भू-जल का प्रदूषण- ़खतरे की घंटी
किसी समय देश का सबसे खुशहाल रहा प्रदेश पंजाब इस समय अनेक समस्याओं में घिर गया है। प्रतिदिन समाचार पत्रों में कोई न कोई ऐसा समाचार अवश्य होता है, जो पंजाबियों की चिन्ता में और वृद्धि कर देता है। हाल ही में केन्द्रीय जल शक्ति मंत्रालय द्वारा लोकसभा में पंजाब के पानी की गुणवत्ता संबंधी एक रिपोर्ट पेश की गई है, जिसमें यह कहा गया है कि प्रदेश के 12 ज़िलों के पानी में आर्सेनिक की अधिक मात्रा तथा 20 ज़िलों के पानी में नाइट्रेट की अधिक मात्रा है। रिपोर्ट के अनुसार आर्सेनिक की अधिक मात्रा वाले ज़िलों में फिरोज़पुर, फाज़िल्का, श्री मुक्तसर साहिब, अमृतसर, गुरदासपुर, होशियारपुर, कपूरथला, पठानकोट, पटियाला, रूपनगर, मोहाली तथा तरनतारन आदि शामिल हैं। इन ज़िलों में आर्सेनिक की मात्रा 10 पी.पी.बी. से अधिक पाई गई है, जिस कारण कैंसर, त्वचा, फेफड़ों तथा गुर्दों संबंधी रोगों में वृद्धि हो सकती है। जिन 20 ज़िलों में नाइट्रेट की मात्रा अधिक पाई गई है, उनमें बठिंडा, पटियाला तथा लुधियाना ज़िले सबसे अधिक प्रभावित हैं। इन ज़िलों में नाइट्रेट की मात्रा प्रति लीटर 45 मिलीग्राम पाई गई है। नाइट्रेट की अधिक मात्रा नवजात शिशुओं में ब्लू बेबी सिंड्रोम तथा अन्य रोग पैदा करती है। इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि पंजाब के 26.57 प्रतिशत पानी में सोडियम कार्बोनेट की मात्रा अधिक है, जिस कारण यह पानी सिंचाई के भी योग्य नहीं है, क्योंकि सोडियम कार्बोनेट की अधिक मात्रा फसलों को भी नुकसान पहुंचा सकती है। इंडियन कौंसिल ऑफ मैडिकल रिसर्च की एक अन्य रिपोर्ट में यह कहा गया है कि पंजाब में नदी-नालों के पास रहने वाले लोगों को कैंसर का बहुत ज़्यादा ़खतरा है, क्योंकि पंजाब की कई नदियों, नालों के पानी में सीसा, लोहा तथा एल्युमीनियम जैसी भारी धातुएं पाई जा रही हैं।
यह पहली बार नहीं हुआ कि पंजाब के पानी की गुणवत्ता संबंधी इस प्रकार की भयावह रिपोर्टें सामने आई हैं। पहले भी कई प्रतिष्ठित एजेंसियों द्वारा इस प्रकार की रिपोर्टें पेश की जाती रही हैं। हाल ही में पंजाब तथा हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा तथा पंजाब के भू-जल में यूरेनियम की मात्रा अधिक पाए जाने का भी गम्भीर नोटिस लिया है और इस संबंधी अदालत ने पंजाब तथा हरियाणा सहित केन्द्रीय भू-जल बोर्ड को भी नोटिस जारी किए हैं। ये नोटिस उपरोक्त उच्च न्यायालय द्वारा एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए जारी किए गए हैं। अदालत को बताया गया था कि पंजाब के मालवा क्षेत्र से 4406 पानी के नमूने लिए गए थे, जिनमें से 108 नमूनों में यूरेनियम की अधिक मात्रा पाई गई है। अदालत ने चंडीगढ़, पंजाब के साथ-साथ हरियाणा में भी भू-जल की नये सिरे से जांच के आदेश दिए हैं।
