पशुओं के लिए गर्मियों के स्तरीय हरे चारे का प्रबंध

पशुओं से कम खर्चे में अधिक दूध लेने के लिए पशुओं को हरे चारे की आवश्यकता है। पी.ए.यू. द्वारा लगाए गए अनुमान के अनुसार कम से कम एक पशु को 40 से 50 किलो हरा चारा प्रति दिन चाहिए। इस समय सिर्फ 31.4 किलो हरा चारा प्रति पशु उपलब्ध है। यह खपतकारों के सस्ता और पौष्टिक दूध उपलब्ध करने के लिए नाकाफी है। हरे चारे की लगभग 9 लाख हैक्टेयर रकबे में बिजाई की जाती है जिसमें 5.5 लाख हैक्टेयर के करीब खरीफ में बिजाई की जाती है। हरे चारे की वार्षिक उपज सन् 2017-18 में 707 लाख टन थी जबकि पशुओं की संख्या 81.2 लाख थी जिनमें से 62.4 लाख बड़े पशु थे। हरे चारे की काश्त के तहत और रकबा लाना तो मुश्किल है परन्तु इस रकबे में दोगला नेपियर बाजरे जैसे चारे की बिजाई करके और बार-बार कटाई वाले चारे की काश्त करके उपज में वृद्धि की जा सकती है। 
पी.ए.यू. और भारतीय कृषि खोज संस्थान से सम्मानित इनोवेटिव किसान बलबीर सिंह जड़िया, धर्मगढ़ (अमलोह) कहते हैं कि दोगला नेपियर बाजरा हरे चारे की रिज़र्व बैंक है। इसकी बिजाई अब अप्रैल के मध्य तक समाप्त कर देनी चाहिए। इसके बाद जो दोगला नेपियर चारे की बिजाई की जाएगी उसकी जड़ें और कलमें नष्ट होनी शुरू हो जाती हैं और पूरे उत्पादन की प्राप्ति नहीं होती। मार्च से नवम्बर के दौरान भरपूर फसल ली जा सकती है। उसकी उन्नत किस्म पी.बी.एन.-342 का औसत उत्पादन 877 क्ंिवटल प्रति एकड़ है। दूसरी किस्म पी.बी.एन.-346 का औसत उत्पादन 715 क्ंिवटल प्रति एकड़ है। पी.बी.एन.-233 किस्म का उत्पादन 1100 क्ंिवटल प्रति एकड़ बताया जाता है। पी.बी.एन.-83 किस्म का उत्पादन 960 क्ंिवटल प्रति एकड़ के लगभग है। नेपियर बाजरा बहु-वर्षीय फसल है। एक एकड़ की बिजाई के लिए 11 हज़ार के लगभग जड़ें या कलमें चाहिएं। बिजाई के समय कलमों तथा जड़ों का थोड़ा हिस्सा ज़मीन के बाहर रखना चाहिए। पौधों और कतारों में अंतर 90×40 या 60×60 सैंटीमीटर रखना चाहिए। बैडों पर लगाई हुई फसल का उत्पादन अधिक है। मूल फसल को प्रत्येक वर्ष 240 किलो सुपर फासफेट 2 किश्तों में डालने की सिफारिश की गई है। पहली किश्त बहार ऋतु और दूसरी किश्त बरसातों में। गर्मियों में 8-10 दिन बाद पानी लगाने की आवश्यकता है। इसके बाद मौसम के अनुसार 10 से 14 दिन के अन्तराल पर पानी की ज़रूरत है। परन्तु बरसातों के दिनों में खेत में खड़ा पानी निकाल देना चाहिए ताकि पौधे न मरें। फसल की कटाई लेट नहीं करने चाहिए।  
नेपियर बाजरे के अतिरिक्त, रबी में और स्तरीय चारे भी उगाए जा सकते हैं। दाने के मुकाबले पशुओं को फलीदार चारे से प्रोटीन सस्ता मिलता है और हरा चारा वैसे भी ताकत भरपूर होता है। अन्य चारे में बरसीम लिया जा सकता है जिसकी मार्च अप्रैल में बहुत वृद्धि होती है, जिस समय बरसीम के अतिरिक्त चारे को सूखा कर हेय बना कर संभाला और स्टोर किया जा सकता यदि मई-जून में जब हरे चारे की कमी होती है तो पशुओं को दिया जा सकता है। बरसीम की बिजाई सितम्बर के अंतिम सप्ताह से लेकर अक्तूबर के पहले सप्ताह तक की जाती है। 
इसका प्रति एकड़ 10 किलो बीज पड़ता है। शफतल की सुधरी हुई किस्म शफतल 69 है जिसके हरे चारे का उत्पादन 390 क्ंिवटल प्रति एकड़ तक है। लूसन की बिजाई अक्तूबर के मध्य में की जाती है। बिजाई के लिए 6 से 8 किलो बीज को ड्रिल से बीजा जाना चाहिए। यह फसल बिजाई से 75 दिन बाद पहली कटाई के लिए तैयार हो जाती है। लूसन की सीधी और जल्द बढ़ने वाली किस्म एल.एल. कम्पाज़िट 5 है, जो प्रति एकड़ 280 क्ंिवटल तक चारा देती है। चारे की एक और किस्म सेंजी है जिसकी बिजाई 25 सितम्बर से लेकर अखीर अक्तूबर तक की जा सकती है। इसकी नरमे और मक्की की खड़ी फसलों में सितम्बर के दूसरे और तीसरे सप्ताह में भी बिजाई की जा सकती है। जवी भी हरे चारे की किस्म है जिसकी बिजाई का उचिस समय अक्तूबर के दूसरे सप्ताह से अंतिम सप्ताह तक है। इसकी बिजाई के लिए 25 किलो बीज प्रति एकड़ की ज़रूरत है। 
एक और किस्म राई घास है। राई घास की बिजाई का उचित समय सितम्बर के अंतिम सप्ताह से शुरू होकर अक्तूबर तक है। इसकी एकड़ में बिजाई के लिए 4 किलो बीज की ज़रूरत है। राई घास पर किसी किस्म के भी नदीननाशक का छिड़काव नहीं करना चाहिए क्योंकि यह एक संवेदनशीन फसल है।