर्जा का आकार और उपयोग परिवर्तित कर सौर ऊर्जा को नियंत्रित करने के लिए संयंत्रों का विकास किया। एक तरह से धूप को एक बड़े से विभिन्न धातुओं से बने बर्तन में भरकर अब उन जगहों को रौशन किया जा सकता है जहां बर्फ पड़ने और सर्द मौसम के कारण लोग सिहरते रहते हैं और अकाल मृत्यु का ग्रास बनते हैं। सूर्य और पवन से आज औद्योगिक उत्पादन हो रहा है, पर्यावरण का संरक्षण और वातावरण को सहने योग्य बनाया जा रहा है। मौसम के बेरहम होने पर अंकुश लगाया जा सकता है। गर्मी और ठंड के थपेड़ों से मुक्ति मिलना अब कोई कठिन कार्य नहीं रहा। 
मानव की लापरवाही 
मनुष्य निजी हितों के कारण प्राकृतिक ऊर्जा स्रोतों से खिलवाड़ करने में कसर नहीं छोड़ता। एक उदाहरणय, सूर्य की गर्मी हम तक पहुंचने से पहले प्रकृति ने जंगलों और विभिन्न पेड़-पौधों और वनस्पतियों की दीवार खड़ी की। हम उसे गिराने में लग गए और वन विनाश कर बैठे। पहाड़ दरकने लगे, भारी शिलाखंड नदियों के बहने के बीच रुकावट बन गए। हम सूखे, बाढ़ तथा अपनी ही बनाई मुसीबतों से घिर गए। विनाश और जान माल की भीषण हानि। 
पवन हो या पानी, बेरोकटोक अपना विकराल तथा प्रचंड रूप दिखाते रहते हैं। हालांकि आज हमारे पास अपनी ही बनाई टेक्नोलॉजी हैं, जिनसे मिसाल के लिए भवन निर्माण आसानी और तेज़ी से किया जा सकता है। सभी तरह के मौसमों का मुकाबला करने योग्य बनाया जा सकता है, लेकिन दुर्भाग्य यह कि निहित स्वार्थों के चलते उनका सुलभ होना इतना कठिन और महंगा है कि बंदा पुराने ढर्रे पर हो चलने को मजबूर है। दूर क्यों जायें, यही देख लीजिए कि सौर ऊर्जा का इस्तेमाल इतना खर्चीला है कि परम्परागत बिजली का इस्तेमाल करना ही सही लगता है। इको फ्रैंडली गाड़ियों की बातें बहुत ज़ोरशोर से होती हैं लेकिन बहकावे में आकर खरीदने की बारी आती है तो उसकी भारी कीमत चुकाने और सही इंफ्रास्ट्रक्चर न होने से लगता है कि घर में सफेद हाथी लाकर खड़ा कर दिया। 
वास्तविकता यह है कि निजी स्वार्थ के लिए कुछेक लोग ऊर्जा के सभी स्रोतों पर एकाधिकार का कोई अवसर हाथ से जाने नहीं देते। जब तक इनके चंगुल से निकालने के लिए कोई पहल नहीं होगी तब तक हमारा भला नहीं हो सकता, चाहे कितनी भी शान शौकत से ऊर्जा संरक्षण दिवस मनाया जाए। 
प्राकृतिक ऊर्जा के जितने भी स्रोत हैं उन्हें धनाढ्यों, कुछ औद्योगिक घरानों और व्यक्तिगत हाथों में जाने से रोकने का काम कोई भी सरकार नहीं करना चाहती। कहने को सरकार की नीतियां और नियम कानून हैं लेकिन उनका उल्लंघन स्वयं सरकार ही करती है। उदाहरण के लिए वायु और जल प्रदूषण न होने देने के लिए सख्त कानून हैं लेकिन फिर भी जनता का सांस लेना दूभर और कई इलाकों में तो दम तक घुटने की घटनाएं हो रही हैं। नदियों में ज़हरीले रसायन निर्बाध गति से डाले जाते हैं लेकिन किसी की हिम्मत नहीं होती कि इसे बंद कर सके। 
इसी तरह क्लीन ऊर्जा की आपूर्ति करने के दावे बार-बार किए जाते हैं लेकिन हकीकत क्या है, यह किसी से छिपा नहीं है। गिने-चुने लोगों के हाथों में प्रकृति द्वारा बिना भेदभाव और बिल्कुल मुफ्त दिए गए संसाधनों पर नियंत्रण है। उदाहरण के रूप में तमिलनाडु, उड़ीसा के तटों पर फैली रेत में एटॉमिक एनर्जी उत्पन्न करने वाली विशाल संपदा है, लेकिन उसका सौदा विदेशों में तस्करी करने के लिए हुआ और किसी को खबर न हो, यह विश्वास नहीं होता। उल्लेखनीय है कि इस तत्व से बिजली बनाकर सैंकड़ों वर्षों तक पूरे देश को प्रकाशित रखा जा सकता था। अब यह भंडार इतना कम है कि हमारी एटॉमिक एनर्जी की आवश्यकताएं भी मुश्किल से पूरी हो पाती हैं। 
अनेक उदाहरण हैं जिनसे सामान्य व्यक्ति अंधेरे में रहता है, उसे यकीन दिलाया जाता है कि सब ठीक है। प्राकृतिक स्रोतों का इस्तेमाल गलत हाथों में जाने से रोकने की नीति बनाकर कार्रवाई करने से ही ऊर्जा दिवस की सार्थकता सिद्ध हो सकती है। हमारे वश में केवल इतना ही है कि बिजली का बिल कम करने के उपाय कर लें, साइकिल या पैदल चलने की आदत डाल लेंए गर्मी सर्दी से बचाव के लिए महंगे उपकरण खरीद लें और फिर भी यदि कुछ न कर सकें तो भाग्य को दोष देने का काम करें। 

#ऊर्जा स्रोतों का उचित उपयोग और संरक्षण बेहद ज़रूरी