आज जयंती पर विशेष धर्म और नैतिकता की राह दिखाती संत कबीर की वाणी

 

किसी की महानता का सबसे बड़ा पैमाना होता है, उसकी कालजयी प्रासंगिकता। मध्य युग के संत कबीर इस मायने में अप्रतिम हैं। सहज बोध के कवि एवं समाज सुधारक संत कबीर की वाणी आज भी दुनिया को राह दिखाती है। इससे पता चलता है कि कबीर अपने समय से कितने आगे थे। कबीर की वाणी में न सिर्फ  ज़िंदगी का सहज सच है बल्कि एक ऐसी विरागी तटस्थता है जो बार बार हमें ध्यान दिलाती है कि यह कट्टरता, यह मायामोह हमारी निरी नादानी है। 
इस वर्ष कबीर जयंती 4 जून को है। इस दिन उत्तर भारत में हज़ारों स्थानों पर उनकी जयंती मनायी जायेगी। 15वीं सदी में पैदा हुए संत कबीर की भाषा और बोध में तो रहस्य की भरमार है ही, उनकी समूची शख्सियत से भी रहस्य का नूर टपकता है। माना जाता है कि उनका जन्म सन 1398 ईस्वी में काशी (वाराणसी) में हुआ। हालांकि इसको लेकर कई लोगों की अलग राय है लेकिन जो सबसे स्थायी है, उसके मुताबिक ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन ब्रह्म मुहूर्त के समय कबीर दास जी का जन्म हुआ था। वह अपनी आजीविका के लिए जुलाहे का काम करते थे और अपने यहां आने वाले तमाम लोगों को धर्म और दर्शन की शिक्षा देते थे।
कबीर संत परम्परा के सबसे बड़े प्रज्ञा पुरुष थे। उन्होंने सद्गुरु के महत्व को अध्यात्म के आकाश में सबसे ऊपर प्रतिष्ठित किया। संत कबीर लगभग 600 साल पहले, जब घोर कर्मकांडों का दौर था, उस दौर में भी वह कर्मकांड के समक्ष सवालिया निशान खड़ा किया करते थे। 
संत कबीर के मुताबिक सच्चे साधु और पहुंचे हुए लोग वे होते हैं जो अपनी शरीर के भीतर बैठे ईश्वर का दर्शन कर लेते हैं। ऐसा करने से उनका जीवन सफल हो जाता है।
कबीर की वाणी सदियां गुजर जाने के बाद भी मानव को नैतिकता, धर्म और आध्यात्मिकता की राह दिखाती है। कबीर की वाणी इतने सालों के बाद भी अगर प्रासंगिक है तो इस वजह से कि उसमें एक कालजयी संबोधन है। उसमें समय से परे के सच और हमेशा सनातन रहने वाली शिक्षाएं हैं। 
यह अकारण नहीं है कि जब महज दस-बीस साल के भीतर बड़े बड़े क्रांतिकारी विचार, दर्शन, अगर गायब नहीं भी होते तो फीके पड़ जाते हैं या अपने समय से पिछड़ जाते हैं, उसके बरक्स छह शताब्दियां गुजर जाने के बाद भी संत कबीर के और दर्शन आज न सिर्फ  प्रासंगिक बने हुए हैं बल्कि दिनोंदिन उनकी सोच, उनका दर्शन ज्यादा मज़बूत और चमचमा रहा है। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर