बेहद ज़रूरी है सिंह साहिबान को नियुक्त करने व हटाने के नियम तय करना

अपनी ही खुद की जात में उलझा हुआ हूं मैं,
यानी कि कायनात में उलझा हुआ हूं मैं।
जैसे कि होने वाली है अनहोनी फिर कोई,
हर पल इन्हीं ़िफकरात में उलझा हुआ हूं मैं। 
नि:संदेह सिख धर्म में ‘मीरी व पीरी’ इकट्ठे माने जाते हैं। सिख धर्म में पीरी अर्थात् धर्म को मीरी अर्थात् राजनीति के ऊपर रखने की बात की जाती है, परन्तु विगत कई दशकों से पीरी को मीरी के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। अब तो इसकी इन्तहा हो गई प्रतीत होती है। इस समय अकाली दल की सारी लड़ाई मीरी अर्थात् राजसत्ता पर काबिज़ होने की लड़ाई दिखाई दे रही है। दोनों गुट श्री अकाल तख्त साहिब की सत्ता अपने-अपने हित के लिए इस्तेमाल करने का यत्न कर रहे हैं। आश्चर्य है कि जो लोग कभी श्री अकाल तख्त साहिब के कुछ फैसलों को चुनौती देते रहे, वही इस समय स्वयं को श्री अकाल तख्त साहिब के बड़े अनुयायी सिद्ध करने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे लोग या नेता सिर्फ एक गुट में ही नहीं हैं, अपितु दोनों ओर हैं।
इस समय चाहे भाजपा नेतृत्व लगातार यह बयान दे रहा है कि वह 2027 के पंजाब विधानसभा चुनाव अकेले लड़ कर सरकार बनाएगा, परन्तु पंजाब की स्थिति देश से अलग है। यहां धार्मिक आबादी का अनुपात देश की भांति 80-20 का नहीं है। इसलिए स्पष्ट है कि भाजपा पंजाब में राजसत्ता पर कब्ज़ा करने के लिए अकाली दल के एक गुट से समझौता ज़रूर करेगी। जहां तक हमारी जानकारी है, उसके अनुसार जब तक भाजपा में भारत के गृह मंत्री अमित शाह की चलेगी, भाजपा सुखबीर सिंह बादल वाले गुट से समझौता नहीं करेगी। दूसरे गुट के कुछ नेता स्पष्ट संकेत भी दे चुके हैं कि उनका भाजपा से समझौता होना तय है। जबकि यह भी सुनिश्चित प्रतीत होता है कि सुखबीर सिंह बादल वाला गुट हथियार नहीं डालेगा और राजसत्ता की यह लड़ाई अभी जारी रहेगी। वैसे यह सिर्फ पंजाब की राजनीतिक सत्ता की ही लड़ाई नहीं है, अपितु यह शिरोमणि कमेटी पर कब्ज़ा बनाए रखने तथा कब्ज़ा करने की भी लड़ाई है। इस समय सिर्फ अरदास ही की जा सकती है कि ये लोग अपनी राजनीतिक लड़ाई अवश्य लड़ें, परन्तु इसे एक तो आपसी टकराव में बदलने से गुरेज़ करें और दूसरा, इस लड़ाई में श्री अकाल तख्त साहिब की परम्परा का नुकसान न करें। 
समय की ज़रूरत
ज़िन्दगी के मसाइल ना हल,
वक्त के साथ ़खुद को बदल।
-अ़खलाक बंदनी
