नई लोकसभा, कांग्रेस, ‘आप’ तथा बिट्टू

लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद पंजाब की आगामी राजनीति बारे सोशल मीडिया में कई तरह की टिप्पणियां पढ़ने को मिलती हैं। यदि 13 में से तीन सीटें जीतने वाली आम आदमी पार्टी चुप है तो कांग्रेस पार्टी के प्रसिद्ध नेता अपनी पार्टी की जीत को अलग ढंग से देख रहे हैं। वे समझते हैं कि भाजपा तथा शिरोमणि अकाली दल की साझ टूटने के कारण कांग्रेस की जीत उतनी प्रभावी नहीं जितनी हो सकती थी। यह टिप्पणी कांग्रेस विधायक परगट सिंह की है और इसे बड़े समाचार पत्रों ने परगट सिंह की दलीलों सहित विशेष स्थान दिया है। उधर बठिंडा से शिरोमणि अकाली दल की सांसद हरसिमरत कौर बादल कांग्रेस की जीत बारे तो चुप हैं, परन्तु आम आदमी पार्टी के घटिया प्रदर्शन के मद्देनज़र भगवंत मान से मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने की मांग कर रही हैं। श्रीमती बादल की भावना कैसी भी हो परगट सिंह की नज़र विधायक के मुकाबले बड़े पद पर टिकी हुई प्रतीत होती है। राजनीति में इस प्रकार की भावना रखना स्वाभाविक है, परन्तु वह भूले बैठे हैं कि लुधियाना लोकसभा क्षेत्र से हारने वाला पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह का पोता रवनीत सिंह बिट्टू उनसे बहुत बड़ा खिलाड़ी है। उसके पंजाब की राजनीति में परगट सिंह से कहीं बड़े पांव हैं। यदि कल की बात ही करें तो उन्होंने भाजपा नेता अमित शाह के साथ संबंध बना कर राज्य मंत्री का पद हथिया लिया है। 
कौन नहीं जानता कि कुछ दिन पहले तक वह कांग्रेस पार्टी का जाना-पहचाना चेहरा थे और उन्हें राजनीति के मार्ग पर लाने वाले राहुल गांधी थे। जो भाजपा में शामिल होने के लिए जी-हुज़ुरी नहीं करता, उसके लिए परगट सिंह को शिकस्त देने के लिए रातोंरात अपनी मूल पार्टी में लौटना क्या कठिन है? आगामी विधानसभा चुनावों के बाद पंजाब की राजनीति किस राह पर चलती है, समय बताएगा। 
पत्रकार विद्या प्रकाश प्रभाकर
मेरे लिए उजागर सिंह तथा शारधा राणा द्वारा सम्पादित तथा सप्तऋषि पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित वी.पी. प्रभाकर की जीवनी तथा रचना वाली अंग्रेज़ी पुस्तक पढ़ना अपने जीवन के पृष्ठ खंगालना है। 19 मार्च, 1937 को जन्मा विद्या प्रकाश मुझसे (जन्म 22 मार्च, 1934) तीन वर्ष छोटा है। उसके पिता का पैतृक कस्बा फगवाड़ा है। यह बंगा, नवांशहर (अब शहीद भगत सिंह नगर) तथा जेजों दोआबा को दिल्ली से लाहौर को जाती रेलवे लाइन से जोड़ने के कारण जंक्शन कहलाता है। प्रभाकर का जन्म लाहौर का है, जहां उसके पिता जी पंजाब सरकार में सहायक सचिव थे। मेरा गांव सोनी जेजों वाली रेलवे लाइन पर पड़ते सैला खुर्द स्टेशन से सिर्फ अढ़ाई किलोमीटर दूर है। 
इस पुस्तक से पता चला कि प्रभाकर भी मेरी तरह पंजाब से बी.ए. पास करके दिल्ली चला गया था और हारकोर्ट बटलर स्कूल की इमारत में पाकिस्तान से विस्थापित होकर आए शरणार्थियों के लिए स्थापित किये कैम्प कालेज में पढ़ता रहा है। 
चाहे यह कालेज शरणार्थियों के लिए स्थापित किया गया था ताकि वे दिन के समय नौकरी करते हुए कैम्प कालेज नामक इस कालेज में दाखिला लेकर पढ़ाई जारी रखें परन्तु इसके द्वार उच्च शिक्षा के अन्य इच्छुकों के लिए भी खुले थे। प्रभाकर से तीन वर्ष पहले मैंने भी उस कालेज से अंग्रेज़ी की एम.ए. की थी, जहां उस समय प्रेम कुमार तथा अरविंद भी पढ़ते रहे हैं। उन दोनों का प्रभाकर को पत्रकारिता की राह पर लाने में बड़ा योगदान था।    
जहां तक मेरा संबंध है, वे दोनों मेरे मित्र थे। अरविंद तथा मैं दिल्ली की करोल बाग बस्ती में एक-दूसरे के निकट रहते थे। मेरी प्राथमिक कहानियों में से ‘सीत पोटे’ नामक कहानी को अंग्रेज़ी में ‘फ्रोज़न फिंगर्स’ तथा हिन्दी में ‘ठंडा हाथ’ नाम देकर क्रमश: अंग्रेज़ी मासिक ‘कैरावाल’ तथा हिन्दी मासिक ‘सारिका’ में प्रकाशित करवाने वाला भी वही था। इन दोनों पत्रिकाओं का मालिक एक था तथा अरविंद उस संस्था के सम्पादकीय स्टाफ में काम करता था। 
एक और बात, जिसका प्रभाकर के साथ सीधा संबंध नहीं, 1965 के भारत-पाक युद्ध के समय हमारी ओर से पाकिस्तान के कुछ गांव जीतने से संबंध रखती है। तब अम्बाला के गिरजा घर पर पाकिस्तान ने बम गिराया था। उसकी अखबारी रिपोर्ट तो प्रभाकर ने लिखनी थी, परन्तु भारत द्वारा पाकिस्तान के जीते हुए गांव देखने वाले वापिसी पर अम्बाला स्थित गिरजा घर भी देखते थे। मैं तथा पंजाबी कवि तारा सिंह कामिल भी उनके जैसे ही थे। हम नई दिल्ली से मोटरसाइकिल पर गए थे। एक रात मेरे पैतृक गांव रह कर। जब हम वापिसी पर गिरजा घर देखने के लिए रुके तो मुम्बई से आई फिल्मी हस्ती बलराज साहनी भी वहां उपस्थित थे। मेरी तथा तारा सिंह की उनके साथ मुलाकात पहली ही नहीं, अंतिम भी थी। 
इन निजी बातों से बाहर की जो बात इस पुस्तक बारे कहने वाली है, वह इसके आधा दर्जन लेखकों के प्रभाकर बारे लिखे लेख तो हैं ही परन्तु एक दर्जन उसकी अपनी रिपोर्टों पर टिप्पणी भी है जिनका उचित चयन करने के लिए उजागर सिंह तथा शारदा बधाई के पात्र हैं। 
अंतिका
(पश्चिमी पंजाब से ताहिरा सजा)
दम दा कोई वसाह नहीं हुंदा,
दम दा आप वसाह लैना ए।
डाहडे नाल मुकद्दमा चलता,
वेला असां गवाह लैना ए।
ताहिरा प्यार जे विकना आवे,
लोकां अन्नेहाव लैना ए।