दो पंजाबी व एक अंग्रेज़ महिला ने ठुकराई थी मुआवज़े की पेशकश

अमृतसर, 12 अप्रैल (सुरिन्द्र कोछड़) : 13 अप्रैल 1919 के जलियांवाला बाग कांड में मारे जाने वाले लोगों के परिवारों में से अमृतसर की दो गैरतमंद महिलाएं अतर कौर तथा रतन देवी ने अंग्रेजी सरकार द्वारा मृतक परिवारों को दी जाने वाली मुआवज़े की राशि यह कहकर ठुकरा दी थी कि वह हत्यारी सरकार की तरफ से अपने पतियों के कत्ल के मूल्य नहीं लेंगी। इन महिलाओं के परिवारों के लिए अंग्रेज़ी सरकार द्वारा 25-25 हज़ार रुपए मुआवज़े की राशि जारी की गई थी। वर्णनीय है कि उक्त कांड के दो वर्ष बाद 15 जून 1921 को अंग्रेज़ी सरकार द्वारा जलियांवाला बाग कांड के मृतकों के परिवारों को मुआवज़ा देने की कार्रवाई शुरू की गई। जिसके चलते बाग में शहीद होने वालों के परिवारों के साथ-साथ उन सभी लोगों को भी मुआवज़ा दिया गया, जिनका इस कांड में किसी भी प्रकार का कोई वित्त नुक्सान हुआ था।
वर्णनीय है कि अतर कौर, जो जलियांवाला बाग कांड के समय गर्भवती थी, कांड वाली रात ही हिम्मत करके एक व्यक्ति की मदद से अपने पति भागमल का शव अपने घर ले गई थी। पति की मौत के समय बड़े पुत्र मोहन लाल की आयु 3-4 वर्ष की होने कारण वह अपने पिता का लकड़ी का कारोबार संभालने के योग्य नहीं थी। जिस कारण शीघ्र बाद में कारोबार बिल्कुल बंद हो गया तथा परिवार आर्थिक संकट में आ गया। इस पर अतर कौर ने मेहनत मज़दूरी करके अपना तथा बच्चों का पेट पाला परन्तु किसी भी सरकार आगे आर्थिक मदद के लिए झोली नहीं फैलाई।
उक्त कांड में शहीद होने वाले छज्जू मल की विधवा रतन देवी भी उसी रात जलियांवाला बाग में पहुंच गई परन्तु रात को शहर में कर्फ्यू लगा होने कारण वह अपने पति का शव घर न ले जा सकी। रतन देवी द्वारा उस समय दिए गए बयानों अनुसार अचानक वहां उसको बांस की एक लाठी मिल गई, जोकि बाग में पड़े शवों के पास आ रहे कुत्तों को हटाने के लिए उसने हाथ में पकड़ ली। उसके पति के शव के पास ही तीन व्यक्ति अपने ज़ख्मों की पीड़ा से तड़प रहे थे। सारी रात बाग में पड़े शवों के पास रहने के बाद सुबह 6 बजे के लगभग उसके मोहल्ले के कुछ आदमी एक चारपाई लेकर वहां पहुंच गए। जिसके बाद छज्जू मल का शव वह घर ले जा सकी। उक्त दो पंजाबी महिलाओं सहित उस अंग्रेज़ लड़की ने भी अंग्रेज़ सरकार द्वारा दी 50,000 रुपए की मुआवज़े की राशि लेने से साफ इंकार कर दिया था, जिसको 10 अप्रैल को दोपहर अमृतसरियों की भड़की भीड़ द्वारा उस वक्त तक लाठियों से पीटा जाता रहा जब तक उनको यह विश्वास नहीं हो गया कि वह मर चुकी है। चर्च ऑ़फ इंग्लैंड जनाना मिशनरी सोसायटी के लिए काम करने वाली मिस मारशीला शेरवुड, जोकि उन दिनों सिटी स्कूल की मैनेजर भी थी, ने केवल अपनी घड़ी तथा साइकिल की मुरम्मत के ही पैसे लेने स्वीकार किए, जो भड़की भीड़ द्वारा उससे मारपीट करते हुए बुरी तरह से तोड़ दिए थे।