पंजाब में जल प्रदूषण किन-किन स्रोतों से हो रहा है, इस संबंधी पंजाब सरकार अनजान नहीं है। मीडिया में अक्सर इस संबंधी समाचार भी प्रकाशित होते रहते हैं। प्रदेश में जल प्रदूषण का बड़ा कारण शहरों तथा ग्रामीण क्षेत्रों में बिना साफ किए घरों तथा फैक्टरियों का दूषित पानी नदी-नालों में डाला जाना है। अमृतसर, जालन्धर तथा लुधियाना आदि बड़े शहरों में अनेक ऐसी भी फैक्टरियां हैं जिन्होंने पानी साफ करने के प्लांट नहीं लगाए हुए और वे सीधा ही दूषित पानी सीवरेज में डालते हैं और आगे वह पानी नदियों तक पहुंच जाता है। लुधियाना का बुड्ढा नाला इसका बड़ा उदाहरण है। अब तो इंडियन कौंसिल ऑफ मैडिकल रिसर्च द्वारा यह भी कहा जा रहा है कि कृषि के लिए अधिक मात्रा में इस्तेमाल किये जा रहे कीटनाशक, नदीन-नाशक तथा रासायनिक खाद भी नदी-नालों तथा भू-जल को प्रदूषित करने का कारण बन रहे हैं। इस स्थिति के दृष्टिगत पिछले दिनों पंजाब के मंत्रिमंडल ने जल सुरक्षा तथा प्रदूषण की रोकथाम संबंधी एक कानून में संशोधन करके पानी को प्रदूषित करने वालों के खिलाफ 5 हज़ार से लेकर 15 लाख तक जुर्माना करने का फैसला भी किया था, परन्तु क्रियात्मक रूप में प्रदेश सरकार की ओर से जल प्रदूषण को रोकने के लिए कोई ठोस कार्रवाई होती सामने नहीं आई। चाहे लुधियाना के बुड्ढा नाला के जल को प्रदूषित करने के खिलाफ कुछ समाज सेवी संगठनों द्वारा कई दिनों तक निरन्तर आन्दोलन भी किया गया था।
इस संदर्भ में हमारा स्पष्ट विचार है कि पंजाब सरकार को पानी को प्रदूषित करने वाले सभी स्रोतों को बारीकी से चिन्हित करना चाहिए और इन स्रोतों से प्रदूषण बंद करने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिएं। विशेषकर उद्योगपतियों पर कानूनी तथा सामाजिक तौर पर यह दबाव डाला जाना चाहिए कि वे अपनी फैक्टरियों का दूषित, तेज़ाबी तथा धातुओं के मिश्रण वाला पानी नदी-नालों में या ज़मीन में बोर करके धरती के भीतर डालने से गुरेज़ करें। यदि इसके बावजूद वे ऐसा करते हैं तो पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तथा प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग को छापेमारी करके दोषियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। इसके साथ ही पंजाब सरकार को विशेषज्ञों की एक समिति गठित करके यह भी देखना चाहिए कि पंजाब में कृषि के लिए खाद, कीटनाशकों तथा नदीन-नाशकों का इस्तेमाल आवश्यकता से अधिक तो नहीं हो रहा और यह भी जांच की जानी चाहिए कि कृषि के लिए इस्तेमाल की जा रही खादों, कीटनाशकों तथा नदीन-नाशकों का नदियों-नालों तथा भू-जल को प्रदूषित करने में कितना हिस्सा है? यदि वास्तविक तथ्य सामने नहीं आएंगे तो पानी के प्रदूषण को रोकने के लिए प्रदेश सरकार कोई प्रभावी नीति नहीं बना सकेगी। इस बात बारे दो राय नहीं कि पानी मनुष्य के स्वस्थ जीवन के लिए पहली ज़रूरत है और यदि पंजाब में पानी के प्रदूषण को प्रभावी कदम उठा कर रोका नहीं जाता तो आगामी समय में प्रदेश के लोगों, पशुओं-प्राणियों का स्वस्थ रहना बेहद कठिन हो जाएगा। यहां पैदा होने वाले फल, सब्ज़ियां तथा अनाज भी खाने के लिए सुरक्षित नहीं रहेंगे।