चुनावी टाइम

आजकल चुनावी टाइम है। बांटी जा रही दाल-रोटी, कंबल और वाइन है। धंधा ये खूब फाइन है। बीच-बीच में नकदी भी बंट रही है। आदत ये वोटर्स को भी जंच रही है। सच तो यह है कि इन दिनों हर तरफ नेताओं की ओर से घोषणाओं और वादों का पिटारा खुला है। घोषणाओं को लेकर बेचारा वोटर हो रहा चुलबुला है।
अजी लेकिन ये तो घोषणाओं का कुछ समय का बुलबुला है। चुनाव की पावन बेला में वोटर्स का स्वागत हो रहा है और नेताजी घर-घर, दर-दर फिर रहा है। नेताजी इन दिनों गरीबी और भ्रष्टाचार मिटाने पर तुले हैं। नेताजी के ये तो ही इन दिनों जलजले हैं। नोट के बदले वोट का जमाना है। फिर इन्हीं वोट से पैसा खूब कमाना है। मतदाता भी चुनावी बेला में अब नेताजी का ‘मकसद’ नहीं, हर तरफ नेताजी द्वारा बांटी जाने वाली ‘मनी’ देखता है। इस मनी में सनसनी है। सच तो यह है कि आज मनी में ही हनी (शहद) है। आजकल नेताजी जनसेवा में व्यस्त हैं। बस चुनावी समय में ही जनसेवा के अभ्यस्त हैं। भाषणों में विकास पर जोर दिया जा रहा है। विकास भाषणों में भागा जा रहा है। 
आजकल सड़क, बिजली, पानी, ठेके दिलाने, ट्रांसफर करवाने के इश्यू हैं। सच तो यह है कि ये एक बार हाथ साफ  करके फेंक दिये जाने वाले ये टिश्यू हैं। वोटर्स के लिए चार दिन की चांदनी हर पांच बरस बाद आती है जो वोटर्स के चेहरों को खिलखिलाती है। बाद में तो बेचारी जनता पूरे तीन सौ इकसठ दिन बैठी रहती है। चुनाव जीतने के बाद तो नेताजी की पीढ़ियां की पीढ़ियां बरसों तक ऐश्वर्य और समृद्धि के गीत गुनगुनाती है।
चुनावी बेला में वोटर्स के जो भी हाथ में आए वो कम है। अजी! कुछ लोग कहते हैं कि ‘कुछ भी कहिए अपने नेताजी में खूब दमखम है।’ लेकिन भगवान कसम हम ऐसे नेताओं के पक्ष में नहीं हैं जो लोकतंत्र को घोल के पीते हैं और इसी के दम पर ही जीते हैं। आपको एक छोटी सी बात बताता हूं। सुनिए। बरसों पहले एक फिल्म आई थी। नाम था ‘अप्रैल फूल’  मोहम्मद रफी जी ने इस फिल्म में एक गाना गाया था ‘मेरी मोहब्बत पाक मोहब्बत और जहां की खाक मोहब्बत, कहीं तुम्हें प्यार न हो जाए, ओ बच बच के चलना हुजूर...’ आप कहेंगे अजी!
 हमें इसके बारे में आप क्यूं बता रहे हो। तो वो इसलिए कि हम तो आप सभी से यही कहना चाहेंगे कि इस गाने का संदर्भ हम यहां देकर आप सभी से यही गुजारिश करना चाहते हैं कि चुनावी समय में हमें पता है कि आजकल श्वोटर्स की नेताओं के प्रति मोहब्बत, पाक मोहब्बत है और अन्य जहां की खाक मोहब्बत है। लेकिन भैय्या जी! ‘ओ बच.बच के चलना हुज़ूर....!’ गुस्ताखी माफ। जय राम जी की।