सर्वोच्च् न्यायालय का बड़ा फैसला
देश के सर्वोच्च न्यायालय सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिदों एवं दरगाहों के सर्वेक्षणों एवं इस संबंध में चल रहीं न्यायिक कार्रवाइयों पर फिलहाल रोक लगा कर एक बड़ा कदम उठाया है। आज भिन्न-भिन्न न्यायालयों में विभिन्न मस्जिदों या स़ूफी दरगाहों संबंधी ऐेसे दावों से अनेक मामले दर्ज किए गए हैं कि इन स्थानों पर सैकड़ों वर्ष पहले मंदिर होते थे, जिनका उस समय के बादशाहों या उनके अहलकारों ने स्वरूप बदल कर उन्हें मस्जिदों में बदल दिया था। ऐसे विवादित स्थानों में मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद और वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद भी शामिल है। विगत दिवस संबंधित न्यायालय द्वारा उत्तर प्रदेश के शहर संबल में स्थित सैकड़ों वर्ष पुरानी शाही जामा मस्जिद के संबंध में सर्वेक्षण की इजाज़त दी गई थी। इस संबंध में याचिकर्ताओं द्वारा यह दावा किया गया था कि सदियों पहले इस स्थान पर मंदिर होता था, जिसका पता सर्वेक्षण द्वारा ही लगाया जा सकता है।
न्यायालय से ऐसी इजाज़त मिलने के बाद सर्वेक्षण करने गई टीम के मस्जिद वाले स्थान पर पहुंचने से दोनों ही समुदायों में तनाव बढ़ गया था। यहां हुए झगड़ों में 4 लोग मारे गए थे। पैदा हुए इस स्थानीय तनाव से देश भर में एक बार फिर साम्प्रदायिक माहौल बिगड़ गया था। इसके बाद न्यायालयों में इस तरह के अन्य नये मामले भी दर्ज किए गए थे। इस समय देश भर में लगभग डेढ़ दर्जन ऐसे महत्त्वपूर्ण मामले अदालतों में चल रहे हैं।
वर्ष 1991 में भी अयोध्या में सदियों पुरानी बाबरी मस्जिद को गिराने के बाद स्थान-स्थान पर हुए साम्प्रदायिक दंगों में सैकड़ों लोग मारे गए थे। ऐसे बिगड़ते माहौल के दृष्टिगत उस समय नरसिम्हा राव की सरकार द्वारा एक कानून बनाया गया था, जिसके तहत यह व्यवस्था की गई थी कि देश के सभी धार्मिक स्थानों की 15 अगस्त, 1947 से पहले वाली स्थिति ही कायम रहेगी। इससे प्रतीत होता था कि इस फैसले से ऐसे झगड़े खत्म हो जाएंगे। देश के सर्वोच्च न्यायालय को इस पर कड़ा पहरा देने की ज़रूरत थी, परन्तु ऐसा नहीं हो सका। किसी न किसी रूप में दावा किये जाने वाले धार्मिक स्थानों के न्यायालयों द्वारा सर्वेक्षण करवाने की इजाज़त दी जाने लगी, जिसने देश के समूचे माहौल को एक बार फिर साम्प्रदायिक स्तर पर तनावपूर्ण बना दिया। इसमें सन्देह की कोई सम्भावना नहीं है कि यदि हज़ारों वर्ष पहले की गई कार्रवाइयों को पुन: कुरेदना शुरू कर दिया जाये तो जहां यह सिलसिला अंतहीन हो निपट जाएगा, वहीं इसे आधार बना कर अनेकानेक ऐसे झगड़े पैदा हो जाएंगे, जिससे आज़ादी के बाद देश के नये बने लिखित संविधान की भावनाएं तार-तार हो जाएंगी।
ऐसी इजाज़तों ने पहले ही देश का बेहद नुक्सान कर दिया है। हालात और बिगड़ने से रोकने के लिए जहां कोई और स्पष्ट नीति अपनाने की ज़रूरत होगी, वहीं धार्मिक स्थानों संबंधी 1991 में बनाये गये कानून पर भी सख्ती से पहरा दिया जाना ज़रूरी है। यदि ऐसा खास कारणों के तहत किया जा रहा है तो इसे बेहद नकारात्मक क्रियान्वयन कहा जाएगा। इस संबंध में खास तौर पर केन्द्र सरकार को अपनी ज़िम्मेदारी समझने की ज़रूरत होगी, क्योंकि संविधान की भावना की रक्षा करना सरकार का पहला फज़र् होता है। हम अपने देश के धर्म-निरपेक्ष संविधान पर गर्व करते हैं। ऐसी भावना से ही सही अर्थ में आपसी भाईचारों के बीच सद्भावना की उम्मीद रखी जा सकती है, जो देश के हर पक्ष से विकास की साक्षी बन सकती है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द