रूस-अमरीका में लगी भारत को लड़ाकू विमान बेचने की होड़

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा भारत को अत्याधुनिक लड़ाकू विमान बेचने की पेशकश के बाद, पाकिस्तान को मिर्ची लग गयी है। यहां के प्रमुख अंग्रेजी दैनिक ‘डॉन’15 फरवरी 2025 के अखबार में लिखा, ‘भारत को उन्नत सैन्य तकनीक की आपूर्ति करके अमरीका दक्षिण एशिया में सैन्य असंतुलन को बढ़ाने की कोशिश कर रहा है।’ गौरतलब है कि मोदी के साथ एक संयुक्त प्रेस संबोधन के दौरान ट्रम्प ने अपने प्रशासन की एफ.-35 स्टील्थ फाइटर्स को बेचने की इच्छा की घोषणा की, जो वैश्विक स्तर पर सबसे उन्नत सैन्य विमानों में से एक है। 
9 फरवरी 2025 को एयरोनॉटिकल डिवेल्पमेंट एजेंसी ने 2042 के बाद तक के स्वदेशी लड़ाकू विमान विकास कार्यक्रमों की नई आधिकारिक समय सीमा का रोडमैप जारी किया है। यह रोडमैप देश के लड़ाकू विमानों के बारे में आत्मनिर्भर बनने की शानदार तस्वीर पेश करती है और इस तरफ सेना और सरकार की बेहतरीन कोशिशों को भी रेखांकित करती है, लेकिन इसको देखकर यह भी लगता है कि वायुसेना के मल्टीरोल फाइटर एयरक्राफ्ट कार्यक्रम में और गति लानी होगी ताकि स्क्वाड्रनों की संख्या में कमी की भरपाई की जा सके साथ ही यह स्थिति भी साफ नज़र आ रही है कि अगर हमने जल्द ही लड़ाकू विमान नहीं खरीदे तो वायुसेना में फाइटर स्क्वाड्रनों की कमी लंबे समय तक बनी रहेगी, चीन और पाकिस्तान की तेज़ी से बढ़ती रक्षा क्षमताओं के बीच यह शुभ संकेत नहीं है। ऐसे में देश आने वाले समय में कम से कम 100 अत्याधुनिक उन्नत लड़ाकू विमानों की खरीदारी तय  है। इस स्थिति का फायदा उठाने के लिये अमरीका और रूस जो इस मामले में एक दूसरे के धुर विरोधी है, भारत को अपने अपने फाइटर जेट बेचने के लिये लुभा रहे हैं। रूस चाहता है कि भारत उसके पांचवी पीढ़ी के लड़ाकू विमान एसयू-57 ई खरीदे जबकि अमरीका एफ-35 बेचने की जुगत में है। रूस ने तो लुभावन प्रस्ताव भी दे दिया है। हालांकि भारत ने बेहद समझदारी क परिचय देते हुए इस पर कोई प्रतिक्रिया न देते हुए तटस्थ रहना बेहतर समझा है। भले भारत को कई कारणों से उन्नत लड़ाकू विमानों की तत्काल आवश्यकता हो, लेकिन हम अपनी अलग-अलग ज़रूरतों को देखते हुए पूरी समझदारी, तोलमोल तथा समय लेकर सुविचारित फैसले लेने की स्थिति में है।
लड़ाकू विमानों की खरीद के फैसले से पहले नि:संदेह प्रस्तावित सौदे की शर्तें, गुणवत्ता, विमान की कीमत, उसकी तकनीकी दक्षता, रणनीतिक कौशल तथा उपयुक्तता के साथ चार पांच दशकों तक उसका तकनीक का व्यवहार्य बने रहना तो देखा ही जाएगा साथ ही सेना के साथ उसके सामंजस्य एवं कूटनीतिक कसौटियों व पहलू को भी परखा जाएगा। हालांकि भारत के पास आधुनिक जेट खरीदने के रूस और अमरीका के अलावा भी विकल्प हैं। सो वह उस तरफ भी देख सकता है। लेकिन, फिलहाल अगर अमरीका के एफ-35 को देखें तो यह भी बहुत उन्नत किस्म का विमान है। लेकिन भले ही राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भारत के साथ रक्षा संबंधों को मज़बूत करने पर ज़ोर दे रहे हों और एफ-35 बेचने के चक्कर में पुराने प्रतिबंध भी हटा लें, लेकिन अमरीकी सौदे के साथ विमानों के संयुक्त उत्पादन और तकनीक हस्तांतरण जैसी कोई बात नहीं है। साथ ही यह भी हो सकता है कि अमरीका रूस के साथ रक्षा संबंधों को सीमित करने की शर्त भी लादे। भारत अगर एसयू-57 ई खरीदता है तो बेशक यह अमरीका के लिये एक झटका होगा और यदि उसके साथ वह एफ-35 भी खरीदता है तो अमरीका की नाराज़गी और विमानों की समय पर आपूर्ति की आशंकित रहेगी। वैसे अमरीका को रणनीतिक तौर पर  एफ-35 बेचने में इसलिए गुरेज नहीं होना चाहिये कि इससे भारत उसके दुश्मन चीन के खिलाफ मजबूत होता है।
सुखोई-57ई और एफ -35 लाइटनिंग-2 के बीच कौन बेहतर हमारी सेना के लिये उपयुक्त है, इस पर लम्बी बहस हो सकती है। दोनों में ही स्टील्थ, अत्याधुनिक सुपर मैन्युवरेबिलिटी और एडवांस एवियोनिक्स प्रणाली है। दोनों सुपरसोनिक गति से उड़ सकते हैं। छोटी और मध्यम दूरी की मिसाइलें ले जा सकने वाले, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध, निगरानी करने में एक एंजिन वाले एफ-35 को दुनिया का सबसे ताकतवर लड़ाकू विमान माना जाता है। उधर सुखोई-57 ई में दो इंजन लगे होते हैं। एक इंजन फेल होने पर भी उड़ान भरना जारी रखेगा और सुरक्षित रूप से उतर जायेगा। बड़ी बात यह कि इसे 50 साल के आधुनिकीकरण को ध्यान में रख कर विकसित किया गया है। हवाई क्षेत्र की रक्षा के मामले मेंए सुखोई-57ई  एफ-35 से कमतर नहीं दिखता। रूस का प्रस्ताव ज्यादा व्यावहारिक होने के साथ आर्थिक स्तर पर भी वहनीय है।  सुखोई-57 ई विमान अमरीका के एफ-35 की तुलना में काफी सस्ता है। एक सुखोई-57ई की कीमत 35 से 50 मिलियन डॉलर है, तो वहीं अमरीका का एफ-35 की कीमत तकरीबन 120 मिलियन डॉलर। ज़ाहिर है एक एफ-35 के दाम में अधिक सुखोई-57ई खरीदे जा सकेंगे और उसकी परिचालन लागत भी कम होगी, बड़ा बेड़ा अधिक प्रभावी होगा तथापि ‘आक्रमण ही सर्वोत्तम बचाव है’ की रणनीति की पक्षधर अमरीका सौदे में कठिन शर्त न रखे और कीमत कम कर ले तो भारतीय वायुसेना के लिये भविष्य में आक्रामक एफ-35 भी बेहतर विकल्प है। आसपास सिर्फ चीन के पास पांचवीं पीढ़ी का फाइटर जेट है। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर

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