बीरेन्द्र सिंह के भाजपा छोड़ने से हरियाणा में पार्टी को हो सकता है नुकसान

लोकसभा चुनाव में सर छोटू राम के पौत्र तथा पूर्व केन्द्रीय मंत्री चौधरी बीरेन्द्र सिंह का भाजपा से कांग्रेस में जाना हरियाणा की राजनीति में एक बड़ा मोड़ है। बीरेन्द्र सिंह ने 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 68 वर्ष में पहली बार हिसार में बड़ी जीत दिलाई थी। भाजपा हरियाणा के राजनीतिक तथा सामाजिक ताने-बाने में बीरेन्द्र सिंह की पहुंच से अच्छी तरह अवगत है। चर्चा है कि कुछ भाजपा विधायक भी चौधरी बीरेन्द्र सिंह के सम्पर्क में हैं और आगामी दिनों में वह भी पाला बदल सकते हैं। सूत्रों की मानें तो चंडीगढ़ में मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के आवास पर विधायकों से हुई बैठक में इसकी चिन्ता साफ तौर पर दिखाई दी। राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार बीरेन्द्र सिंह को पूरे हरियाणा में समर्थकों का समर्थन प्राप्त है। ज़ाहिर है कि जींद की उचाना सीट से पांच बार विधायक, दो बार राज्यसभा तथा एक बार लोकसभा सांसद रह चुके बीरेन्द्र सिंह के जाने से भाजपा को लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा चुनावों में भी बड़ा झटका लगेगा। 
नवीन पटनायक ने मांगी लोगों की राय
ओडिशा के मुख्यमंत्री तथा सत्तारूढ़ बीजू जनता दल (बीजेडी) के अध्यक्ष नवीन पटनायक ने प्रदेश में एक ही समय पर होने वाले लोकसभा व विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी के चुनाव घोषणा-पत्र का प्रारूप तैयार करने के लिए अपने वरिष्ठ नेता चन्द्र शेखर साहू के नेतृत्व में एक ‘मैनीफैस्टो कमेटी’ का गठन किया है। वरिष्ठ नेता अमर पटनायक को संयोजक तथा राज्यसभा सांसद ससमित पात्रा को सह-संयोजक नियुक्त किया है। 
हालांकि बीजेडी ने  पार्टी को अपना चुनाव घोषण-पत्र तैयार करने में समर्थ बनाने के लिए लोगों के सुझाव मांगे हैं। पार्टी ने लोगों को आपनी राय ई-मेल के माध्यम से पार्टी कार्यालय को भेजने की अपील की है। ‘मैनीफैस्टो कमेटी’ में 38 सदस्यों वाला एक लम्बा चौड़ा पैनल है। कमेटी में महिलाओं, आदिवासी, मुस्लिम, दलित शामिल हैं और गैर-निवासी ओडिशा विशेषज्ञों को भी शामिल किया जा रहा है ताकि समाज के सभी वर्गों की आवाज़ चुनाव घोषणा-पत्र में सुनाई दे। 
दिल्ली से उम्मीदवारों की घोषणा जल्द
9 अप्रैल को आम आदमी पार्टी ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, जो कि इस समय तिहाड़ जेल में बंद हैं, के पक्ष में लोगों का समर्थन मांगने के लिए अपने ‘जेल का जवाब वोट से’ अभियान के तहत दिल्ली के शाहदरा में घर-घर जाकर अभियान शुरू किया। इस अभियान के तहत ‘आप’ नेता उन चार लोकसभा क्षेत्रों में प्रत्येक घर का दौरा करेंगे, जहां पार्टी ने अपने उम्मीदवार उतारे हैं। ‘इंडिया’ गठबंधन के तहत कांग्रेस के साथ मिल कर लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए ‘आप’ ने चार सीटों नई दिल्ली, पूर्वी दिल्ली, दक्षिणी दिल्ली तथा पश्चिमी दिल्ली पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। दूसरी ओर कांग्रेस उत्तर-पूर्वी दिल्ली, उत्तर-पश्चिमी दिल्ली तथा चांदनी चौक सीटों पर चुनाव लड़ेगी और पार्टी हाईकमान जल्द ही आगामी दिनों में इन तीन सीटों पर लोकसभा क्षेत्रों के लिए नाम की घोषणा कर सकती है। चांदनी चौक सीट के लिए अल्का लाम्बा तथा जय प्रकाश अग्रवाल के नाम चर्चा में हैं जबकि उत्तर-पूर्वी दिल्ली से संदीप दीक्षित, कन्हैया कुमार तथा पूर्वांचल की लोक गायिका नेहा सिंह राठौर सम्भावित उम्मीदवार हो सकते हैं। उत्तर-पश्चिमी दिल्ली लोकसभा की आरक्षित सीट के लिए कृष्णा तीर्थ, राज कुमार चौहान तथा पूर्व सांसद उदित राज जैसे नेताओं के नाम पर विचार किया जा सकता है। 
येदियुरप्पा के खिलाफ बगावत
कर्नाटक भाजपा के वरिष्ठ नेता के.एस. ईश्वरप्पा पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा के खिलाफ प्रदेश में पार्टी पर उनकी मज़बूत होती पकड़ के खिलाफ असहमति जता रहे हैं। ईश्वरप्पा ने घोषणा की है कि वह शिवमोंगा चुनाव क्षेत्र से भाजपा के अधिकारिक उम्मीदवार तथा येदियुरप्पा के बेटे बी.वाई. राघवेन्द्र के खिलाफ एक आज़ाद उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ेंगे जबकि ईश्वरप्पा को केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दिल्ली बुलाया था, परन्तु उन्हें मिलने की अनुमति नहीं दी गई। ईश्वरप्पा ने कहा कि शाह का उनको मिलने से इन्कार करना, उनके आज़ाद चुनाव लड़ने की मौन स्वीकृति है। 
पूर्व कांग्रेसियों से भरी पंजाब भाजपा
पंजाब भाजपा अध्यक्ष सुनील जाखड़ की टीम पुराने कांग्रेस नेताओं से भरी पड़ी है, जिनमें फतेहजंग सिंह बाजवा (पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा के भाई), हरजोत कमल, अरविंद खन्ना तथा केवल सिंह ढिल्लों प्रमुख हैं। भाजपा कोर कमेटी में मनप्रीत सिंह बादल तथा राणा गुरजीत सिंह सोढी जैसे अनुभवी पूर्व कांग्रेस सदस्य भी शामिल हैं। रवनीत सिंह बिट्टू भी इस वर्ष के आरम्भ में भाजपा में शामिल हो गए थे, जिससे नई भाजपा पुरानी कांग्रेस जैसी दिखाई देने लगी है। 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने 13 में से 8 सीटें जीती थीं जबकि अकाली-भाजपा गठबंधन को तब चार सीटें ही मिली थीं। शिरोमणि अकाली दल को जहां 27.4 प्रतिशत वोट मिले थे, वहीं भाजपा को 9.6 प्रतिशत वोट मिले थे। इस बार शिरोमणि अकाली दल अकेले चुनाव लड़ रहा है। अब देखना होगा कि क्या इससे भाजपा अपनी सीटों में कुछ वृद्धि कर सकेगी या नहीं और अकाली दल को इसका क्या नुकसान होगा? (आई.पी.ए.)