रासायनिक खाद की खपत कम की जाए

किसानों की फसल से आय कम हो रही है और खर्च बढ़ रहा है। उनमें मायूसी की लहर है, तभी वे हर दिन धरने एवं रोष रैलियां कर रहे हैं। अन्य सामग्री के अतिरिक्त किसानों को रासायनिक खाद का इस्तेमाल कम करने की ज़रूरत है। गत शताब्दी के छठे दशक में सब्ज़ इन्कबाल के बाद रासायनिक खाद का इस्तेमाल तेज़ी से शुरू हुआ। सरकारी एजैंसियों द्वारा भी रासायनिक खाद के इस्तेमाल पर ज़ोर दिया गया। उससे पहले किसान रूढ़ी खाद का उपयोग भी काफी रकबे पर करते थे। देश की बढ़ रही आबादी के लिए अनाज पैदा करने की ज़रूरत थी। अमरीका से पी.एल.-480 के तहत अनाज की आमद बंद करने की ज़रूरत थी। इस प्रकार रूढ़ी की खाद का इस्तेमाल निरन्तर कम होता गया और रासायनिक खाद की खपत तेज़ी से बढ़ती गई। आज पंजाब में भारत के सभी राज्यों से अधिक प्रति हैक्टेयर रासायनिक खाद डाली जा रही है। फसली घनत्व बढ़ा है, जिस कारण अधिक रासायनिक खाद डालने की ज़रूरत पड़ी। रासायनिक खाद अधिक डालने से फसलों में बीमारियां तथा हानिकारक कीड़ों के हमले बढ़ गए। किसान रासायनिक खाद के इस्तेमाल को और तेज़ी से बढ़ाए जा रहे हैं। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) द्वारा गेहूं की फसल में 55 किलो डी.ए.पी. तथा 110 किलो यूरिया प्रति एकड़ डालने की सिफारिश की गई है। किसान 90-100 किलो तक डी.ए.पी. तथा 180 किलो तक यूरिया भी डाल रहे हैं।
ज़रूरत है बायो खाद, हरि खाद, ब्लू ग्रीन एल्गी, नील-रहित काई, वर्मी कम्पोस्ट जैसी खादों का उपयोग बढ़ा कर रासायनिक खाद का इस्तेमाल कम किया जाए। बहुत कम रकबा है, जहां जैविक कृषि की जाती है। गेहूं की कटाई के बाद खरीफ की धान, बासमती तथा कपास जैसी फसलों की बिजाई करने तक का जो समय होता है, उसमें सब्ज़ खाद पैदा करके रासायनिक खाद की खपत कम की जाए। इससे भूमि की शक्ति में वृद्धि होती है। किसानों में सब्ज़ खाद पैदा करने के लिए उत्साह भी कम हो गया है। चाहे सब्ज़ खाद के लाभ बहुत हैं, जैसे ज़मीन की निचली परतों से जड़ों के माध्यम से पौष्टिक तत्वों का ऊपर आना, कलराठी ज़मीन में कल्लर सुधार होना, ज़मीन की उपजाऊ शक्ति बढ़ाना तथा सब्ज़ खाद के गलने-सड़ने से ज़मीन के तत्वों को घुलनशील बन कर पुन: खुराक का हिस्सा बन जाना आदि। पहले गैर-रासायनिक खाद का इस्तेमाल होता था, अब चाहे इनका उस प्रकार व्यापक स्तर पर इस्तेमाल सम्भव नहीं, परन्तु फिर भी किसी सीमा तक एलगी, वर्मी कम्पोस्ट तथा सब्ज़ खाद का इस्तेमाल कुछ फसलों पर करके रासायनिक खाद की खपत कम की जा सकती है। इन गैर-रासायनिक खादों की खपत से दाने का आकार तथा बज़न बढ़ता है और फसल के उत्पादन में भी वृद्धि होती है। इन खादों के इस्तेमाल से एक अनुमान के अनुसार यूरिया की 40 किलो प्रति हैक्टेयर की बचत की जा सकती है। रासायनिक खाद का उपयोग कम करने के लिए किसान गोबर से वर्मी कम्पोस्ट खाद तैयार करके भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इसमें रसोई में उपयोग की गईं सब्ज़ियों के अवशेष, गोबर आदि को इस्तेमाल किया जा सकता है, परन्तु बारिश में निकलने वाले केंचुए नहीं इस्तेमाल किये जा सकते। वर्मी कम्पोस्ट बनाने के लिए ताज़ा गोबर पर 8 से 10 दिन पानी डाल कर ठंडा करके वर्मी कम्पोस्ट के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। वर्मी कम्पोस्ट मिट्टी के खारे रंग को सही बना कर पौधों के विकास के लिए सभी तत्व उपलब्ध करता है, जबकि रासायनिक खाद सिर्फ एक या दो तत्व ही उपलब्ध करती है, परन्तु वर्मी कम्पोस्ट बहुत बड़े रकबे पर इस्तेमाल किया जाना संभव नहीं। 
इस वर्ष 35 लाख हैक्टेयर रकबे पर गेहूं की काश्त की गई है, जिसके लिए 13.5 लाख टन यूरिया की ज़रूरत है। किसानों को डी.ए.पी. गेहूं की बिजाई के समय उपलब्ध न होने के कारण कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा, क्योंकि डी.ए.पी. गेहूं की बिजाई के समय शुरू में ही उपयोग करना पड़ता है। केन्द्र सरकार ने गैर-कृषि कार्यों के लिए यूरिया का इस्तेमाल रोकने हेतु यूरिया खरीदने की प्रति किसान सीमा भी निर्धारित की है और अन्य ढंग भी इस्तेमाल किए हैं, जैसे सब्सिडी का परचून विक्रेता के माध्यम से बिक्री होने पर ही दिया जाना आदि, परन्तु इससे भी गैर-कृषि कार्यों के लिए यूरिया का इस्तेमाल बंद नहीं हुआ, जिस कारण किसानों को ही नुकसान पहुंचता है, क्योंकि उनके लिए दी जा रही सब्सिडी गैर-किसानों के पास जा रही है। वर्तमान में जिस प्रकार पंजाब की ज़मीन में जैविक समर्था कम हो रही है, उसके दृष्टिगत रासायनिक खाद का इस्तेमाल कम करने की बहुत ज़रूरत है।

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