गेहूं की काश्त किसानों के लिए लाभकारी नहीं

फरवरी-मार्च में तापमान बढ़ने और तेज़ हवाएं चलने के बाद गेहूं की उत्पादकता प्रभावित हुई है। आई.आर.ए.आर.-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली के डायरैक्टर डा. अशोक कुमार सिंह के अनुसार जो देश में 115 मिलीयन टन उत्पादन होने का अनुमान लगाया जा रहा था, अब उसके 5 प्रतिशत तक कम होने की संभावना है। स्टेट अवार्डी राजमोहन सिंह कालेका बिशनपुर छन्ना, पीएयू किसान सलाहकार कमेटी के सदस्य बलबीर सिंह जड़िया धर्मगढ़ (अमलोह), गुरमेल सिंह गहलां और गुरिन्दर पाल सिंह भवानीगढ़ जैसे प्रगतिशील उत्पादकों का कहना है कि पंजाब सरकार ने जो 177 लाख टन उत्पादन का लक्ष्य रखा था, उसकी प्राप्ति की संभावना बहुत कम है। 
किसानों द्वारा सबसे अधिक रकबे पर बीजी गई एच.डी.-3086 किस्म के उत्पादन में काफी कमी आई है। गत वर्षों के दौरान यह किस्म आम किसानों को अधिक उत्पादन दे रही है। यह किस्म फसलों की किस्मों की स्वीकृति देने वाली आल इंडिया कमेटी की ओर से 2014 में रिलीज़ की गई थी। यह किस्म पकने को 143 दिन लेती है और इसके उत्पादन की क्षमता 71 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर तक है। दूसरी बीजी गई किस्में जैसे डी.बी.डब्ल्यू-187, डी.बी.डब्ल्यू-222, एच.डी.-3226, उन्नत डी.बी.डब्ल्यू-343 आदि का उत्पादन भी कृषि वैज्ञानिकों तथा ब्रीडरों द्वारा बताई गई समर्था के अनुसार नहीं आया। चाहे बिजाई के बाद शुरू-शुरू में तापमान का कम होना सहायक हुआ परन्तु अंत में पकने के समय तापमान का बढ़ना हानिकारक सिद्ध हुआ। अधिकतर किसान फसल को आखिरी पानी देने में भी असमर्थ रहे। कुछ किसान दो छिड़काव करने के बावजूद गुल्ली डंडे पर काबू नहीं पा सके। जो कई खेतों में 40 प्रतिशत तक उत्पादन को कम करने का कारण बना। 
कंवलजीत सिंह कौल कहते हैं कि डी.बी.डब्ल्यू-187 और डी.बी.डब्ल्यू-222 किस्मों की उत्पादकता उसके खेतों में 24 से 25 क्ंिवटल के मध्य आई, जो इन किस्मों की समर्था के कम है। इसी तरह हरबंस सिंह टिवाना रैमनमाजरी (भादसों) और जगमोहन सिंह मंडोली के अनुसार भी उनके द्वारा काश्त की गई इन दोनों किस्मों की उत्पादकता उनकी समर्था से नीचे ही रही। जिन थोड़े से किसानों को आई.ए.आर.आई. रिजनल स्टेशन करनाल या कौलैबोरेटिव आऊट स्टेशन रिसर्च सैंटर रखड़ा से एच.आई.-1620 किस्म का बीज मिला, उनके द्वारा लगाई गई इस किस्म ने आई.सी.ए.आर.-भारतीय जौ और गेहूं के अनुसंधान संस्थान द्वारा दावा की जा रही सभी किस्मों से अधिक उत्पादन देने वाली डी.बी.डब्ल्यू.-303 किस्म के बराबर 27 क्ंिवटल प्रति एकड़ का उत्पादन दिया। इससे स्पष्ट है कि नई किस्में विकसित की जा रही है। किस्मों की उत्पादकता पुरानी किस्मों के मुकाबले अधिक है। भुपेन्द्र सिंह एम.के. सीड मुंडखेड़ा (पटियाला), पंजाब के प्रसिद्ध बीज विक्रेता रविन्द्रजीत सिंह भट्ठल, भट्ठल बीज फार्म लुधियाना द्वारा मिलीं रिपोर्टें भी उपरोक्त स्थिति की पुष्टि करती हैं। 
उत्पादन कम होने पर गेहूं उत्पादक मायूस हैं। जो काश्तकार ठेके पर ज़मीन थोड़ी-थोड़ी ज़मीन लेकर गेहूं की बिजाई कर रहे हैं, वही दुविधा में हैं। उन्होंने औसत 27500 रुपये (वर्ष का आधा ठेका) प्रति एकड़ पर ज़मीन लेकर गेहूं की बिजाई की। एक एकड़ में से औसतन 20 क्ंिवटल गेहूं निकाल लिया, जिससे 39000 रुपये की बिक्री हुई। लगभग 10000 रुपये का एकड़ पर गेहूं का काश्त का खर्चा आया है। लेबर उसकी अपनी थी। इस तरह उसे सिर्फ 1500 रुपये प्रति एकड़ की बचत हुई। पहले वर्षों में उसे तूड़ी से भी आय हो जाती थी, जो इस वर्ष नहीं हुई है। खेतों में रकबा तूड़ी बनने के लिए पैसे देकर लेने के लिए इस वर्ष कोई तैयार नहीं, क्योंकि लेबर बड़ी महंगी है। तूड़ी बनाने पर खर्चा इस वर्ष मंडी में चल रहे तूड़ी के मूल्य से महंगा पड़ता है।
 इस तरह छोटा किसान जो एक एकड़ से लेकर पांच एकड़ तक कृषि करता है, एक-दो पशु रख कर दूध बेच कर अपना गुज़ारा कर लेता है और किसानों की बेहतरी के लिए प्रधानमंत्री की ओर से चलाई गई योजनाओं जैसे के वार्षिक 6000 रुपये ट्रांसफर का सहारा लेता है, क्योंकि परिवार के दूसरे सदस्य भी या ठेके पर ली हुई ज़मीन पर व्यस्त रहते हैं या फिर कहीं और काम करके दिहाड़ी लगा कर परिवार का खर्च चलाने में योगदान डालते हैं। इसी तरह छोटे किसान अपना खर्च चलाने के लिए कज़र् लेने को मजबूर हैं। बैंक उसे आसानी से कज़र् नहीं देते। वह आढ़ती या साहूकार के चंगुल में फंस जाता है। जिस पर कज़र् प्रत्येक वर्ष बढ़ता जाता है। यही कारण है कि पंजाब की किसानी पर सभी संस्थाओं का एक लाख करोड़ के लगभग कज़र् है। 
हां, छोटे किसानों का निर्वाह इस पर है कि वह धान की फसल लेकर अपना समय निकाल रहे हैं। धान की फसल से प्रति एकड़ 60000 की बिक्री हो जाती है और खर्च 15000 रुपये एकड़ के लगभग है।