यह हमारे सामने है कि लम्बे समय से राजनीतिक नेता बार-बार श्री अकाल तख्त साहिब की संस्था को अपनी ज़रूरत के अनुसार इस्तेमाल करने की कोशिश करते रहे हैं। जिसे जब श्री अकाल तख्त साहिब का कोई फैसला अपने हित में प्रतीत होता तो वह श्री अकाल तख्त साहिब को सर्वोच्च कहने लग पड़ता है और जब कोई फैसला किसी की अपनी राजनीति के लिए सही नहीं होता तो वह श्री अकाल तख्त साहिब के फैसलों पर किन्तु-परन्तु करने लग पड़ता है। जत्थेदारों को मनमज़र्ी के अनुसार हटाने तथा नियुक्त करने का भी यह पहला अवसर नहीं है और कई जत्थेदारों के फैसले संगत में अस्वीकार भी हुए हैं। ऐसी स्थिति में इस बात की ज़रूरत और अधिक प्रतीत होती है कि शिरोमणि कमेटी स्वयं ही श्री अकाल तख्त साहिब की संस्था की शान की स्थायी बहाली के लिए श्री अकाल तख्त साहिब तथा अन्य तख्तों के जत्थेदारों की नियुक्ति, योग्यता, चुनाव विधि, कार्यक्षेत्र, अधिकार, कर्त्तव्य, नियुक्ति पर रहने का समय तथा ऐसी स्थितियों जिनमें जत्थेदार को समय से पहले हटाने की ज़रूरत पड़ सकती है आदि का तरीका निर्धारित करे। यह तरीका ऐसा हो कि जत्थेदार स्वयं ही सरबत के स्वीकृत जत्थेदार बन जाएं।
सिखों के लिए वर्तमान हालात के अनुसार मीरी-पीरी के सिद्धांत की स्पष्ट व्याख्या भी की जाए ताकि समय-समय पर इसे तोड़-मरोड़ कर कोई भी पक्ष अपने राजनीतिक हित न साध सके। ध्यान दें कि भारत में 143 करोड़ की आबादी में मुसलमान 17 करोड़ से अधिक हैं, परन्तु भारत की राजनीतिक ताकत में इस समय उनका हिस्सा दो प्रतिशत भी नहीं रहा। इसका सबसे बड़ा कारण उनका शायद धार्मिक रूप में एक ओर चलने का रूझान भी है, क्योंकि भाजपा जो अब सत्ता में है, इसी रूझान को एक हथियार बनाकर बहुसंख्या को एकजुट करने में बड़ी सीमा तक सफल रही है। विगत 10 वर्षों में सिखों का प्रतिनिधित्व भी देश की राजनीति में काफी कम हुई है, परन्तु फिर भी सिख 2 करोड़ होने के बावजूद अभी सत्ता में किसी सीमा तक भागीदार हैं तो वह सिर्फ इसलिए कि सिखों ने किसी पार्टी को अछूत करार नहीं दिया। सिख प्रत्येक पार्टी में शामिल होकर आगे आने हेतु तत्पर रहते हैं। ऐसा वे सिर्फ भारत में ही नहीं करते, अपितु विश्व के कई देशों में सिख वहां की सत्ता में भागीदार हैं। मुसलमान ही नहीं आजकल तो ईसाई जो सिखों से डेढ़ गुणा हैं, भी सत्ता से बहुत दूर हैं। इसलिए हमें सिखों की धार्मिक-सामाजिक समस्याओं के समाधान के लिए राजनीति को इस्तेमाल करने की ‘जुगत’ सीखनी पड़ेगी। हमें किसी एक पार्टी में रहने के आदेश नहीं होने चाहिएं, परन्तु यह समझ एवं सोच बनानी पड़ेगी कि हम कहीं भी रहें, अपने धार्मिक विश्वास एवं धार्मिक-सामाजिक सरोकारों संबंधी सचेत रहें। श्री अकाल तख्त साहिब सिखों को जहां धार्मिक एवं सामाजिक नेतृत्व दें, वहीं जब सिख धर्म के लिए कोई साझी मुश्किल या कोई धार्मिक अन्याय हो, उस समय राजनीतिक नेतृत्व भी दें, परन्तु ऐसा तभी हो सकेगा जब प्रत्येक पार्टी का सिख स्वयं को श्री अकाल तख्त साहिब को समर्पित समझे। 
