‘इंडिया’ गठबंधन के जीर्णोद्धार का वक्त आ गया है
दिल्ली चुनाव ने साफ तौर पर दिखा दिया है कि विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन अब जीर्ण-शीर्ण घर बन चुका है, जिसमें दीवारें और खंभे टूटकर गिर रहे हैं। यह कहना कि इसके दो सहयोगी दल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ‘आप’ अलग हो गये हैं, कमतर आंकना होगा, क्योंकि कांग्रेस न केवल आप को सत्ता से हटाने की पुरजोर कोशिश कर रही है, बल्कि दिल्ली कांग्रेस के नेता अजय माकन ने ‘आप’ और उसके सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल पर इतने तीखे हमले किये कि ‘आप’ नेताओं ने धमकी दी कि अगर कांग्रेस अपने दिल्ली नेता के खिलाफ कार्रवाई नहीं करती है, तो वे कांग्रेस को ‘इंडिया’ गठबंधन से हटाने के लिए दबाव बनायेंगे।
इसके बाद ‘इंडिया’ गठबंधन के कई सहयोगियों ने दिल्ली चुनाव में ‘आप’ का समर्थन किया और कांग्रेस विपक्षी खेमे में अलग-थलग पड़ गयी। अजय माकन अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष हैं और दिल्ली और राष्ट्रीय स्तर पर एक कद्दावर नेता भी हैं। 25 दिसम्बर को दिल्ली में प्रदूषण, नागरिक सुविधाओं और कानून व्यवस्था के कुप्रबंधन के लिए ‘आप’ और भाजपा को निशाना बनाते हुए 12.सूत्रीय ‘श्वेत पत्र’ जारी करने के बाद उन्होंने अरविंद केजरीवाल को ‘देशद्रोही’ और ‘फर्जीवाल’ कहा। ‘इंडिया’ गठबंधन में किसी भी समझदार नेता ने यहां तक कि राहुल गांधी सहित कांग्रेस के नेताओं ने भी ‘आप’ और केजरीवाल पर इस तरह के हमले का समर्थन नहीं किया। ‘आप’ ने पहली बार दिसम्बर 2013 में कांग्रेस की शीला दीक्षित के उत्तराधिकारी के रूप में दिल्ली की बागडोर संभाली थी जो 1998 से राज्य पर शासन कर रही थीं। केजरीवाल कांग्रेस के समर्थन से मुख्यमंत्री बने क्योंकि उस समय ‘आप’ केवल 28 सीटें जीत सकी थी अपनी खोई हुई जमीन को फिर से हासिल करने के लिए कांग्रेस लालच में है और गठबंधन धर्म के खिलाफ व जमीनी हकीकत के खिलाफ ‘आप’ पर चौतरफा हमला करने की योजना बना रही है।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि ‘आप’ इस समय कई राजनीतिक परेशानियों से गुजर रही है, जिसमें एक दशक से अधिक समय से सत्ता विरोधी लहर और ‘आप’ की संगठनात्मक ताकत का कमजोर होना शामिल है लेकिन कांग्रेस का यह अनुमान लगाना गलत है कि वह ‘इंडिया’ गठबंधन में अपने ही सहयोगी पर हमला करके असाधारण लाभ उठा सकती है। कांग्रेस के लिए बेहतर होता कि वह चुनाव, सीटों और सत्ता से परे ‘इंडिया’ गठबंधन के महत्व को समझती। देश बड़े पैमाने पर समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक व संघीय राजनीति से अत्यधिक केंद्रीकृत अति-दक्षिणपंथी हिंदुत्व की राजनीति की ओर राजनीतिक बदलाव के नाजुक दौर से गुज़र रहा है। इस लिहाज़ से ‘इंडिया’ गठबंधन को न केवल बचाने की ज़रूरत है, बल्कि सही दिशा में फिर से सक्रिय करने के लिए भी नया रूप देने की ज़रूरत है। कांग्रेस के लिए चुनाव और सीटें इस समय देश के समग्र राजनीतिक माहौल को भारतीय संविधान की प्रस्तावना की तर्ज पर आगे बढ़ाने से कम प्रासंगिक हैं, क्योंकि 2025 में दो राज्यों दिल्ली और बिहार में इसके ज्यादा दांव नहीं लगे हैं। दोनों राज्यों में ‘इंडिया’ गठबंधन के क्षेत्रीय सहयोगी ‘आप’ और आरजेडी मज़बूत हैं।
