एआई तकनीक : 2047 तक भारत को सबसे बड़ा खिलाड़ी बनाने का लक्ष्य

अमरीका और चीन के बीच एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) की तकनीक को लेकर छिड़े वाक युद्ध के दौरान पेरिस मम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह सगर्व घोषणा की भारत एआई मिशन पर गंभीरता से आगे बढ़ रहा है। यह बयान पूरी दुनिया का ध्यान खींचने वाला साबित हुआ है, क्योंकि इसके पहले 5 फरवरी 2025 को आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस तकनीक की अगुवा कंपनी ओपन एआई के सीईओ सैम अल्टमैन ने नई दिल्ली में मीडिया के साथ बात करते हुए बिना किसी लाग लपेट के साफ शब्दों में कहा कि आने वाले दिनों में भारत एआई तकनीक का अगुवा देश साबित हो सकता है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस संभावना पर यह कह कर अमरीका के उप-राष्ट्रपति जे.डी. ओवंस सहित समिट में मौजूद सारे विदेशी नेताओं का ध्यान भारत के उस लक्ष्य की तरफ खींचा, जिसे हिंदुस्तान ने ‘मिशन एआई इंडिया’ का नाम दिया है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस समिट में कहा कि भारत साल 2047 में एआई के क्षेत्र का सबसे बड़ा खिलाड़ी होगा, इसके पहले साल 2035 तक हम एआई तकनीक से अपनी जीडीपी में 1 ट्रिलियन पूंजी का इजाफा करेंगे।
* भारत में चैट जीपीटी के सबसे ज्यादा सब्सक्राइबर हैं, जो भारतीयों की एआई के तरफ  रूझान के परिचायक हैं।
* भारत में काम कर रही करीब 70 फीसदी कंपनियां अपनी तकनीकी ज़रूरतों को एआई से जोड़ रही हैं।
* साल 2027 तक अगले दो सालों में भारत इस क्षेत्र में 44 से 50 हजार करोड़ रुपये खर्च करने की योजना बना रहा है।
* भारत में अगले दो सालों में एआई जनरेटिव और एनालिटिक्स में 1.2 से 1.7 लाख नौकरियां पैदा होंगी।
* साल 2025-26 के बजट में भारत ने मिशन एआई के लिए 500 करोड़ रुपये एलॉट किये हैं, जिससे देश में तीन एआई एक्सीलेंस सेंटर बनने का काम शुरु हो चुका है।
प्रधानमंत्री मोदी ने पेरिस में एआई समिट को संबोधित करते हुए कहा, ‘आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस इस सदी के लिए मानवता का कोड लिख रही है। इसमें दुनिया बदलने की ताकत है। यह समाज सुरक्षा के लिए ज़रूरी है। एआई लाखों लोगों की ज़िन्दगी बदल रही है। वक्त के साथ साथ रोज़गार का स्वरूप भी बदल रहा है। मगर इतिहास गवाह है कि तकनीक नौकरियां नहीं लेती, एआई से नई नौकरियों के अवसर पैदा होंगे।’ प्रधानमंत्री मोदी का यह कथन एआई तकनीकी की मूल अवधारणा से मेल खाता है कि यह मौजूदा सदी में मानव समाज के भविष्य का कोड लिख रही है। लेकिन हमें इस सहज निष्कर्ष में यह भी जोड़ देना चाहिए कि एआई कोड तो लिख रही है, लेकिन बेहद निर्ममता से लिख रही है। मानव इतिहास में यह पहला ऐसा मौका है कि अगर कोई समाज पढ़ाई-लिखाई से पीछे छूट गया तो उसका इस दुनिया में कोई भविष्य नहीं बचेगा। एक लंबे समय तक लोगों के बीच यह धारणा बहुत मजबूत रही है कि गंभीरता से भाषा न सीखने पर क्या फर्क पड़ता है? लोग वैसे भी कहते रहे हैं कि भाषा अपने आप में विचार नहीं है, यह एक दूसरे से महज संपर्क का ज़रिया है। अब के पहले तक लोग भाषा को संसाधन भी नहीं मानते रहे। लेकिन आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस ने चौट जीपीटी के आविष्कार के बाद साबित कर दिया है कि भाषा आज की तारीख में महज संपर्क का माध्यम भर नहीं है बल्कि अच्छी भाषा इंसान की उन्नति का आधार भी है। कुल मिलाकर भाषा आज की तारीख में इंसान के लिए एसेट या संसाधन बन चुकी है।
