म्यांमार के अराजक हालात

वर्तमान दौर में म्यांमार के हालात अराजक होते चले जा रहे हैं। किसी भी देश में जब हालात को सेना के हवाले कर दिया जाता है। तब लोकतांत्रिक प्रगति पर संकट के बादल मंडराने लगते हैं। दूसरा पक्ष अवाम का होता है। यदि वह आज़ादी की राह चूमने को तैयार रहें तो टकराव की स्थिति रहती ही है। वहां जो कुछ नज़र आ रहा है। वह यही है कि लाखों युवा लोग संकल्प ले चुके हैं। उन्होंने लोकतंत्र की बयार गहरे से महसूस की है। इंटरनेट की दुनिया से उनका जुड़ाव रहा है वे घुटन बंद हवा, काला धुआं, गुलामी का माहौल भला क्यों स्वीकार करेंगे? नीलार येन कहती है कि उन्होंने अपनी बेटी से उसके जन्म से पूर्व ही क्षमा मांग ली। इनके पति क्याव मिन यू एक लेखक तथा राजनीतिक कार्यकर्ता हैं। उन्हें म्यांमार में जिमी के नाम से जाना जाता है। उन्होंने नीलार येन के फूले हुए पेट पर प्रेमपूर्वक बौद्ध मंत्रों का पाठ करते हुए स्वीकार किया कि जो जीवन उनके द्वारा चुना गया है। उसके लिए उन्हें अफसोस है। उन्होंने एक लोकतांत्रिक म्यांमार के लिए काफी वर्ष संघर्ष किया। इस संघर्ष के परिणाम स्वरूप उन्हें चार बार जेल में बंद किया जाता रहा है। अब वे लोग सशंकित हैं कि उनकी छोटी बेटी फ्यू नाय की। जिसे वे लोग प्यार से हवाइटी पुकारते हैं। फ्यू का मतलब बर्मी में श्वेत होता है। वह सामान्य बचपन का लुत्फ उठा नहीं पायेगी। जिसका मतलब है कि हालात सामान्य होने की जगह संगीन होते चले गये हैं। 15 साल बाद उनकी यह बहुत बुरी आशंका सत्य में बदल गई। जब जुलाई में निलार येन के पति को सैन्य जुंटा ने फांसी की सज़ा सुना दी और व्यवहार में बदल दी। पिछले साल ही जुंटा ने लोकतांत्रिक सरकार को तहस-नहस कर डाला। सत्ता पर अधिकार जमाने का यही तरीका बचा था। जबकि इन्हें बेटी से अलग भागना पड़ा है। खबरों के अनुसार म्यांमार अराजकता के दौर में है। हज़ारों लोग या तो मारे जा चुके हैं या जेलों में बंद किए जा चुके हैं। लगभग 10 लाख लोगों को विस्थापित होना पड़ा। सेना का होना लोगों को आतंकित करता ही है। बरसों चले लोकतांत्रिक संघर्ष को मिटा देने का प्रयत्न भी करता रहता है। जिमी को फांसी देना इसी प्रयत्न का एक हिस्सा माना जा रहा है। नीलार येन को भरोसा है कि जनरल असफल हो जाएंगे। क्योंकि म्यांमार स्वतंत्रता की राह पर काफी आगे बढ़ चुका है। इस समय का युवा वर्ग काले दौर को अस्वीकार कर रहा है। लोकतंत्र का जज्बा बड़ी कीमत अदा कर चुका है। हज़ारों अन्य लोगों की तरह इनके पति को गिरफ्तार कर जेल में फैंक दिया गया। वह 1988 से 2005 तक जेल में रहे। गिरफ्तारी के अंतिम 9 वर्ष तक इन दोनों को धारावाड़ी की बदनाम जेल में बंद कर दिया गया था। इन्हें पीटा गया। गालियां देकर अपमानित किया गया। इन्ही यात्नाओं के दिनों वे करीब आये। एक दूसरे को बेहतर ढंग से समझने की कोशिश की। एक दूसरे की देखभाल की कोशिश रही और उत्साह में कमी नहीं आने दी। वे लोहे की सलाखों के ज़रिये भी एक दूसरे को गुप्त पत्र लिखा करते थे। संघर्ष के प्रति अटूट आस्था, कविता की ताकत , अपने देश के प्रति और देश के लोगों के प्रति प्रेम को यह पसंद करती थी। वर्ष 2005 में ये दोनों जेल से रिहा हो गये। इसके एक साल बाद दोनों वैवाहिक बंधन में बंद गये। फिर ये गर्भवती हो गईं। इसकी हार्दिक इच्छा थी कि अपनी बेटी को स्तनपान करवाये। उसका पालन पोषण करते हुए आत्मीय सुख को महसूस करे लेकिन हर समय गिरफ्तारी का डर बना रहता था इसलिए बच्ची को डिब्बे का दूध ही पिलाया गया। बच्ची अभी चार महीने की ही थी कि इसके पति को गिरफ्तार कर पांच साल के लिए जेल भेज दिया गया। इनके पास बच्ची को लेकर सुरक्षित घरों में भटकने के सिवाय कोई चारा नहीं था। कभी रातों के अंधकार में, कभी तेज़ बरसती बारिश में। अंतत: 2009 में इसने उसे अपने ससुराल वालों को सौंप दिया। इसके अगले साल ही इसे भी गिरफ्तार कर लिया गया। बच्ची के पिता और इसे 2012 तक जेल में ही रहना पड़ा। 
इसके बाद कुछ सुधार आने लगा। फिर आंग सान सू के नेतृत्व में नैशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी ने 2013 में जीत प्राप्त की। सेना शक्तिशाली बनी रही परन्तु जनता को कुछ बेहतर जीवन जीने का अवसर मिला। लगने लगा की जेल में काटे दिन व्यर्थ नहीं गये परन्तु यह सब पिछले साल के तख्तापलट में खत्म हो गया। जुंटा की मुश्किलें पैदा करने वाली व्यवस्था का लोगों ने हिम्मत से जवाब दिया। लगातार विरोध जारी है। देश के बड़े हिस्से को अपने काबू में ले लिया गया है। इनकी बेटी अमानवीय व्यवहार को समझ रही थी। पिछले साल उसने स्कूल में निबंध लिखा, जिसमें लिखा कि कैसे तख्तापलट की कार्रवाई से उसे अपने माता पिता पर गर्व हुआ। म्यांमार को वैश्विक समर्थन की ज़रूरत अभी बनी हुई है।