राष्ट्रीय राजनीति में अकाली दल का ऱुख क्या हो ?A

पुराने वक्तों के कुछ लोग अब भी कहते हैं,
बड़ा वही है जो दुश्मन को भी माफ करे।
(अ़ख्तर शाहजहांपुरी)
अकाली दल के महासचिव बलविन्दर सिंह भूंदड़ ने एक साक्षात्कार में बेशक यह कहा है कि हम थर्ड फ्रंट (तीसरे मोर्चे) के साथ हैं, परन्तु साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि हमारे लिए अब कांग्रेस तथा भाजपा समान हैं। हमारा कोई मित्र नहीं और हमारा कोई दुश्मन नहीं। आज जब मैंने उनके साथ इस संबंधी बात की तो उन्होंने कहा कि हमारी घोषणा जो श्री आनंदपुर साहिब के प्रस्ताव पर आधारित है, जो भारत के संघवाद की मज़बूती की बात करता है तथा पंजाब एवं सिखों की अन्य मांगों के प्रति जो भी पार्टी सार्थक दृष्टिकोण अपनाएगी, हम उसके साथ जा सकते हैं। हमारी लड़ाई सैद्धांतिक लड़ाई है। मुझे याद है कि जब अक्तूबर 2023 में राहुल गांधी श्री दरबार साहिब के दर्शनों के लिए आए थे, तथा दो दिन वहां रह कर उन्होंने बिना पार्टी के लाव-लश्कर और राजनीतिक ताकत के प्रदर्शन के बिना सेवा की, तथा वह कीर्तन भी श्रवण करते रहे थे, उस वक्त दूसरी कतार के कुछ अकाली नेताओं ने उन्हें अपनी दादी के किए कर्मों के लिए माफी मांगने के लिए भी कहा था। 
इन कालमों में हमने उस समय स्पष्ट लिखा था कि श्री गुरु अर्जन देव जी का कथन है :—
जो सरणि आवै तिसु कंठि लावै,
इहु बिरदु सुआमी संदा।         (अंग: 544)
हम समझते हैं कि जब कोई चल कर गुरु साहिब के चरणों में झुकने हेतु आ गया है, तो वह अपने मन में माफी मांग कर ही आया होगा। वैसे अच्छा होता कि यदि वह कांग्रेस पार्टी की ओर से एक बार स्पष्ट रूप में माफी मांग लेते। 
किसी भी कारण किसी माता-पिता के किए किसी काम की सज़ा उनके बच्चों को नहीं दी जानी चाहिए। उल्लेखनीय है कि 1984 में श्री दरबार साहिब पर केन्द्र सरकार के हमले तथा इसकी प्रतिक्रियास्वरूप तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या तथा इसके अगली प्रतिक्रिया के रूप में सिखों के नर-संहार के समय राहुल 14-15 वर्ष तथा प्रियंका 12-13 वर्ष के थे। अत: उस समय के घटनाक्रम के लिए राहुल तथा प्रियंका को ज़िम्मेदार ठहराना उचित नहीं। वैसे हमारी जानकारी के अनुसार राहुल गांधी तथा प्रियंका गांधी कई बार चुप-चाप ही श्री दरबार साहिब में नतमस्तक होकर गए हैं। वैसे भी चुनाव परिणाम यह सिद्ध करते हैं कि सिखों के बड़े भाग ने उन्हें माफ कर दिया है। वैसे राहुल गांधी कई बार 1984 की घटनाओं के लिए दुख व्यक्त कर चुके हैं, परन्तु यह ठीक है कि उन्होंने श्री अकाल तख्त साहिब पर जाकर अथवा प्रैस में प्रत्यक्ष रूप में अभी तक माफी नहीं मांगी। वर्ष 2023 में जब श्री राहुल गांधी अमरीका में इंडियन ओवरसीज़ कांग्रेस के एक कार्यक्रम में गए थे तो उनसे मिले एक सिख प्रतिनिधिमंडल की ओर से उठाए एक सवाल के जवाब में भी राहुल गांधी ने इसके लिए माफी मांगी थी, परन्तु दौरे का प्रबंध कर रहे लोगों ने राजनीतिक कारणों से इस माफी को प्रैस में जाने देने के गुरेज किया था।
 वैसे राहुल की नीयत तथा नीति इस बात से भी स्पष्ट है कि अब केन्द्र में राज्य मंत्री बने रवनीत सिंह बिट्टू ने सरेआम कहा है कि उन्होंने कांग्रेस इसलिए भी छोड़ी कि राहुल गांधी मुझ पर मेरे दादा स्वर्गीय बेअंत सिंह के सिख कातिलों को वैसे ही छोड़ने का दबाव बना रहे थे जिस प्रकार राहुल के परिवार ने राजीव गांधी की हत्या में शामिल लोगों को माफ कर दिया था। नोट करें, कभी-कभी बदला लेने की बजाय माफ करना और भी बड़ा बदला होता है। फैसल आज़मी के शब्दों में :—
मैं ज़ख्म खा के गिरा था कि थाम उसने लिया।
माफ करके मुझे इन्तकाम उसने लिया।।
अकाली दल की स्थिति और होती 