भारत के सामने वाकई एआई के क्षेत्र में लंबी कामयाबी की छलांग लगाने की क्षमता है, क्योंकि जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी ने पेरिस में कहा, ‘भारत ने सफलतापूर्वक कम लागत में डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार किया है, हमने डेटा इम्पावरमेंट के जरिये डेटा की ताकत को अनलॉक किया है। वास्तव में भारत के राष्ट्रीय एआई मिशन की नींव ही इसी बुनियाद पर रखी गई है।’
इसमें कोई दो राय नहीं कि मौजूदा समय में एआई तकनीक में अमरीका सबसे आगे और लगभग उसके पीछे कदम से कदम मिलाने की कोशिश चीन कर रहा है, जिससे इन दिनों अमरीका में चिंता भी है और चीन को लेकर एक खास तरह की ईर्ष्या भी पैदा हुई है। लेकिन संयोग से इस पूरे समीकरण में भारत इसलिए महत्वपूर्ण स्थिति में है, क्योंकि सबसे बड़ा एआई मैनपावर हब भारत में ही है और जाने अंजाने भारत में एक व्यापक डेटा नेटवर्क भी मौजूद है। वास्तव में भारत की यही ताकत न सिर्फ  हमारे एआई मिशन को महत्वपूर्ण बनाती है, बल्कि भारत की लोकतांत्रिक उदारता जिसे हमने बार-बार दोहराया है कि भारत अपने एक्सपीरियंस और एक्सपर्टीज को साझा करने के लिए तैयार है, जिस कारण दुनिया भारत को बेहद उम्मीदभरी निगाहों से देख रही है।
भारत ने साफ  कर दिया है उसने एआई को अपनी कामयाबी का ज़रिया तो बनाना निश्चित किया है, लेकिन वह एआई की विशेषज्ञता को सिर्फ  अपने तक कैद करके नहीं रखना चाहता। भारत लोकतांत्रिक तरीके से एआई से दुनिया की बेहतरी का सपना देखता है। गौरतलब है कि अगली एआई समिट नई दिल्ली में होगी और तब एआई की कामयाबी का सकारात्मक फर बड़े पैमाने पर विकासशील देश भी पाने की उम्मीद कर सकते हैं। अगर दुनिया एआई को मानवता की बेहतरी और उसकी समृद्धि के नज़रिये से इस्तेमाल करना चाहे तो रातोंरात दुनिया की काया पलट सकती है। जो काम पहले बहुत धन और बहुत समय लेते थे, एआई तकनीक की बदौलत अब वे सब चुटकी बजाते सम्पन्न हो रहे हैं। यह अकारण नहीं है कि सम्पूर्ण शरीर की स्वास्थ्य जांच का जो चार्ज करीब एक दशक पहले 5 से 10 हजार रुपये तक हुआ करता था, आज एआई के कारण वह 300 से 500 रुपये तक में होने लगा है। अमरीका और चीन के इस क्षेत्र में फलने फूलने से दुनिया को एआई तकनीक के तमाम चमत्कारिक इस्तेमाल तो हासिल हो सकते हैं, लेकिन इनके लिए इन देशों को बहुत कीमत चुकानी पड़ेगी। लेकिन भारत जैसा देश अगर एआई के क्षेत्र में अगुवा बनकर उभरता है तो हम बहुत लोकतांत्रिक तरीके से एआई की सफलता को पूरी दुनिया खासकर कमजोर देशों के साथ बांटेंगे। 
भारत का यह दावा भी है और लोगों का इस पर भरोसा भी है। यही कारण है कि पेरिस समिट के दौरान अमरीकी उपराष्ट्रपति भले इस समिट का इस्तेमाल चीन को घेरने के लिए करते रहे हों, पर दुनिया के बाकी राजनेता भारत को उम्मीदभरी निगाह से पूरे समय देखते रहे। यह सम्मेलन हो भले फ्रांस में रहा था, मगर फोकस में भारत रहा।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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