देश और काल की कसौटी पर नए आपराधिक कानून 

देश के गृहमंत्री अमित शाह ने 11 अगस्त को देश की संसद में आपराधिक कानून में आमूल चूल परिवर्तन की दृष्टि से नए प्रस्ताव प्रस्तुत किए। उपरोक्त संबंध में गृह मंत्री द्वारा जो तीन  विधेयक प्रस्तुत किए गए, वे  भारतीय दंड संहिता-1860, आपराधिक प्रक्रिया अधिनियम-1898, एवं भारतीय साक्ष्य अधिनियम-1872 की जगह लेंगे। उल्लेखनीय है कि ये  सब अंग्रेजों के बने हुए कानून थे, जो लम्बे समय से देश की स्वतंत्रता के बाद भी प्रचलित थे लेकिन जिस तरह से एक क्रांतिकारी ढंग से इन कानूनों में बदलाव करने का कार्य किया जा रहा है, वह देश के विधिक इतिहास में बहुत बड़ा क्रांतिकारी परिवर्तन कहा जा सकता है। वस्तुत: देश के सभी उपयुक्त आपराधिक न्याय कानूनों में हर मैजेस्टी, और बाइ दा प्रिवी काउंसिल आफ इंग्लैंड, द क्राउन रिप्रेजेंटेटिव जैसे शब्द जो गुलामी की निशानियां थीं, प्रचलन में थे लेकिन अब नए प्रस्तावित आपराधिक न्याय कानूनों के तहत भारतीय दंड संहिता का नाम भारतीय न्याय संहिता 2023 होगा। इसी तरह से दंड प्रक्रिया संहिता का नया नाम भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 होगा। इंडियन एविडेंस एक्ट का नाम भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 होगा।
भारतीय दंड संहिता में जो महत्वपूर्ण संशोधन किए गए हैं, उनमें पहचान छुपा कर शादी करने या संबंध बनाने को लेकर, जो पहले नहीं था, वह अब अपराध की श्रेणी में आएगा। ओवैसी जैसे लोग इसे भले मुस्लिम विरोधी बताएं लेकिन यह तो धोखाधड़ी और छल के खिलाफ कानून होगा जो प्रत्येक व्यक्ति पर लागू होगा। इसी तरह से रोज़गार और पदोन्नति में भी धोखाधड़ी किए जाने पर दंड का प्रावधान लागू किया जाएगा। देशद्रोह कानून को बिल्कुल नए ढंग से परिभाषित कर दिया गया है। अब सरकार की आलोचना करने पर राजद्रोह का कानून नहीं लगेगा, क्योंकि जैसा गृह मंत्री अमित शाह ने कहा— देश में लोकतंत्र है और प्रत्येक व्यक्ति को सरकार के विरोध में बोलने का अधिकार है लेकिन देश की एकता और अखंडता के विरुद्ध काम करने पर राजद्रोह का कानून लागू होगा और होना भी चाहिए। वर्तमान कानूनों में जो महत्वपूर्ण बदलाव किया गया है, उसमें भगोड़े व्यक्तियों के खिलाफ भी ट्रायल की कार्रवाई हो सकेगी और उनकी अनुपस्थिति में उनको दोष सिद्ध घोषित किया जा सकेगा। निश्चित रूप से इससे भगोड़ों की प्रवृत्ति पर विराम लगेगा क्योंकि उन्हें ऐसा लगेगा कि यदि वे भागे तो वे अपने प्रकरण की पैरवी नहीं कर पाएंगे, जिससे दोष सिद्ध होने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी। 