अब देखने वाली बात है कि इस समय जत्थेदार साहिबान समूचे सिख जगत को धार्मिक एवं राजनीतिक नेतृत्व नहीं दे रहे, अपितु सिर्फ एक पार्टी अकाली दल बादल की अध्यक्षता के चुनाव के मामले में ही उलझ गए हैं। सिर्फ अकाली दल बादल ही तो समूचे सिखों की अकेली पार्टी नहीं है। कितने अन्य छोटे-बड़े सिख राजनीतिक गुट भी हैं और शेष राजनीतिक पार्टियों में भी सिख भारी संख्या में हैं। हमने इस कालम में 2 दिसम्बर के श्री अकाल तख्त साहिब के फैसले का डट कर समर्थन किया था, क्योंकि हमें उस समय यह फैसला सिखों के सभी राजनीतिक गुटों की एकजुटता की ओर उठाया गया पहला कदम प्रतीत हो रहा था। प्रतीत होता था कि यह समूची कौम को अपने आगोश में लेकर एकता में पिरो सकेगा, परन्तु अफसोस कि वास्तव में ऐसा हुआ नहीं। 
अज़ीजो आओ अब एक अल-विदायी जश्न कर लें,
कि इस के बाद एक लम्बा स़फर अफसोस का है।
-खुरशीद ़खलक
नहीं बदलेगा फैसला
शिरोमणि कमेटी की अंतरिम कमेटी द्वारा जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह तथा अन्य जत्थेदारों को हटाए जाने तथा नये जत्थेदारों की नियुक्ति का सुखबीर सिंह बादल के करीबी रिश्तेदार तथा प्रमुख अकाली नेता बिक्रम सिंह मजीठिया एवं साथियों द्वारा विरोध किए जाने के बाद एक बार तो हलचल सी शुरू हो गई थी। यह प्रभाव भी बनने लगा था कि शिरोमणि कमेटी यह फैसला वापिस ले सकती है, परन्तु हमारी जानकारी के अनुसार ऐसा होने के आसार नाममात्र ही हैं। ऐसा नहीं होगा, अपितु शिरोमणि कमेटी की अंतरिम कमेटी तथा अकाली दल बादल भी इस फैसले पर कायम रहेगा। हां, इस बीच मजीठिया को मनाने के यत्न अवश्य तेज़ हो गए हैं। मजीठिया का एक बार इस बारे बयान देने के बाद चुप रहना भी यही प्रभाव दे रहा है कि वह शायद अकाली दल बादल नहीं छोड़ेंगे। 
आस्ट्रेलिया की पहली सिख सांसद
आस्ट्रेलिया में इस समय एक अनुमान के अनुसार लगभग अढ़ाई लाख सिख आबादी है। 2021 की जनगणना के अनुसार 2 लाख, 10 हज़ार सिख आस्ट्रेलिया में रहते हैं। पहले सिख सांसद गुरमेश सिंह 2019 में बने थे, वह जून 2024 में आस्ट्रेलिया की ‘न्यू साऊथ वेल्स नैशनल पार्टी’ के उप-नेता भी चुने गए थे जबकि अब आस्ट्रेलिया की लेबर पार्टी से डा. परविन्दर कौर के पहली सिख महिला सांसद बनने के पूरे आसार हैं। संसद के अपर हाऊस में लेबर पार्टी के 15 से 16 सदस्य चुने जाने की उम्मीद है। परविन्दर कौर 13वें स्थान पर है। इसलिए उनका सांसद बनना निश्चित माना जा रहा है। वह आस्ट्रेलिया की प्रसिद्ध जीव वैज्ञानिक हैं। उन्होंने प्राथमिक शिक्षा भारत में प्राप्त की और आस्ट्रेलिया की विमन हाल ऑफ फेम में भी पहली पंजाबी एवं सिख वैज्ञानिक बनने का उन्हें गौरव मिला है। 
   
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