किसानों की आर्थिकता मज़बूत करने हेतु बने किसान-पक्षीय निर्यात नीति
पंजाब की मुख्य फसलों गेहूं तथा धान का प्रति हैक्टेयर उत्पादन सभी राज्यों से अधिक होने के बावजूद तथा पंजाब द्वारा केन्द्रीय अन्न भंडार में 31 से 46 प्रतिशत गेहूं तथा 21 से 31 प्रतिशत चावल का योगदान डालने के बाद भी राज्य के किसानों में मायूसी छाई हुई है, जिस कारण वे रोष रैलियां करते हैं। प्रति सदस्य आय भी कम हो गई है। किसी समय यह भारत के सभी राज्यों से अधिक होती थी, जो आज कई राज्यों से नीचे चली गई है। इसका कारण एक तो यह है कि सब्ज़ इन्कलाब के बाद उत्पादन में तो विशेष वृद्धि हुई, परन्तु किसानों की शुद्ध आय नहीं बढ़ी। प्रो. एम.एस. स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार फसलों की कीमतें निर्धारित नहीं हुईं। इसके अनुसार कृषि लागत पर 50 प्रतिशत लाभ किसानों को देने का सुझाव दिया गया था। कृषि के सभी खर्च, जिनमें पूरी लागत तथा किसानों के परिवार द्वारा की गई मज़दूरी तथा भूमि का किराया आदि शामिल हैं, को गेहूं, धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करते समय खर्च के जोड़ में नहीं लिया जाता।
केन्द्र की नीति हमेशा शहरी खपतकार पक्षीय रही है। केन्द्र सरकार की सोच महंगाई पर काबू पाने की ओर रही है, चाहे कि ऐसा चुनावों के दृष्टिगत आवश्यक हो, परन्तु इससे किसानों की शुद्ध आय प्रभावित होती है। विगत में केन्द्र ने बासमती के निर्यात के लिए कम से कम 1200 डालर प्रति टन कीमत निर्धारित कर दी, जिससे निर्यात प्रभावित हुआ, क्योंकि बासमती का निर्यात तो औसतन 800 से 1000 डालर प्रति टन की कीमत के मध्य ही होता रहा है। इससे मंडी में बासमती की कीमत जो यह पाबंदी लगाने से पहले किसानों को मिल रही थी, वह निर्यात कीमत निर्धारित किये जाने के बाद नहीं मिली, चाहे इसे अब केन्द्र सरकार ने पुनर्विचार करके इसे कम करके 950 डालर प्रति टन कर दिया है। केन्द्रीय व्यापार तथा उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने तो इसे एक बैठक में 850 डालर प्रति टन करने की घोषणा की थी, परन्तु किसानों को इससे पहले काफी नुकसान सहन करना पड़ा चाहे अब पुन: बासमती की कीमत मंडी में बढ़नी शुरू हो गई है।
केन्द्र की कृषि उत्पाद के संबंध में निर्यात नीति किसानों के हित में नहीं रही। केन्द्र सरकार कृषि उत्पादों के निर्यात पर समय-समय पर पाबंदियां लगाती रही है। मई 2022 में गेहूं का निर्यात बिल्कुल बंद कर दिया गया था। सितम्बर 2022 में टोटा चावल के निर्यात पर पाबंदी लगा दी गई थी और सफेद चावल भेजने पर 20 प्रतिशत कर लगा दिया गया था। फिर जुलाई 2023 में सफेद चावल का आयात बिल्कुल ही बंद कर दिया गया। अगस्त 2023 में पार बॉयल्ड चावलों के आयात पर भी रोक लगा दी गई और बासमती चावलों की कम से कम आयात कीमत 1200 डॉलर निश्चित करके इसका आयात लगभग रोक दिया गया। जो आयात करने वाले व्यापारियों के पास 1200 डॉलर से कम कीमत पर बासमती आयात करने के आर्डर थे, वह पूर्ण नहीं हो सके। मई 2023 से चीनी का आयात बिल्कुल ही बंद कर दिया गया और जो मई 2022 में सरकार की प्रवानगी के साथ ही कोटा सिस्टम पर चीनी का आयात किया जा सकता था, उसको भी बंद कर दिया गया। इन गेहूं के आयात में जबरदस्त कमी आई और बासमती चावल का आयात भी बहुत कम हो गया। इससे मंडी में बासमती की कीमतें गिर गई, जिससे किसानों का नुकसान हुआ।
इससे स्पष्ट है कि केन्द्र सरकार की नीति शहरी उपभोक्ता-पक्षीय रही है। महंगाई को कम करने के लिए तो चाहे सरकार जो भी कदम उठाए पर यह किसानों का नुकसान करके नहीं पूरे किए जाने चाहिए। जब 80 करोड़ व्यक्तियों को मुफ्त राशन (गेहूं और चावल) अलग-अलग प्रधानमंत्री सकीमों के तहत मिल रहा है तो किसानों की आय प्रभावित करके तो महंगाई को नहीं घटाया जाना चाहिए। हां और सरकार घरेलू नीति बनाकर उपभोक्ताओं द्वारा प्रयोग करने वाली चीज़ों की महंगाई चाहे घटा ले। इस समय 2 लाख करोड़ की अन सुरक्षा सब्सिडी दी जा रही है। इसके अलावा कृषि उत्पादों के निर्यात में भी लगातार वृद्धि हो रही है। खाने वाले तेलों का निर्यात 2019-20 से 2022-23 के बीच दोगुना से भी अधिक हो गया। केन्द्र सरकार के चुनावों से पहले महंगाई पर नियंत्रण करने और शहरी उपभोक्ताओं के पक्ष में नीति इस तरह की नहीं होनी चाहिए कि इसके परिणाम के तौर पर किसानों को उनके उत्पादों की मंडी में कम कीमत मिले।