आतंक का काल बनेगा स्वदेशी ड्रोन नागास्त्र-1 आर

भारतीय सेना की मारक क्षमताओं में क्रांतिकारी वृद्धि की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए भारत ने स्वदेशी आत्मघाती ड्रोन ‘नागास्त्र-1आर’ को अपने सैन्य बेड़े में शामिल करने का निर्णय लिया है। यह निर्णय केवल भारत की रक्षा प्रणाली को मज़बूती देने भर तक सीमित नहीं है बल्कि यह आत्मनिर्भर भारत अभियान की दिशा में भी एक बड़ा और निर्णायक कदम माना जा रहा है। दरअसल ‘नागास्त्र-1आर’ ड्रोन न केवल तकनीकी रूप से उन्नत है बल्कि यह सामरिक दृष्टि से भी भारत के लिए गेमचेंजर सिद्ध हो सकता है। भारतीय सेना द्वारा नागपुर की सोलर डिफेंस एंड एयरोस्पेस लिमिटेड (एसडीएएल) को 450 ‘नागास्त्र-1आर’ ड्रोन की आपूर्ति के लिए जो ऑर्डर दिया गया है, वह देश के सैन्य उद्योग क्षेत्र को मज़बूती देने के साथ-साथ भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की तकनीकी दक्षता का भी प्रमाण है। ‘नागास्त्र-1आर’ एक स्वदेशी आत्मघाती ड्रोन है, जिसे लोइटरिंग म्यूनिशन या कामिकेज ड्रोन भी कहा जाता है। इसे डीआरडीओ के सहयोग से एसडीएएल और जेड-मोशन ऑटोनोमस सिस्टम्स द्वारा ‘मेक इन इंडिया’ अभियान के अंतर्गत तैयार किया गया है। यह ड्रोन दुश्मन के क्षेत्र में मंडराते हुए अपने लक्ष्य को पहचानता है व उस पर सीधा आत्मघाती हमला करता है।
‘नागास्त्र-1आर’ ड्रोन की सबसे प्रमुख विशेषता इसका ‘कामिकेज’ मोड में काम करना है, जिसमें यह सीधे लक्ष्य पर टकराकर खुद को भी नष्ट कर देता है, जिससे दुश्मन को भारी नुकसान पहुंचता है। यह तकनीक इसे पारंपरिक ड्रोन से अलग बनाती है, जो केवल निगरानी या सीमित आक्रमण तक ही सीमित होते हैं। नागास्त्र दुश्मन के इलाके में मंडराता है, लक्ष्य की पहचान करता है और फिर सटीकता के साथ लक्ष्य पर सीधा हमला करता है। इस पूरे अभियान में सैनिकों की जान को कोई खतरा नहीं होता, जिससे यह एक सुरक्षित और स्मार्ट विकल्प बन जाता है। इस ड्रोन में उन्नत जीएनएसएस और जीपीएस आधारित ने विगेशन प्रणाली है, जिसकी मदद से यह बेहद सटीक निशाना लगा सकता है। यह प्रणाली ऐसे क्षेत्रों में भी सफल होती है, जहां दुश्मन ने जामिंग सिस्टम सक्रिय कर रखे हों। नागास्त्र-1आर 4500 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर उड़ान भर सकता है, जिससे इसे रडार द्वारा पकड़ना अत्यंत कठिन हो जाता है। साथ ही इसमें रात्रि निगरानी के लिए थर्मल कैमरा और 360 डिग्री गिंबल कैमरा भी लगाया गया है, जिससे यह दिन-रात, किसी भी मौसम में निगरानी और हमला करने में सक्षम है।
नागास्त्र का वजन करीब नौ किलोग्राम है और यह एक से डेढ़ किलोग्राम तक का वारहेड ले जाने में सक्षम है। यह 60 मिनट तक दुश्मन के इलाके में मंडरा सकता है और लक्ष्य मिलने पर तुरंत सटीक हमला कर सकता है। यह ‘मैन-इन-लूप’ मोड में 15 किलोमीटर की रेंज जबकि स्वचालित मोड में 30 से 40 किलोमीटर की रेंज में कार्य करता है। इसमें इलैक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम लगाया गया है, जो इसे लगभग मूक बनाता है। विशेषज्ञों के अनुसार 200 मीटर से ऊपर उड़ान भरते समय इसकी ध्वनि का पता लगाना लगभग असंभव है। इस तकनीक के कारण यह दुश्मन की रडार और श्रव्य निगरानी से बच निकलता है। इसकी एक अन्य महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि नागास्त्र एक किफायती प्रणाली है। इसका लांचर सिस्टम पुन: उपयोग योग्य है, जिससे लॉजिस्टिक लागत में कमी आती है। इसके अलावा यदि लक्ष्य नहीं