‘देश पैण धक्के, बाहर मिले ढोई ना...’
भारत की केन्द्र सरकार तथा भिन्न-भिन्न राज्यों की प्रदेश सरकारों की ओर से लगातार ये दावे किए जा रहे हैं कि उनकी ओर से अपने-अपने स्तर पर करोड़ों युवाओं को सरकारी नौकरियां या निजी क्षेत्र में रोज़गार के साधन उपलब्ध किए जा रहे हैं। यह भी दावा किया जाता है कि भारत जो इस समय विश्व की पांचवीं बड़ी आर्थिकता है, 2027 तक विश्व की तीसरी बड़ी आर्थिकता बन जाएगा। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का रुतबा बढ़ने की भी बड़ी-बड़ी डींगे हांकी जाती हैं, परन्तु ज़मीनी हकीकत यह है कि भारत में व्यापक स्तर पर बेरोज़गारी पाई जा रही है। सरकारों की अपनी नीतियों से ही इसकी पुष्टि हो जाती है।
केन्द्र सरकार पिछले कई वर्षों से 80 करोड़ से अधिक लोगों को प्रति सदस्य पांच किलो अनाज तथा दालें देती आ रही है। इसी तरह कई राज्य सरकारों की ओर से भी ़गरीब वर्गों को मुफ्त अनाज दिया जा रहा है। इसके अतिरिक्त देश भर में भिन्न-भिन्न राजनीतिक पार्टियों में लोगों के लिए मुफ्त की योजनाओं की घोषणा करने की होड़ मची हुई है। कोई राज्य सरकार लोगों को बिजली-पानी मुफ्त दे रही है, कोई महिलाओं को मुफ्त बस यात्रा करवा रही है और कोई राज्य सरकार महिलाओं के खाते में कुछ हज़ार रुपये डालने की नीति लागू कर रही है। दिल्ली में इस समय चुनाव लड़ रहीं राजनीतिक पार्टियां भी मुफ्त की योजनाओं की घोषणाओं में एक-दूसरे को मात देती दिखाई दे रही हैं। राजनीतिक पार्टियों की ओर से मुफ्त की योजनाओं की घोषणा करके लोगों के वोट हासिल करने की जो रणनीति अपनाई गई है, वह इस बात की एक बार फिर पुष्टि करती है कि ़गरीब लोगों की वित्तीय हालत डावांडोल हुई पड़ी है तथा वे अपने लिए मूलभूत सुविधाएं भी पैसे खर्च करके स्वयं हासिल नहीं कर सकते। सरकारें लोगों को अच्छी शिक्षा देने तथा स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करने तथा उनकी योग्यता अनुसार उनके लिए रोज़गार के सम्मानजनक अवसर पैदा करने में बुरी तरह विफल हुई हैं। इसी कारण उन्हें वोटों के लिए मुफ्त की योजनाओं की घोषणा करनी पड़ रही है।
यह उसी तरह की स्थिति है जिस तरह की ब्रिटिश शासन के समय उनकी लूटपाट की नीतियों के कारण 20वीं सदी के शुरू में भारत में बनी हुई थी। उस समय भी भारत से भारी संख्या में युवा रोटी-रोज़ी की तलाश में विदेशों में भटक रहे थे। लोग कनाडा, अमरीका, मलेशिया, सिंगापुर, बर्मा, थाइलैंड और भारत के अन्य आस-पास के अनेकों देशों में रोज़गार की तलाश में पलायन करने हेतु विवश थे। ऐसे विदेशों में भटकते लोगों ने उत्तरी अमरीका में इकट्ठे होकर ़गदर पार्टी की स्थापना की थी तथा वह देश को अंग्रेज़ों की ़गुलामी तथा उनके शोषण से मुक्त करवाने के लिए भारत में लौटे थे। उस समय युवाओं की स्थिति संबंधी एक पंक्ति ‘देश पैण धक्के, बाहर मिले ढोई ना, साडा परदेसियां दा देश कोई ना’ बड़ी प्रचलित हुई थी। दुर्भाग्यवश आज भी उसी तरह की स्थिति है। बड़ी संख्या में देश के युवा कनाडा, अमरीका, आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, न्यूज़ीलैंड, अरब देशों सहित अन्य अनेक देशों को वैध या अवैध दोनों ढंगों से रोटी-रोज़ी की तलाश में पलायन कर रहे हैं। एजेंट उनसे लाखों रुपये लेकर उन्हें किसी विकसित देश में पहुंचाने का वादा करते हैं तथा उन्हें छोड़ किसी पिछड़े देश में आते हैं। कई बार इन पिछड़े देशों में भिन्न-भिन्न तरह के माफिया उन्हें हिरासत में लेकर उन पर अत्याचार करते हैं तथा उन्हें विवश किया जाता है कि अपनी रिहाई के लिए अभिभावकों से लाखों रुपए मंगवा कर उन्हें दें। युवाओं की बात तो एक तरफ रही, युवा लड़कियों को भी गुमराह करके खाड़ी तथा अन्य देशों में पहुंचा दिया जाता है, जहां उन लड़कियों का अनेक बार शारीरिक शोषण भी होता है। इसी तरह अब ये भी समाचार आ रहे हैं कि एजेंट युवाओं को गुमराह करके रूस भेज रहे हैं तथा रूस में उन्हें जबरन रूसी सेना में भर्ती करके यूक्रेन के युद्ध में धकेला जा रहा है। रूस और यूक्रेन के इस युद्ध में 12 युवकों की मौत भी हो चुकी है तथा 16 युवक वहां से लापता बताये जाते हैं। ऐसे युवकों के 10 परिवारों के सदस्यों ने मिल कर दिल्ली में विदेश मंत्रालय के समक्ष गुहार लगाई है कि उनके परिवारों से संबंधित युवकों को वापिस बुलाने में केन्द्र सरकार की ओर से उनकी सहायता की जाए, परन्तु यह बड़े दुख की बात है कि इन परिवारों का हाथ थामने के स्थान पर केन्द्रीय विदेश मंत्रालय ने उन्हें यह जवाब दे दिया है कि वे स्वयं अपने साधनों से इस उद्देश्य के लिए रूस जाना चाहते हैं, तो वह वहां उन्हें रशियन अनुवादक तो उपलब्ध करवा सकता है, परन्तु उनके परिवारों के सदस्यों को अपने खर्च पर रूस भेजने का प्रबन्ध नहीं कर सकता।
इस संबंध में हमारा स्पष्ट विचार यह है कि यदि आज देश के युवा रोज़गार हासिल करने के लिए भटकते फिरते हैं तो इसके लिए मुख्य रूप से केन्द्र और भिन्न-भिन्न राज्यों की सरकारों की नीतियां ज़िम्मेदार हैं। अपने लोगों के लिए रोज़ी-रोटी या रोज़गार के अवसरों का प्रबन्ध करना सरकारों की ही ज़िम्मेदारी है यदि वे ऐसा नहीं कर सकीं और युवा विदेशों में रोज़गार ढूंढते हुए समस्याओं में फंस रहे हैं, तो उन्हें वापिस लाने की ज़िम्मेदारी भी सरकारों की ही बनती है। इसके साथ ही उन एजेंटों के विरुद्ध भी सरकारों को कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए, जो युवाओं को गुमराह करके विदेशों में भेज रहे हैं तथा आगे उन्हें युद्ध में धकेलने से भी गुरेज़ नहीं कर रहे।