पहले से हो जाता है संसद न चलने देने का बंदोबस्त

अब यह साफ  हो गया है कि संसद के हर सत्र से पहले सरकार की ओर से यह इंतजाम कर लिया जाता है कि दोनों सदनों की कार्यवाही सुचारू रूप से न चले और शोर-शराबे में पूरा सत्र बीत जाए। आमतौर पर हर सत्र से पहले कोई ऐसी घटना हो जाती है या ऐसी कोई खबर आ जाती है, जिसे लेकर न तो विपक्ष को बोलने दिया जाता है और न ही सरकार की ओर से कुछ कहा जाता है। हंगामा और नारेबाजी होती रहती है तथा सरकार बिना बहस के विधायी कामकाज निबटा लेती है। संसद का बजट सत्र शुरू होने से ठीक पहले अडानी समूह को लेकर हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट आई थी। उस पर सत्र का पहला हिस्सा व्यर्थ गया। उससे पहले चीन को लेकर शीतकालीन सत्र हंगामे में गुज़रा था। अब संसद के बजट सत्र का दूसरा चरण शुरू हुआ तो सत्तापक्ष ही संसद नहीं चलने दे रहा है। उसकी ओर से मंत्री और सांसद एक सप्ताह से हंगामा और नारेबाज़ी करते हुए राहुल गांधी पर देश का अपमान करने का आरोप लगाते हुए माफी मांगने की मांग कर रहे हैं। राहुल गांधी अपने ऊपर लगे आरोप का जवाब देना चाहते हैं लेकिन स्पीकर उन्हें बोलने की अनुमति नहीं दे रहे। ऐसा ही खेल राज्यसभा में भी दोहराया जा रहा है। ज़ाहिर है कि सरकार की मंशा के मुताबिक दोनों सदनों के मुखिया भी नहीं चाह रहे हैं कि संसद की कार्यवाही सुचारू रूप से चले। यह नए मिज़ाज का संसदीय लोकतंत्र है।
मोदी का चुनावी साल शुरू 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए लोकसभा चुनाव का साल शुरू हो गया है। वैसे तो वह हमेशा ही चुनावी मोड में रहते हैं लेकिन अब वह पूरी तरह से चुनावी मोड में आ चुके हैं। पार्टी की ओर से अगले एक साल तक का उनका कार्यक्रम बनाया जा रहा। अभी तो वह उन राज्यों पर ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं, जहां इस साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं लेकिन उसके साथ ही भाजपा की रणनीतिक टीम उन राज्यों में भी उनकी रैलियों के कार्यक्रम बना रही है, जहां पिछली बार भाजपा को अचानक बहुत ज्यादा सीटें मिली थीं। बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री इस साल के बचे हुए नौ महीनों में अलग-अलग राज्यों में लगभग सौ रैलियां करेंगे। पिछले चुनाव में जहां भाजपा को अचानक छप्पर फाड़ कामयाबी मिली थी, उन राज्यों में नई परियोजनाओं के साथ ही बड़ी लोक लुभावन घोषणाएं भी होंगी। 
गत रविवार को मोदी कर्नाटक में थे। दो महीने में वह तीन बार कर्नाटक का दौरा कर चुके हैं। कुछ दिन पहले उन्होंने लिंगायत बहुल शिवमोगा में हवाई अड्डे का उद्घाटन किया था और इस बार वोक्कालिगा बहुल पुराने मैसूर में उनका कार्यक्रम हुआ था। उन्होंने रोड शो किया और 16 हज़ार करोड़ रुपये की परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया। कर्नाटक में कुछ ही दिनों बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। लोकसभा चुनाव के लिहाज से भी कर्नाटक भाजपा के लिए अहम राज्य है। पिछले चुनाव में राज्य की 28 में से 25 सीटें भाजपा को मिली थीं। 
कांग्रेस बनाम सहयोगी पार्टियां 
भाजपा के नेता और संवैधानिक पदों पर बैठे लोग तो अक्सर ही इमरजेंसी की याद करते हुए कांग्रेस को निशाना बनाते रहते हैं, लेकिन हैरानी की बात है कि कांग्रेस की सहयोगी पार्टियां भी इन दिनों बात-बात में इमरजेंसी को याद कर रही हैं। उप-राष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने 11 मार्च को मेरठ में एक कार्यक्रम में बिल्कुल भाजपा नेता की तरह राहुल गांधी पर हमला करते हुए कहा कि संसद में आज नहीं, बल्कि इमरजेंसी के समय माइक बंद होता था। तब विपक्ष को नहीं बोलने दिया जाता था। इस बीच कांग्रेस की दो सहयोगी पार्टियों ने इमरजेंसी को याद किया और परोक्ष रूप से कांग्रेस पर निशाना साधा। कांग्रेस के सबसे करीबी सहयोगी