मिलता है या मिशन को किसी कारण वश रोकना पड़ता है तो इसे वापस बुलाया जा सकता है। ऐसे में यह पैराशूट की सहायता से सुरक्षित रूप से लैंड कर सकता है। इस प्रकार यह प्रणाली संसाधनों की बर्बादी नहीं होने देती और पुन: उपयोग की संभावना देती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि ‘नागास्त्र-1 आर’ का उपयोग आतंकवाद विरोधी अभियानों में निर्णायक सिद्ध हो सकता है। ऑपरेशन सिंदूर में इस ड्रोन की उपस्थिति ने इसकी सामरिक उपयोगिता को प्रमाणित कर दिया है। पाकिस्तान समर्थित आतंकी कैंपों पर किए गए लक्षित हमलों में नागास्त्र के प्रारंभिक संस्करण ने अपनी क्षमताओं का प्रभावी प्रदर्शन किया, जिससे भारत को रणनीतिक लाभ प्राप्त हुआ। ऐसे अभियानों में इसकी भूमिका आतंकवाद के विरुद्ध भारत की आक्रामक नीति की झलक देती है। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार ‘नागास्त्र-1आर’ जैसे लोइटरिंग म्यूनिशन भारत की थलसेना के लिए गेमचेंजर हो सकते हैं। सीमित टुकड़ियों की तैनाती में इनका प्रयोग सैनिकों की जान बचाने के साथ-साथ उच्च मारक प्रभाव भी सुनिश्चित करता है। दरअसल इस ड्रोन का प्रयोग सैनिकों को दुश्मन की सीधी गोलीबारी से बचाता है क्योंकि यह दूर से ही दुश्मन के ठिकानों को ध्वस्त करने की क्षमता रखता है। यह ड्रोन सीमा पार सर्जिकल स्ट्राइक जैसी कार्रवाइयों के लिए उपयुक्त है। इसके माध्यम से लक्ष्य का सटीक भेदन संभव है।
नागास्त्र का निर्माण आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को साकार करता है। इसमें 80 प्रतिशत से अधिक स्वदेशी सामग्री का उपयोग हुआ है, जो भारत की रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता की ओर एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे विदेशी रक्षा उपकरणों पर निर्भरता घटेगी और देश में रक्षा क्षेत्र में रोज़गार के नए अवसर सृजित होंगे। साथ ही इससे भारत रक्षा उत्पादों के निर्यातक देशों की सूची में शामिल होने की दिशा में भी आगे बढ़ेगा। यह विदेशी तकनीकों की तुलना में 40 प्रतिशत तक सस्ता है और इसकी मुरम्मत तथा पुन: उपयोग की सुविधा इसे और अधिक लाभकारी बनाती है। रक्षा विश्लेषकों का मानना है कि नागास्त्र-1आर जैसा ड्रोन भारत के लिए सस्ता लेकिन अत्यधिक प्रभावशाली समाधान है, जो सीमित संसाधनों में बड़ा सामरिक लाभ दिला सकता है। इसकी पुन: प्रयोग करने योग्य प्रणाली इसे और भी अधिक कुशल बनाती है। नागास्त्र-1आर का जमीनी और पहाड़ी इलाकों में परीक्षण सफलतापूर्वक किया गया है। 
नागास्त्र-1आर के बाद भारत की भविष्य की योजनाएं नागास्त्र-2 और उसके बाद नागास्त्र-3 विकसित करने की हैं। नागास्त्र-1आर में जहां एक-डेढ़ किलोग्राम तक वारहेड की क्षमता है, वहीं नागास्त्र-2 में अधिक वजन (12 किलोग्राम) वाले वारहेड की क्षमता होगी और इसका उड़ान समय 90 मिनट तक तथा टारगेटिंग रेंज लगभग 25 किलोमीटर तक होगी। यह हल्के बख्तरबंद वाहनों तक को नष्ट करने की भी क्षमता से लैस होगा। नागास्त्र-3 भविष्य का एक उच्चस्तरीय ड्रोन होगा, जिसकी रेंज 100 किलोमीटर से अधिक होगी और यह 5 घंटे तक हवा में रह सकता है। इसे मध्यम दूरी के लक्ष्यों को भेदने के लिए विकसित किया जा रहा है। इनके अलावा अन्य महत्वपूर्ण परियोजनाओं में एंटी-ड्रोन माइक्रो-रॉकेट प्रणाली ‘भार्गवास्त्र’ पर भी कार्य हो रहा है तथा एक वर्टिकल टेक-ऑफ एवं लैंडिंग (वीटीओएल) यूएवी ‘रुद्रास्त्र’ भी विकसित किया जा रहा है।

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