कांग्रेस 2026 में असम में भाजपा के साथ अपने दम पर चुनाव लड़ेगी, जबकि केरल में वह वामपंथी दलों के साथ चुनाव लड़ेगी। पुडुचेरी और तमिलनाडु में कांग्रेस मजबूत क्षेत्रीय पार्टी की कनिष्ठ सहयोगी है, जबकि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली टीएमसी प्रमुख है और विधानसभा में एक भी सीट नहीं होने के कारण कांग्रेस हाशिए पर है। इन राज्यों में चुनाव परिदृश्य को राष्ट्र के व्यापक हित के लिए कांग्रेस को सही राजनीतिक रास्ते से भटकने नहीं देना चाहिए। पार्टी को देश में अगले दो वर्षों में राज्य चुनाव से परे देखना चाहिए। पार्टी को अब ‘इंडिया’ गठबंधन और गठबंधन धर्म की अनदेखी नहीं करनी चाहिए, अन्यथा उसे 2027 में क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के समर्थन की आवश्यकता होगी, जब उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर, गुजरात और गोवा जैसे महत्वपूर्ण राज्यों में चुनाव होंगे। अब तक सभी जानते हैं कि ‘इंडिया’ गठबंधन लगभग निष्क्रिय हो गया है, खासकर महाराष्ट्र और हरियाणा में चुनाव के बाद मुख्य रूप से कांग्रेस नेतृत्व की ‘इंडिया’ गठबंधन को सक्रिय बनाने में रुचि न होने के कारण। दिल्ली में कांग्रेस अपने ‘इंडिया’ गठबंधन पार्टनर ‘आप’ के साथ जो कर रही है, वह अन्य सहयोगियों के लिए भी काफी निराशाजनक है।
हालांकि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ‘इंडिया’ गठबंधन का नेतृत्व कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने और उनकी पार्टी ने कभी भी अपने सहयोगियों की संयुक्त बैठक बुलाने की परवाह नहीं की। यही कारण है कि राजद नेता लालू प्रसाद यादव ने यह बयान दिया कि ‘इंडिया’ गठबंधन को नेतृत्व परिवर्तन की आवश्यकता है और टीएमसी नेता ममता बनर्जी को इसका नेता बनाया जाना चाहिए। यहां तक कि एनसीपी (एसपी) नेता शरद पवार ने भी कहा है कि ममता एक ‘सक्षम नेता’ हैं। कांग्रेस नेतृत्व को बिहार में आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के बयान में दिये गये संकेत को और भी गहराई से समझना चाहिए क्योंकि राज्य में 2025 के अंत में चुनाव होने वाले हैं।
‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि ‘इंडिया’ गठबंधन की कोई बैठक नहीं हुई है। कौन नेतृत्व करेगा? एजेंडा क्या होगा? गठबंधन कैसे आगे बढ़ेगा? इन मुद्दों पर कोई चर्चा नहीं हुई है। इस बात पर कोई स्पष्टता नहीं है कि हम एकजुट रहेंगे या नहीं,’ अब्दुल्ला ने कहा। ये सभी बातें दर्शाती हैं कि एक संयुक्त विपक्ष के रूप में ‘इंडिया’ गठबंधन को दिल्ली चुनाव खत्म होने के बाद तत्काल बैठक करने की ज़रूरत है, ताकि वह खुद को नया रूप दे सके और देश के व्यापक हित में इसे फिर से सक्रिय बनाया जा सके, अन्यथा भारतीय राजनीति में समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और संघीय गणराज्य की जगह और सिकुड़ जायेगी। (संवाद)