अगले साल का विपक्ष का धर्म-युद्ध

अगले साल लोकसभा चुनाव होने वाले हैं। भारतीय राजनीति में अभी से उथल-पुथल शुरू हो चुकी है, होनी भी चाहिए। लोकतंत्र में जनता के बीच जाएं और अपनी पार्टी को हर पक्ष से मज़बूत बनाने के यही दिन हैं जब आप जनपक्ष में अपनी पार्टी का दावा प्रस्तुत कर सकते हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे दावा प्रस्तुत कर रहे हैं कि अगले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस नीत गठबंधन ही सत्ता में आएगा। इससे जाहिर होने लगा है कि वह नितीश कुमार के नेतृत्व को किसी सूरत में स्वीकार नहीं कर पाएंगे। क्योंकि वह अपने उप-मुख्यमंत्री तेज़स्वी यादव की मदद से 2024 के संसदीय चुनाव नरेन्द्र मोदी की भाजपा को पराजित करने के लिए विपक्ष का एक मज़बूत संयुक्त मोर्चा बनाने के लिए क्षेत्रीय दलों की एकजुटता का भरकस प्रयास कर रहे हैं। इस स्थिति पर राजनीति विशेषज्ञ अपने ढंग से विश्लेषण प्रस्तुत कर रहे हैं। उनका मानना है कि कांग्रेस पार्टी नितीश कुमार के सामने दो ही विकल्प रख रही है। पहला जो बिल्कुल स्पष्ट है कि नितीश कुमार को कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन को ही स्वीकार कर लेना चाहिए जोकि उनके लिए चिंता का सबब बन सकता है और दुविधा पैदा कर सकता है। दूसरा यह कि यदि उन्हें कांग्रेस वाला विकल्प मंजूर नहीं है तब उन्हें कांग्रेस को भूल जाना होगा और अपने नये गठबंधन के मुखिया के रूप में खुद को प्रस्तुत करना होगा। जिसकी एकता के लिए ममता बनर्जी, अरविन्द केजरीवाल, के. चंद्रशेखर राव, अखिलेश यादव जैसे गैर कांग्रेसी सहयोगियों को शामिल करना होगा। कांग्रेस नितीश कुमार पर पहले सीधा नहीं तो परोक्ष व्यंग्य बाण छोड़ ही चुकी है। जब यह फतवा जारी किया गया था कि कांगे्रस कुछ अन्य नेताओं की तरह भाजपा का दामन थामने कभी नहीं गई, जो मोदी के खिलाफ एक जैसी विचार धारा को अपना लक्ष्य बनाते हैं इसमें संकेत छिपा था कि ऐसे नेताओं का नेतृत्व करने की कांग्रेस की हार्दिक अभिलाषा है।
कांगे्रस पार्टी के सामने राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा एक मानदंड बन चुकी है। भाजपा इसे असफल मानती रहे यह सफलता का अंश नहीं है। कांग्रेस पार्टी के लिए ये ज़रूर गौरव के क्षण हैं और वह इसका उपयोग ज़रूर करना चाहेगी। कांग्रेस राहुल गांधी को गठबंधन का नेता बनाने के लिए प्रस्ताव पेश कर सकती है और अंतिम रूप में खड़गे देश के प्रधानमंत्री के रूप में संभावित कैंडीडेट घोषित कर सकती है जो विपक्ष के लिए चकित करने वाला प्रस्ताव होगा। वे कुछ समय के लिए असमंजस में रहेंगे कि इसे स्वीकार करें या अस्वीकार? आंकड़े बता रहे हैं कि लोकसभा की 543 सीटों में अनुसूचित जाति की सीटें 84 हैं। काफी सीटों को प्रभावित इस वर्ग के मतदाता कर सकते हैं जो बड़ी-बड़ी मज़बूत और दावेदार पार्टियों का गणित उलट-पुलट कर सकता है। अब कांगे्रस का दावा स्पष्ट है। एक विपक्षी एकता कांगे्रस के बिना संभव नहीं है। दूसरा उसकी हाज़िरी पूरे भारत में है जबकि क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों की नहीं। कांग्रेस गंभीरता से विपक्षी एकता के लिए कांग्रेस की भूमिका पर विचारशील है। उसका कहना भी है कि वह अपनी भूमिका अच्छी तरह जानती है और दोहरे चेहरे वाले लोगों को मान्यता नहीं दी जाएगी। कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे विपक्ष के साथ बातचीत के तमाम सूत्र भी तलाश रही है। राजनीति के विशेषज्ञ कहते हैं कि विपक्षी मज़बूत गठबंधन तभी संभव है जब कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों के नेताओं के बीच सीटों का समीकरण सही बैठ जाए। छत्तीसगढ़, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब जैसे राज्यों में विपक्षी नेता कांग्रेस को बड़ा भाग देने को तैयार रहेंगे जहां भाजपा के साथ साधा मुकाबला होगा।
फिर यह मुकाबला सीधा भाजपा से होने वाला है जो कहीं से भी कमजोर नज़र नहीं आती। जो अपने लोकलुभावन वायदों से जनता को लुभाने में माहिर भी है जिस पर जनता ने पहले भरोसा किया है। दलों का अहंकार और मैं न मानूं की बात भी घातक सिद्ध हो सकती है। इससे भाजपा की राह आसान हो सकती है।