कांग्रेस की नई सरगर्मी

कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के संबंध में चर्चा विगत लम्बी अवधि से चलती आ रही है। विगत अढ़ाई दशकों से सोनिया गांधी अथवा राहुल गांधी ही पार्टी का नेतृत्व सम्भालते रहे हैं। यहां तक कि 2014 से पूर्व 10 वर्ष तक संप्रग की सरकार के समय चाहे डा. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने हुये थे, तो भी वास्तविक शक्ति सोनिया गांधी, राहुल गांधी एवं प्रियंका गांधी के हाथ में थी। विगत लगभग एक दशक में कांग्रेस को प्रत्येक स्तर पर सम्पन्न हुये चुनावों में भारी पराजय का मुंह देखना पड़ा। इसलिए नेहरू-गांधी परिवार से भी बहुत-से कांग्रेसी नेताओं का मोह भंग होते दिखाई दिया था। देश भर के कार्यकर्ताओं में भी दिशाहीनता एवं अनिश्चितता वाली स्थिति बनी रही थी। 
लगभग दो वर्ष पूर्व पार्टी के 23 बड़े नेताओं जिन्हें जी-23  ग्रुप के सदस्यों के तौर पर जाना जाता है, ने कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी को एक पत्र लिख कर यह जता दिया था कि पार्टी के भीतर नेतृत्व से लेकर संगठनात्मक ढांचे तक बहुत-से परिवर्तनों की आवश्यकता उत्पन्न हो गई है। ये भी संकेत दिये गये थे कि अब अधिक देर तक पार्टी एक परिवार के सहारे नहीं रह सकती। लगभग दो वर्ष पूर्व राहुल गांधी को भी पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया था परन्तु 2019 के लोकसभा चुनावों में पराजय के बाद उन्होंने भी अपने पद से त्याग-पत्र दे दिया था। फिर भी कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी निरन्तर यह चाहती रही थीं कि राहुल गांधी को पुन: यह पद सौंपा जाये। राहुल गांधी के निरन्तर इन्कार के बाद सोनिया गांधी ने पार्टी के भीतरी समूचे हालात को भांपते हुये अंतत: नये अध्यक्ष के चुनाव के लिए समर्थन दे दिया था परन्तु विगत अवधि में इस पद के लिए पार्टी के भीतर जिस प्रकार की ड्रामेबाज़ी चलती रही, उसने पार्टी की छवि का और भी क्षरण कर दिया था। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ओर से इस नये पद के लिए उम्मीदवार बनने के साथ-साथ मुख्यमंत्री का पद छोड़ने में दिखाई गई हिचकिचाहट के बाद वह इस दौड़ से बाहर हो गये थे। इसके बाद दिग्विजय सिंह, मुकुल वासनिक आदि के नाम भी सामने आये। विरोधी नेताओं में से मनीष तिवारी के नाम की भी चर्चा हुई। शशि थरूर ने तो प्रत्यक्ष रूप में इस पद के लिए अपना नाम भी पेश कर दिया था। अंतत: कर्नाटक के प्रबुद्ध राजनीतिज्ञ मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम सामने आने पर एक बार फिर पार्टी के भीतर सक्रियता बढ़ गई थी। 
खड़गे सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी के निकटवर्ती व़फादार साथी रहे हैं परन्तु उनका अपना राजनीतिक अनुभव तथा उनका व्यक्त्वि भी बड़ा है। उन्हें सरकार चलाने का भी अनुभव है तथा दोनों सदनों में भी वह लम्बी अवधि तक पार्टी का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं। खड़गे का नाम सामने आने के दृष्टिगत पार्टी के भीतर जी-23 ग्रुप के अधिकतर नेताओं ने भी उन्हें अपना समर्थन दे दिया है। इसीलिए उनके नामांकन पत्र दाखिल करने के समय कांग्रेस के अनेक बड़े नेता उपस्थित थे। इस दौड़ में शशि थरूर चाहे काफी पीछे रह गये प्रतीत होते हैं परन्तु उनका वर्तमान पल में मैदान छोड़ने का इरादा प्रतीत नहीं होता। वैसे इस समय खड़गे के अध्यक्ष चुने जाने की पूरी उम्मीद बन गई है। चाहे पार्टी के भीतर इस कवायद को कोई बड़ा परिवर्तन नहीं माना जा रहा परन्तु इससे कांग्रेसियों में एकजुटता बढ़ने की आशा बंधी है तथा पुन: यह आशा भी पैदा होते दिखाई दे रही है कि पार्टी एक बार फिर राजनीतिक क्षेत्र में अपनी अच्छी सरगर्मी दिखाने के समर्थ हो सकेगी।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द