कुछ बातें जो नव वर्ष में भी चुनौती बनी रहेंगी 

प्रत्येक वर्ष बहुत कुछ छोड़ कर जाता है जो आने वाले वर्ष के लिए महत्वपूर्ण तो होता ही है साथ में चेतावनी भी कि यदि जो भूल हुई हैं वह दोहराई गईं तो कीमत चुकानी होगी और जो श्रेष्ठ तथा जनहित के काम हुए, वे आगे जारी न रहे तो दुष्परिणाम भुगतने होंगे। यह व्यक्ति, समाज, देश यानी सरकार सब पर समान रूप से लागू होता है।  इस वर्ष का आरम्भ भव्य राम मंदिर से हुआ। संविधान और उसके निर्माताओं को लेकर वाद-विवाद ही नहीं, संसद में धक्का मुक्की तक की नौबत आ गई। 28 दिसम्बर, 1885 में इंडियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना के लिए तब बम्बई में अधिवेशन हुआ था और गुलाम भारत को एक नई ज्योति दिखाई दी थी कि वह स्वतंत्रता की उम्मीद रख सकता है। यह राष्ट्रीय दल आज किस अवस्था में है, यह सब ही जानते हैं और इस बारे में थोड़ा कहा भी काफी समझा देता है।  इस वर्ष देश में जैसे चुनावों की बहार छाई रही। लोकसभा और अनेक राज्यों के चुनाव सम्पन्न हुए। 2014 में एक विकल्प के रूप में उभरी भारतीय जनता पार्टी अपना वर्चस्व बनाये हुए है। शेष सभी दल ‘हम भी दौड़ में हैं ’ की तर्ज पर जहां-तहां जुगनू की तरह चमक दिखाते रहते हैं।
‘एक देश, एक चुनाव’ की मीमांसा के लिए संसदीय समिति बना दी अन्यथा अधिकतर बिल तो बिना चर्चा के पास कर लिए जाने की परम्परा बन रही थी। विपक्ष पूरा ज़ोर लगाता रहा कि संसद की कार्यवाही चलने ही न दी जाए। भारत के इतिहास में शामिल इन पन्नों से अगली पीढ़ी क्या सीखेगी, यह सोचना है। प्राचीन धरोहरों का पता लगाना चाहिए लेकिन जब पुरातत्व विभाग के स्थान पर यह काम सरकार करे और अपने न जाने कौन से लाभ के लिए खुदाई करने लगे तब हैरान तो होना ही है। प्राकृतिक स्रोतों को नष्ट करने का प्रयास इस वर्ष जारी रहा। उन्हें बदलना असंभव होते हुए भी, पैरों पर स्वयं कुल्हाड़ी मारने की कला में पारंगत होने के कारण, निरन्तर इन स्रोतों को समाप्त करने की चेष्टा होती रही। सफल तो क्या ही होना था पर नदियों को ज़हरीला बनाया जाता रहा, पेड़ों का काटा जाता रहा। 
प्रदूषण के कारण दिल्ली और मुम्बई जैसे महानगर ही नहीं, छोटे शहरों के लोगों को भी साँस लेने में तकलीफ होने लगी है। उत्तराखंड और हिमाचल अभी बचा हुआ था लेकिन बर्बादी की लहर वहां भी पहुंच रही है। कौन सा प्रदेश मौसम की मार से बचा रहेगा, कहना कठिन है। सरकार इससे निपटने का एक ही रास्ता जानती है कि निर्माण कार्यों को रोक दिया जाए और लाखों लोगों की जीविका पर विराम लगा दिया जाए। विडम्बना यह है कि हमारे देश के वैज्ञानिकों और वैज्ञानिक सोच रखने वाले व्यक्तियों ने ऐसी टेक्नोलॉजी विकसित कर ली हैं जिनसे नदियों को विषाक्त और वायु को प्रदूषित होने से रोका जा सकता है। टेक्नॉलोजी को ताले में बंद कर उसकी चाबी समुद्र में फेंक दी है।
