महारानी दीपइंद्र कौर की मौत के पश्चात् र् महाराजा फरीदकोट की जायदाद पुन: चर्चा में


फरीदकोट, 13 नवम्बर (जसवंत सिंह पुरबा): फरीदकोट रियासत के अंतिम महाराजा, महाराजा हरेंद्र सिंह बराड़ बंस बहादर की मंझली बेटी व वर्धमान रियासत पश्चिम बंगाल की महारानी दीपइंद्र कौर की मौत के पश्चात् महाराजा फरीदकोट की 25 हज़ार करोड़ की जायदाद का मामला एक बार पुन: चर्चा में है। महारानी दीपइंद्र कौर की मौत के पश्चात् महाराजा फरीदकोट के वंश से एक बेटी अमृत कौर इस समय जीवित है। महाराजा की जायदाद का मामला सबसे पहले वर्ष 2013 में सामने आया था। जब चंडीगढ़ की निचली अदालत ने केस की सुनवाई के दौरान महाराजा का वसीयतनामा जिसके माध्यम से महरावल खीवा जी ट्रस्ट महाराजा की करीब 25 हज़ार करोड़ रुपए की जायदाद को संभाल रहा है, को गलत करार देते हुए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार महाराजा की दोनों बेटियां अमृत कौर व महारानी दीपइंद्र कौर को जायदाद का वारिस बना दिया था। यह फैसला अदालत ने अमृत कौर की याचिका की सुनवाई करते हुए दिया था। जिसमें उसने महाराजा की 1982 की वसीयत को चुनौती दी थी। बता दें कि इस वसीयत के माध्यम से महाराजा ने अपनी सारी जायदाद का वारिस महरावल खेवा जी ट्रस्ट को बना दिया था। जिसकी चेयरपर्सन महारानी दीपइंद्र कौर व उप चेयरपर्सन महिताब कौर को बनाया गया था। इसी वसीयत द्वारा महाराजा ने अपनी सबसे बड़ी बेटी अमृत कौर को जायदाद से बेदखल कर दिया था, क्यों कि उसने महाराजा की इच्छा के विपरीत शादी करवाई थी। महाराजा फरीदकोट के कुल चार बच्चे थे। सबसे बड़ी बेटी अमृत कौर, दूसरी महारानी दीपइंद्र कौर, तीसरी महिताब कौर व एक बेटा हरमोहिंदर सिंह। महाराजा हरेंद्र सिंह की पत्नि महारानी नरेंद्र कौर थीं व राज माता मोहिंदर कौर  थीं। महाराजा के बेटे की 1981 में एक सड़क हादसे में मौत हो गई थी। इसके पश्चात् महाराजा मानसिक तनाव में चले गए और साल 1982 की यह वसीयत महाराजा के बेटे की मौत के पश्चात् 7-8 महीने बाद लिखी गई। 
साल 1989 में महाराजा की मौत हो गई थी। जिसके पश्चात् एक और वसीयत सामने आई जिसके माध्यम से महाराजा ने अपनी जायदाद अपनी तीनों बेटियों के नाम की थी। वर्ष 2010 में महाराजा की सबसे बड़ी बेटी अमृत कौर ने इस वसीयत के माध्यम से 1982 की वसीयत को चुनौती दी थी। उसने अपनी इस याचिका में कहा था कि महाराजा साहिब की 1982 की वसीयत पर कई प्रश्न चिन्ह खड़े होते हैं। पहले यह जब यह वसीयत लिखी गई थी तो उस समय महाराजा मानसिक तौर पर सही नही थे। बेटे की मौत के कारण वह मानसिक तनाव में थे। उन्होंने कहा कि यह वसीयत उन पर दबाव डाल कर बनाई गई थी। दूसरी संदेह वाली बात यह है कि 1982 की इस वसीयत के समय महाराजा की माता व पत्नी दोनों जीवत थीं पर फिर भी उन्होंने उन्होंने शाही वसीयत, सारी जायदाद उन्होंने मौत के उपरांत एक ट्रस्ट के सुपुर्द करने के लिए लिखी। जिसमें उनकी माता व पत्नी सदस्य नही थीं। 
इसके साथ ही संदेह वाली बात यह भी है कि ट्रस्ट के सदस्य के रूप में अपने सभी कर्मचारियों को लिया था चाहे वह किसी भी रुतबे व किसी ओदहे पर थी। वसीयत का एक गवाह बरजिंदर सिंह बराड़ स्वयं लाभार्थी था। इन दलीलों को ध्यान में रखते हुए निचली अदालत ने 1982 की इस वसीयत को अवैध करार देते महाराजा की सारी जायदाद को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के अंतर्गत उस समय के महाराजा के जीवत वारिसों अमृत कौर व महारानी दीपइंद्र कौर के नाम कर दी थी। महाराजा की तीसरी बेटी महिताब कौर की साल 2003 में मौत हो गई थीं व आजीवन अविवाहित ही रहीं। 
अदालत ने इस फैसले को ट्रस्ट द्वारा चंडीगढ़ की जिला अदालत में चुनौती दी। इसके साथ ही एक तीसरे गुट ने भी इस फैसले को चुनौती दी। तीसरे गुट में महाराजा फरीदकोट के भतीजे टिक्का भरतइंद्र सिंह ने अदालत के आगे यह दलील रखी कि इन्हैरीटैंस अर्थात् उत्तराधिकार के शाही कानून के अनुसार महाराजा की जायदाद उनकी मौत के पश्चात् परिवार में जीवित सबसे बड़े पुरुष वारिस को जाती है और साल 1989 में महाराजा की मौत के समय उनके छोटे भाई टिक्का मनजीतइंद्र सिंह सबसे बड़े पुरुष वारिस थे। इसलिए इस जायदाद के असली हकदार अपने पिता स्व: टिक्का मनजीतइंद्र के माध्यम से वह हैं। चंडीगढ़ ज़िला अदालत ने भी इन दोनों दलीलों को दरकिनार करते हुए निचली अदालत का फैसला कायम रखा। अब यह यह मामला पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में विचाराधीन है। जिसकी अग्रिम सुनवाई 21 नवम्बर, 2018 को है। हाईकोर्ट में चल रहे इस मामले के समय ही महारानी दीपइंद्र कौर की पिछले रविवार को मौत हो चुक है व उनके बाद ट्रस्ट द्वारा इस मामले की पैरवी ट्रस्ट के उप चेयरमैन व महारानी के बेटे जयचंद महिताब करेंगे। ट्रस्ट की चेयरमैन पद के भी वही सबसे मजबूत दावेदार हैं। तीसरे गुट में भी टिक्का भरतइंद्र सिंह की साल 2016 में मौत हो चुकी है व अब उनके बेटे अमरेद्र सिंह टिक्का इस मामले की पैरवी कर रहे हैं। टिक्का भरतइंद्र सिंह हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व रामपुर शाही परिवार के राजा वीरभद्र सिंह के समधी हैं। महाराजा की जायदाद का यह मामला इतना पेचीदा इस कारण है क्योंकि जायदाद की कुल कीमत 20 से 25 हज़ार करोड़ की बताई जाती है जो कि शायद आज़ाद भारत में किसी राज घराने की सबसे मूल्यवान सम्पत्ति है।