और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने बिना किसी संदर्भ के इमरजेंसी का मुद्दा उठाया। उन्होंने एक कार्यक्रम में कहा कि उनके पिता के. करुणानिधि से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी का समर्थन करने को कहा था लेकिन उन्होंने समर्थन नहीं किया था। स्टालिन ने कहा कि इंदिरा गांधी की बात नहीं मानने का नतीजा यह हुआ था कि उनके पिता के नेतृत्व वाली डीएमके सरकार गिरा दी गई थी। इसी तरह दूसरे करीबी सहयोगी राजद के नेता लालू प्रसाद ने केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई का विरोध करते हुए कहा कि उन्होंने इमरजेंसी का भी मुकाबला किया है। उनकी पार्टी और संप्रग में शामिल दूसरी पार्टियां भी देश में अघोषित इमरजेंसी होने की बात करते हुए केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई का विरोध कर रही हैं।
पैसे वाले नेता निशाने पर 
केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई सिर्फ  विपक्षी पार्टियों के शीर्ष नेताओं पर ही नहीं हो रही है, बल्कि उनके साथ-साथ ऐसे नेताओं को भी निशाना बनाया जा रहा है जो पैसे वाले और कारोबारी हैं। पैसे वाले कारोबारी नेताओं को निशाना बनाने से चुनाव में पार्टियों के लिए पैसे का इंतजाम करना मुश्किल होगा और चुनावी तैयारियां प्रभावित होंगी। बिहार में लालू प्रसाद की पार्टी राजद के पैसे वाले नेताओं पर केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई में यह नमूना दिख रहा है। पिछले कुछ दिनों में लालू प्रसाद की पार्टी के पैसे वाले चार नेताओं पर कार्रवाई हुई है। जब बिहार में जनता दल (यू) और भाजपा की सरकार चल रही थी, उसी समय ईडी ने राजद के राज्यसभा सांसद अमरेंद्रधारी सिंह को गिरफ्तार किया था। वह राज्यसभा के सबसे अमीर सांसदों में से हैं। उसके बाद राजद के कोषाध्यक्ष और एमएलसी सुनील सिंह के यहां आयकर विभाग ने छापा मारा। वह सहकारिता से जुड़े हैं। इसके बाद पिछले साल नवम्बर में राजद के विधायक और नितीश कुमार की सरकार के उद्योग मंत्री समीर महासेठ के यहां आयकर विभाग ने छापेमारी की। वह भी बड़े कारोबारी हैं। 
क्षेत्रीय पार्टियों का कांग्रेस पर दबाव
क्षेत्रीय पार्टियों की ओर से कांग्रेस पर समझौते का दबाव है। कई राज्यों में सहयोगी पार्टियां चाहती हैं कि कांग्रेस कम सीटों पर लड़े। कांग्रेस और क्षेत्रीय पार्टियों के बीच कई जगह ऐसा समझौता था कि विधानसभा चुनाव में प्रादेशिक पार्टी ज्यादा सीटों पर लड़ती थी और लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को ज्यादा सीटें मिलती थीं। लेकिन अब क्षेत्रीय पार्टियां लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस से ज्यादा सीटों पर लड़ना चाहती हैं। तमिलनाडु और बिहार की तरह झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा भी लोकसभा और विधानसभा दोनों चुनावों में ज्यादा सीटें चाहता है। महाराष्ट्र में एनसीपी भी चाहती है कि वह ज्यादा सीटों पर लड़े। कुछ अन्य राज्यों में संभावित सहयोगी चाहते हैं कि कांग्रेस एक-दो सीट लेकर ही समझौता करे। अपनी बात मनवाने के लिए क्षेत्रीय पार्टियों के नेता पिछले दो चुनावों की मिसाल देकर पूछ रहे हैं कि कांग्रेस बताए कि उसने अपने दम पर कितनी सीटें जीती हैं। कांग्रेस को जो 52 सीटें मिली हैं, उनमें से ज्यादातर सहयोगी दलों के कारण मिली हैं। तमिलनाडु में कांग्रेस को आठ सीटें मिली हैं। अगर वह अकेले सभी 39 सीटों पर लड़ती तो एक भी सीट नहीं मिल पाती। इसी तरह केरल में उसे 15 सीटें यूडीएफ  की पार्टियों के समर्थन से मिली हैं। उत्तर प्रदेश में वह अकेले लड़ी तो दो से घट कर एक सीट पर आ गई। बिहार में भी एक सीट सहयोगी पार्टी की वजह से मिली। इसलिए सहयोगी चाहते हैं कि कांग्रेस कम सीटें लेकर समझौता करे और प्रादेशिक पार्टियों को ज्यादा सीटों पर लड़ने दे। इससे गठबंधन की सीटें भी बढ़ेंगी और कांग्रेस की भी।