खेती करमां सेती

विगत दिवस पंजाब के 10 ज़िलों में ओला-वृष्टि, बारिश होने तथा तेज़ हवाएं चलने से खेतों में खड़ी गेहूं की फसल तथा मंडियों में बिक्री के लिए आई उपज को भारी नुकसान पहुंचा है। कई स्थानों पर तेज़ हवाएं चलने से गेहूं की फसल ज़मीन पर बिछ गई है। इस कारण किसानों की मुश्किलें बेहद बढ़ गई हैं। अनेक स्थानों पर बोई गई सियालू मक्की की फसल तथा फल-सब्ज़ियों की फसल को भी नुकसान पहुंचा है। पंजाबी की कहावत ‘खेती करमां सेती’ सदियों पहले अस्तित्व में आई थी, परन्तु यह आज भी प्रासंगिक है। इसी प्रकार पंजाबी के प्रसिद्ध शायर धनी राम चात्रिक की ये काव्य-पंक्तियां ‘पक्की खेती देख के गरभ करे किसान, वाओ झक्खड़ झोलियों घर आवे तां जाण’ भी कृषि की अनिश्चितता तथा इसमें शामिल जोखिमों की ओर ध्यान आकर्षित करती हैं।
समय व्यतीत होने से, धरती की तपिश में वृद्धि होने तथा इसके कारण पर्यावरण की संतुलन बिगड़ने से कृषि के जोखिमों में और भी वृद्धि हो गई है। कभी सूखा तथा कभी बाढ़ अब सामान्य जैसी बातें हो गई हैं। कई बार फसलों की बीमारियां भी किसानों का बड़ा नुकसान करती हैं। कृषि उत्पादन के आधुनिक ढंग-तरीकों के कारण कृषि लागत भी बहुत बढ़ चुकी है। इसलिए जब फसल का नुकासन होता है तो किसानों को भारी अर्थिक नुकसान होता है। वे ऋण के जाल में फंस जाते हैं। जब भी किसानों को प्राकृतिक या अप्राकृतिक मुसीबतों का सामना करना पड़ता है, तो सरकारों की ओर से किसानों को उचित मुआवज़ा देने के वायदे तो किये जाते हैं, परन्तु बाद में ये वायदे हवा हो जाते हैं। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने गत समय में आई बाढ़ या अन्य कारणों से हुए फसलों के नुकसान बारे कई बार मुआवज़ा देने के वायदे किये थे। गत वर्ष आई बाढ़ के समय तो उसने मुर्गियों तथा बकरियों तक का मुआवज़ा देने का वायदा भी किया था, परन्तु वे वायदे पूरे नहीं हुए। अब मुख्यमंत्री की ओर से बारिश, आंधी तथा ओलावृष्टि से किसानों की फसल के हुए नुकसान की पूर्ति करने का फिर वायदा किया है, परन्तु इस संबंध में कुछ नहीं कहा जा सकता कि यह वायदा भी पूरा होगा या नहीं। 
परन्तु हमारा इस संबंध में स्पष्ट विचार है कि केन्द्र तथा राज्य सरकारें मिल कर स्थायी रूप से किसानों की खेत से लेकर मंडी तक फसलों की सुरक्षा के लिए प्रभावी नीति तैयार करें। पहले बनाई गई फसली बीमा योजना किसानों को अधिक लाभ देने में असमर्थ रही है। इसे और प्रभावी बनाना है या किसी अन्य योजना को क्रियात्मक रूप देना है, इस संबंध में सरकारों को पहल के आधार पर मिल बैठ कर विचार-विमर्श करना चाहिए, परन्तु देश की 140 करोड़ आबादी को खाद्य सुरक्षा उपलब्ध करने वाले किसानों को प्राकृतिक तथा अप्राकृतिक आपदाओं से राहत देने के लिए ठोस नीति अवश्य बननी चाहिए।