सर्वोच्च बलिदान को नमन्

घर का आंगन सूना हो गया, जिस आंगन में बचपन बिताया, मां से प्यार लिया और पढ़ाई के लिए मां की डांट भी खाई, बाप के कंधे पर बैठ मेले देखे और बहनों से कलाई पर राखी बंधवाई वह बेटा, भाई पल भर में ही सारे रिश्ते-नाते तोड़ उस जगह चला गया, जहां से कोई वापिस नहीं लौटता। मां का, पिता का, बहनों-भाइयों का, बच्चें व पत्नी का इंतजार खत्म हो गया। बच्चें मां से पूछ रहे होंगे पापा अब छुट्टी पर कब घर आयेंगे और मां बेसुध होकर  घर के किसी कोने में गमगीन बैठी होगी। मां-बाप को आखिरी समय में कंधा देने वाला तो कमर ही तोड़ गया, कौन भेजेगा रंग-बिरंगे खिलौने, चाकलेट व कश्मीरी अखरोट, पल भर में ही एक जीता-जागता जवान मांस के चिथड़ों में तबदील हो गया। बच्चें को क्या पता था पहले जब पापा वर्दी में आते थे और आते ही राजदुलारों को गोद में उठा लेते लेकिन अब पापा आयेंगे तो सही मगर तिरंगे में लिपटे हुए और लायेंगे बहुत सारा शोक व रुदन तथा न पूरी होने वाली उम्मीद।