विरसे की संभाल व पंजाबीयत की बात करती है फिल्म ‘आटे दी चिड़ी’

जालन्धर, 18 अक्तूबर (हरविन्द्र सिंह फुल्ल): पंजाबी सिनेमा कॉमेडी के दौर से निकल कर लगता है कि संजीदा विषयों की ओर चल पड़ा है। ऐसा ही देखने को मिला है दुनिया भर के सिनेमों में आज रिलीज़ हुई निर्माता चरनजीत सिंह वालिया व तेगवीर सिंह वालिया की तेग प्रोडक्शन के बैनर तले तैयार पंजाबी फिल्म ‘आटे दी चिड़ी’ में। जालन्धर सर्ब मल्टीपलैक्स में प्रदर्शित इस फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे लोग पंजाब में सरदारी छोड़ विदेशों में चमशीनों की तरह काम करते हैं। पैसे कमाने के चक्कर में वह कैसे अपने घर में रहते हुए बच्चों से दूर, अभिभावकों के सत्कार व अपने विरसे से दूर होते जा रहे हैं। वह लोग जो पंजाब से भले समय में पंजाब छोड़ विदेशों में कमाई करने गए वह न तो वहां का सभ्याचार अपना सके व न ही अपने को भुला सके, आज भी वह अपना उस जैसा पंजाब लोचते हैं जैसा वह छोड़ कर गए थे। फिल्म में दिखाया गया कि एक परिवार का प्रमुख दलीप सिंह (सरदार सोही) पैसे कमाने के चक्कर में कैसे अपनी सरदारी, अपनी मिट्टी अपना पंजाब छोड़ कनाडा चला जाता है। वह अपने पुत्र विक्रम (अमृत मान) की शादी कनाडा की रहने वाली लीजा (नीरू बाजवा) के साथ कर देता है और उसके बच्चे को पंजाब सभ्याचार में पालन पोषण की बात करता है परन्तु उसकी बहू उसकी एक नहीं चलने देती। इन बातों से दुखी वह फिर अपने पंजाब वापस लौटने के लिए मजबूर होता है। यहां आकर क्या देखता है कि उसके घर की संभाल करने वाला बिहारी गुलाब सिंह (कर्मजीत अनमोल) कैसे अपने बच्चों को पंजाबी पढ़ाते देख खुशी महसूस करता है, परन्तु ऐसी कौन सी घटना होती है कि उसको अपना पंजाब गंधला नज़र आने लगता है। उसको ऐसा क्यों लगता है कि ‘आटे दी चिड़ी’ उडारी मार गई। निर्देशक हैरी भट्टी ने रिश्तों की सांझ व कुछ कहावतों को बहुत ही खूबसूरत ढंग से फिल्माया है। फिल्म में कहानी की मांग के अनुसार तीन गाने हैं जो फिल्म को और भी दिलचस्प बनाते हैं। फिल्म में गुरप्रीत घुग्गी, निशा बानो, बी.एन. शर्मा व हरबी संघा द्वारा भी वर्णनीय कार्य किया गया है। फिल्म पारिवारिक व जज़्बातों से भरपूर है। फिल्म में कॉमेडी है जो कहानी में उपजती है व दर्शकों को व्यस्त रखती है फिल्म साफ-सुथरी है व इसको हर वर्ग का व्यक्ति परिवार के साथ बैठ कर देख सकता है।