अटल बिहारी वाजपेयी की इस वर्ष सौंवीं जयंती थी। वह ऐसे प्रधानमंत्री थे जिनकी कथनी विज्ञानी सोच पर आधारित थी और करनी ऐसी कि विश्व में अमरीका जैसे देश दांत किटकिटाने के अतिरिक्त कुछ न कर सकें। संयुक्त राष्ट्र संघ में उदाहरण बना भाषण हो, केवल एक वोट की कमी से सरकार का त्याग कर देना हो या दुनिया भर की सैटेलाइट क्षमता को चकमा देकर आणविक परमाणु हथियार से देश को सशक्त करना हो, हमेशा याद रहेंगे। उनके सर्म्क में आने, उनसे बातचीत करने और उनका मुक्त अट्टहास सुनने का अवसर जिन्हें मिला, वे धन्य हैं। भारत की नदियों को जोड़ कर उनके जल का इस्तेमाल सिंचाई, अतिवृष्टि और सूखाग्रस्त क्षेत्रों को हरा भरा बनाने की कल्पना का जन्म अटल जी के ही मन में हो सकता था। 
पूर्व प्रधान मंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह जो नरसिम्हा राव की खोज थे और जिन्हें अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने का श्रेय जाता है, वह अपने कार्यकाल में ज़्यादा कुछ न कर सके। उनका गत दिवस 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया। यह वर्ष सिने संसार के शोमैन और निर्माता, निर्देशक, अभिनेता राज कपूर की सौंवीं वर्षगांठ मनाने के साथ समाप्त हो रहा है। वे अकेले ऐसे कलाकार थे जो उस ज़माने में रूस जैसे शक्तिशाली देश में अपनी कला का लोहा मनवा चुके थे। दो देश कैसे एक दूसरे के साथ आत्मीय संबंध बना सकते हैं, इसका उदाहरण राज कपूर के अतिरिक्त किसी और का नहीं हो सकता। 
भारतीय सिनेमा को नई पहचान देने के प्रयास में सफल और फिल्मों के माध्यम से साधारण व्यक्ति की व्यथा को समझने में उसका उपयोग करने में कुशल श्याम बेनेगल का भी निधन हो गया। वह 91 वर्ष के हुए थे और कुछ ही दिन पूर्व अपनी वर्षगांठ मनायी थी। 28 दिसम्बर, 1895 को फ्रेंच ल्यूमियर ब्रदर्स ने पहली बार वह दुनिया दिखाई थी जो आज चलचित्र संसार है। आज हमारा बॉलीवुड हॉलीवुड के बाद दूसरे नंबर पर आता है। इस वर्ष उद्योगपतियों में प्रमुख रतन टाटा भी नहीं रहे, वह भारत रत्न आधिकारिक सम्मान को गौरव प्रदान करने वाले व्यक्ति थे।  उनकी बनाई कम्पनियों ने लगभग प्रत्येक क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का मान सम्मान बढ़ाया है। नए उद्यमी उन्हें अपना प्रेरणास्रोत मानते हैं और उनकी दूरदृष्टि और प्रबंधन योग्यता का वरण करना चाहते हैं। 
नये वर्ष महंगाई पर काबू करना होगा वरना यह जनता से अधिक राजनीतिज्ञों के लिए हानिकारक हो सकती है। भ्रष्टाचार मिटाने की केवल बातें होती हैं, उसे वास्तविकता बनाना नहीं। उम्मीद की जा सकती है कि प्रत्येक भारतीय आधुनिक टेक्नोलॉजी अपनाने और बदलते परिवेश में स्वयं को ढाल पाएगा। दूसरा सवाल यह होना चाहिए कि जल और वायु प्रदूषण से निजात कैसे मिलेगी, क्योंकि इसने जीवन नर्क बना दिया है। तीसरी आशा यह है कि वेतनभोगी कर्मचारी, किसान, मज़दूर और अपना स्वयम् का व्यवसाय करने की जुगाड़ में लगे युवाओं को अपने जीवन में एहसास हो कि जिस देश में वह रहते हैं उसका नाम भारत वर्ष है। इसे भारत ही बने और बनाये रखने की जुगत में लगे लोगों को जिस दिन यह समझ में आ जाएगा कि यह देश सनातन है, इसका धर्म, सर्व जन हिताए, सर्व जन सुखाए है और इसकी नीति वसुधैव कुटुंबकम् है, तब हम वास्तव में स्वतंत्र होंगे।

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