इसी तरह भगोड़ों को दोषी करार देने से उनका दर्जा आरोपी के बजाय अपराधी का हो जाएगा, जिसके चलते उनके  वीजा, पासपोर्ट एवं अन्य कई तरह की समस्याएं आन खड़ी होंगी। अभी जो कानून लागू था, उसमें व्यावहारिक तौर पर जीरो एफआईआर कराने पर बड़ी समस्याएं थी लेकिन अब ज़ीरो पर कोई भी व्यक्ति किसी भी थाने में केस दर्ज करा सकेगा और 15 दिवस में उस थाने को उस केस को क्षेत्राधिकार वाले थाने में भेजना अनिवार्य होगा। अभी तक माब लिंचिंग को लेकर आपराधिक न्याय व्यवस्था में कोई प्रावधान नहीं था और हत्या के तहत ही उसमें दंड तक दिया जाता था, लेकिन अब माब लिंचिंग को लेकर मृत्यु दंड का प्रावधान होगा। निर्दोषों को प्रताड़ित न किया जा सके और दोषी बच ना सकें, इसके लिए तलाशी और ज़ब्ती में वीडियोग्राफी का प्रावधान कर दिया गया है। सात साल तक की सजा का जहां प्रावधान है, वहां फॉरेंसिक जांच अनिवार्य कर दी गई है। यदि पुलिस किसी प्रकरण में खात्मा रिपोर्ट प्रस्तुत करती है तो सात साल तक की सजा वाले प्रकरणों में पीड़ित को सुने बगैर खात्मा नहीं लगाया जा सकेगा।
नए आपराधिक कानूनों में जो क्रांतिकारी बदलाव किया गया है, उसके अनुसार अधिकारियों पर ट्रायल करने के लिए मंजूरी को अनिश्चित काल के लिए नहीं टाला जा सकता। 120 दिन के अंदर संबंधित विभाग चार्जशीट प्रस्तुत करने  के लिए सहमति नहीं देता तो डीम्ड सहमति मान ली जाएगी। निश्चित रूप से इस तरह से सफेदपोश लोग जो शासन के खजाने को लूटकर सुरक्षित बचे रहते थे, अब उन्हें कानून के समक्ष जवाबदेह होना पड़ेगा। ऐसी स्थिति में शासन के खजाने की लूट में गुणात्मक ढंग से कमी आएगी और और यह पैसा देश और जनता के विकास के काम में आएगा। आम लोगों को अब तारीखों पर तारीखें अदालतों से नहीं मिलेगी और अधिकतम तीन वर्ष में किसी भी मामले को निपटाना पड़ेगा। ट्रायल में चार्ज लगने के एक महीने के अंदर मामले का निपटारा करना पड़ेगा। इसीलिए जहां तीन साल तक की सजा का प्रावधान होगा, वहां पर समरी ट्रायल से ही मामले निपटाए जाएंगे। अब हत्या, बलात्कार, लूट, ठगी और कूट रचना के अपराध क्रमांक में पहले आएंगे और राजद्रोह जैसे अपराध बाद में। ये कानून शासन को केन्द्र में रख कर नहीं, नागरिक को केन्द्र में रख कर बनाए जा रहे हैं। वीडियोग्राफी के माध्यम से भी सुनवाई की जा सकेगी और गवाहों के कथन लिए जा सकेंगे। इससे लोगों को न्यायालय तक आने जाने की अनावश्यक जद्दो-जेहद नहीं करनी पड़ेगी। नए कानूनों में राजनीतिक रसूखदारों को कोई विशेषाधिकार नहीं होगा। राजनीतिक कारणों से वे क्षमादान  के अधिकारी नहीं होंगे। फांसी की सजा पाए लोगों को आजीवन कारावास से कम सजा नहीं दी जा सकेगी। इसी तरह से सात साल की सजा को तीन साल में ही बदला जा सकेगा। अन्वेषण के नाम पर अभी तक जो पुलिस सालों साल तक मामले को लटकाए रखती थी, और न्यायालय में फाइनल रिपोर्ट नहीं प्रस्तुत करती थी, उसे अब तीन महीने में फाइनल रिपोर्ट पर प्रस्तुत करना अनिवार्य कर दिया जाएगा। किसी व्यक्ति को ऐसे ही गिरफ्तार नहीं कर लिया जाएगा और उसकी गिरफ्तारी की सूचना उसके परिवार को दी जाएगी।