नहीं लग रहा मिलावटखोरी पर अंकुश

हर साल त्योहारों पर देशभर से मिलावटी मावा और मिलावटी मिठाइयों की खबरे आती हैं। प्रश्न है कि आखिर मिलावट का बाज़ार इतना धडल्ले से क्यों पनप रहा है, क्यों सिस्टम लाचार है, मिलावटखोरी का अंत क्यों नहीं हो पा रहा है? लोकसभा चुनाव के दौरान मिलावट की त्रासद एवं जानलेवा घटनाओं का उजागर होना क्यों नहीं चुनावी मुद्दा बनता?
खाद्य सामग्री मिलावट के कारण दूषित एवं जानलेवा हो गई है। देश में खाद्य पदार्थों में मिलावट मुनाफाखोरी का सबसे आसान जरिया बन गई है। खाने-पीने की चीजें बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं हैं। किसी भी वस्तु की शुद्धता के विषय में हमारे संदेह एवं शंकाएं बहुत गहरा गयी हैं। मिलावट का धंधा शहरों से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक भी फैला हुआ है और इसकी जड़ें काफी मज़बूत हो चुकी हैं। जीवन कितना विषम और विषभरा बन गया है कि सभी कुछ मिलावटी है। खाने वालों को आभास भी नहीं होता कि वे धीरे-धीरे किसी गम्भीर बीमारी की ओर जा रहे हैं। प्रशासन की सक्रियता के बावजूद मिलावटखोरी जारी है। उनकी वजह से दूसरे देशों का भी भरोसा भारतीय उत्पादों पर कम होने की स्थितियां बनती जा रही हैं। कुछ दिनों पहले ही हांगकांग और सिंगापुर ने लिमिट से ज्यादा पेस्टिसाइड का आरोप लगाकर दो भारतीय ब्रैंड के कुछ मसालों को बैन किया था। अगर ऐसा हुआ तो इनके निर्यात से करोड़ों डॉलर की आमदनी पर आंच आएगी।
मिलावट करने वालों को न तो कानून का भय है और न आम आदमी की जान की परवाह है। दुखद एवं विडम्बनापूर्ण तो ये स्थितियां हैं जिनमें खाद्य वस्तुओं में मिलावट धडल्ले से हो रही है और सरकारी एजेन्सियां इसके लाइसैंस भी आंख मूंदकर बांट रही है। जिन सरकारी विभागों पर खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता बनाए रखने की ज़िम्मेदारी है, वे किस तरह से लापरवाही बरत रही है, इसका परिणाम आये दिन होने वाले फूड प्वाइजनिंग की घटनाओं से देखने को मिल रही है। मिलावट का कारोबार अगर फल-फूल रहा है तो जाहिर है कि इसके खिलाफ जंग उस पैमाने पर नहीं हो रही है, जैसी होनी चाहिए। इस मामले में भारत अपने पड़ोसी देश बांग्लादेश से कुछ सबक ले सकता है, जिसने हल्दी में लेड की मिलावट पर काबू पा लिया। मिलावटखोर हल्दी की चमक बढ़ाने के लिए लेड का इस्तेमाल करते हैं और यह समस्या पूरे दक्षिण एशिया की है।
कारोबार में बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण मिलावट हर जगह देखने को मिलती है। कहीं दूध में पानी की मिलावट होती है, तो कहीं मसालों में रंगों की। दूध, चाय, चीनी, दाल, अनाज, हल्दी, फल, आटा, तेल, घी आदि घरेलू उपयोग की वस्तुओं में मिलावट की जा रही है। पूरे पैसे खर्च करके भी हमें शुद्ध खाने का सामान नहीं मिल पाता है। मिलावट इतनी सफाई से होती है कि असली खाद्य पदार्थ और मिलावटी खाद्य पदार्थ में फर्क करना मुश्किल हो जाता है। 
दूध में मिलावट का कोई अंत नहीं। नकली मावा बिकना तो आम बात है। राजस्थान और गुजरात में चल रहा नकली ज़ीरे का कारोबार अब दिल्ली एवं देश के अन्य हिस्सों तक पहुंच गया है। दिल्ली में पहली बार पकड़ी गई नकली ज़ीरे की खेप ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। भारत के लोगों को न शुद्ध हवा मिल रही है और न शुद्ध पानी और न ही शुद्ध खाने का निवाला। मिलावट के कारण एक बीमार समाज का निर्माण हो रहा है।  खाद्य उत्पाद विनियामक भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने 2006 के खाद्य सुरक्षा और मानक कानून में कड़े प्रावधान की सिफारिश की थी। कानून को सिंगापुर के सेल्स आफ  फूड एक्ट कानून की तर्ज पर बनाया गया जो मिलावट को गम्भीर अपराध मानता है। (अदिति)