जनसंख्या के बोझ तले दबे देश के संसाधन
वर्तमान में भारत की जनसंख्या देश चीन की जनसंख्या के लगभग बराबर हो गई है यानी कुल मिलाकर एक अरब चालीस करोड़ आबादी वाले भारत में जनसंख्या के बोझ तले विकास और उन्नति बेहद धीमी और अविकसित है। विकसित तथा समृद्ध देश भारत की जनसंख्या में एक संभावना वाला उपभोक्ता बाज़ार तलाशते हैं और इसे बहुत बड़ी पूंजी भी मानकर अपनी उपभोक्ता सामग्री भारत में बेचने का प्रयास करते हैं। केवल बाज़ार में निवेश और बाज़ारी ताकत ही विकास का पैमाना नहीं हो सकती है। बहुत बड़ी जनसंख्या सीमित संसाधनों को नष्ट कर देती है और विकास की धार को कमज़ोर करने का काम करती है। यदि जनसंख्या पर नियंत्रण होता है तो देश में बिजली-पानी की कमी, बढ़ती महंगाई, फैलती बेरोजगारी, भ्रष्टाचार व गरीब आदि की समस्या का समाधान हो सकत है। कम और नियंत्रित जनसंख्या तेजी से विकास का पैमाना हो सकती है। 1951 से लेकर 81 तक भारत में जनसंख्या में जबरदस्त वृद्धि हुई है और इसे जनसंख्या विस्फोट का भी नाम दिया जा सकता है। संयुक्त राष्ट्र संघ में जनसंख्या के विभिन्न पहलुओं पर नज़र रखने हेतु प्रत्येक वर्ष 11 जुलाई को जनसंख्या दिवस पूरे विश्व में मनाया जाता है। वर्तमान जनसंख्या का विशाल स्वरूप 1981 के बाद भारत में विशालतम हो गया है और आज की जो जनसंख्या है, वह उसी विस्फोट की परिणति है। भारत में जनसंख्या बढ़ने का प्रमुख कारण अशिक्षा, अंधविश्वास और घटती मृत्यु दर भी है। सीमित संसाधन व अधिक जनसंख्या के कारण देश में बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार गरीबी, महंगाई की समस्या बनी रही है। जनसंख्या पर नियंत्रण करके ही देश के विकास की गति को तेज़ किया जा सकता है। जनसंख्या नियंत्रण कर गरीबी को दूर करने का काम किया जाना चाहिए। इसके लिए ज़रूरी है की कमज़ोर और वंचित होगों को प्रत्येक योजना का पूरा लाभ मिलना चाहिए। बच्चे देश का भविष्य होते है, इसलिए उन्हें अच्छी शिक्षा व अन्य आधारभूत सुविधाएं आसानी से उपलब्ध होनी चाहिए। वैसे जनसंख्या नियंत्रण ही विकास की समुचित धारा नहीं हो सकती, हमें सामाजिक व आर्थिक समानता, सुरक्षा एवं सीमित संसाधनों के उचित इस्तेमाल से आगे बढ़ना होगा। वर्तमान में भारत विश्च में सबसे युवा आबादी वाला देश है। इसके विपरीत चीन और जापान में निरंतर वृद्धों की संख्या बढ़ रही है। इस तरह भारत में प्रचूर युवा शक्ति उपलब्ध हैं जिसका सही उपयोग करके देश को आर्थिक तथा सामरिक रूप में अत्यंत शक्तिशाली बना सकते हैं। इसके विपरीत भारत में विस्तृत रूप से गरीबीए बीमारियांए बेरोजगारीए जैसी विकराल समस्या में विद्यमान है। विश्व के कई कम आबादी वाले देश जैसे सोमालिया, लिथुआनिया आदि गरीबी, बेरोज़गारी, आतंकवाद की समस्या से दो-चार हो रहे हैं और कम जनसंख्या के बावजूद विकास नहीं कर पा रहे हैं जबकि चीन जैसा देश बहुत बड़ी जनसंख्या होन के बावजूद विकसित राष्ट्रों की कतार में है।
भारत के पास सभी संसाधन और विकसित होने के सारे अवयव हैं। इसके बावजूद देश विज्ञान, टैक्नोलॉजी में विकसित राष्ट्रों से काफी पीछे रह कर अशिक्षा, अंधविश्वास व आर्थिक असमानता की समस्याएं झेल रहा है, जो देश के विकास में बाधक है। वर्तमान में देश की जनसंख्या को नियंत्रित करना ज़रूरी हो गया है और साथ ही मौजूद संसाधनों का सदुपयोग किया जाना भी आवश्यक है।
अब सोचने की बात है कि क्या जनसंख्या नियंत्रण, गरीबी व बेरोज़गारी दूर करने की ज़िम्मेदारी सिर्फ शासन-प्रशासन की ही है, आम नागरिकों की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती? देखा जाए तो ऐसी समस्याओं को उत्पन्न करने में लोग भी कुछ हद कर ज़िम्मेदार होते हैं। लोगों को यह समझना होगा कि समस्याओं के समाधान में उनकी भूमिका उतनी ही अहम है, जितनी शासन-प्रशासन की। इसीलिए जनसंख्या नियंत्रण उपलब्ध संसाधनों के समुचित सही दोहन की ज़िम्मेदारी सभी पर होती है। इसमें समुचित सहयोग प्रदान करना होगा तब जाकर भारत एक विकसित राष्ट्र की श्रेणी में आकर खड़ा हो सकता है।
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