यदि उस समय अकाली दल ने राहुल गांधी द्वारा श्री दरबार साहिब में लगातार दो दिन किए गए पश्चाताप या सेवा को माफी के रूप में स्वीकार कर लिया होता और उस समय ही यह घोषणा कर दी होती, जो अब अकाली दल के प्रमुख नेता बलविन्दर सिंह भूंदड़ ने की है, तो आज अकाली दल की स्तिथि कुछ और होती। इतिहास गवाह है कि पांचवें गुरु साहिब श्री गुरु अर्जन देव जी की शहादत के लिए तत्कालीन शासक जहांगीर को मुख्य आरोपी माना जाता है, परन्तु 6वें गुरु श्री गुरु हरगोबिन्द साहिब जी की ग्वालियर के किले से रिहाई के बाद बादशाह जहांगीर के साथ अच्छे संबंध रहे। 
बादशाह औरंगज़ेब के असह और अकथनीय ज़ुल्म के बाद दशम गुरु श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी के औरंगज़ेब बेटे बहादुर शाह प्रथम के साथ अच्छे संबंध भी हमारे सामने हैं। सिखों के एक समय के बड़े तथा खूंखार दुश्मन ज़करिया खान के कहने पर म़ुगल सल्तनत ने सिखों को नवाबी पेश की तो तत्कालीन सिख नेताओं ने वक्त की हकीकत तथा राजनीति को समझते हुए अपनी ताकत बढ़ाने के लिए समय लेने के लिए यह नवाबी भी स्वीकार कर ली थी। स. कपूर सिंह को नवाब कपूर सिंह बना लिया था। अन्य बहुत उदाहरण हैं। 
1984 के बाद दिल्ली में परमजीत सिंह सरना कांग्रेस की मदद से ही दिल्ली सिख गुरुद्वारा कमेटी के प्रधान बने थे तथा सच यह है कि वह जत्थेदार गुरचरण सिंह टौहड़ा की मज़र्ी के बिना उस समय एक कदम भी नहीं उठाते थे। हम अकाली दल की ओर से लिए गए इस नये स्टैंड का समर्थन करते हैं क्योंकि अल्पसंख्यकों विशेषकर सिखों जैसे दो प्रतिशत से भी छोटे अल्पसंख्यक दो बड़े पक्षों में से सिर्फ एक के साथ चल कर ही अपने हित सुरक्षित नहीं रख सकते, अपितु अल्पसंख्यकों को तो वक्त तथा हालात को सामने रख कर ही अपने फैसले करने चाहिएं।
 अकाली दल की पहली नीति कि भाजपा का ही साथ देना है और दूसरा पक्ष हमारे लिए अछूत है, ने अकाली दल को कहां पहुंचा दिया है, यह हमारे सामने है। हां, सिर्फ भाजपा का साथ देना ही अकाली दल के न्यून होने का कारण नहीं बना, उन्होंने अन्य गलतियां भी बहुत की हैं, परन्तु यदि सिर्फ शासन तथा विकास की बात करें तो अकाली दल के शासन में कई बहुत अच्छे काम भी हुए और गलत फैसले भी लिए गए।
 खैर, ‘देर आयद, दुरुस्त आयद’ पर यहां एक सवाल भी उठता है कि क्या सिर्फ अकाली दल ही सिखों की एकमात्र जमात है? हां, कुछ वर्ष पहले तक अकाली दल अकेला ही सिखों की एकमात्र जमात थी, परन्तु इस बार दो आज़ाद उम्मीदवारों भाई अमृतपाल सिंह तथा भाई सरबजीत सिंह खालसा भी पंथक उम्मीदवारों के रूप में जीते हैं और बहुत शान से जीते हैं, परन्तु उनके लिए भी यह सवाल खड़ा रहेगा कि वे सिख कौम को किस ओर लेकर जाएं? क्योंकि वोट की राजनीति में सिखों की संख्या बहुत कम है। हम समझते हैं कि अब लोकसभा में एन.डी.ए. तथा ‘इंडिया’ गठबंधन से बाहर 16 सांसद हैं जिनमें कम से कम 10 तो ऐसे हैं जो इस समय भाजपा के साथ नहीं जा सकते जबकि शेष 6 में से कोई भी किसी पक्ष के साथ स्थायी रूप में जुड़ा हुआ नहीं है। खैर, हम अकाली दल के इस रणनीतिक फैसले का स्वागत करते हैं और मंजर भुपाली का एक शे’अर भी पेश करने से नहीं रह सकते :
अमल दुरुस्त करें अपने रहनुमा-ए-किराम,
कहूंगा स़ाफ तो सबको शिकायतें होंगी।
पंजाब के सांसदों को अपील 
पंजाब के सभी सांसद चाहे वे किसी भी पार्टी के हैं, को अपील है कि वे अपनी-अपनी पार्टी के प्रति वफादार रहते हुए ही पंजाब की सांझी हकी मांगों तथा ज़रूरतों की पूर्ति के लिए आपस में मिल बैठें और पंजाब के साथ होते अन्याय को रुकवाने तथा मांगों को मनवाने के लिए कम से कम एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम बनाएं। वे शेष मसलों पर राष्ट्रीय स्तर पर अपनी-अपनी पार्टी से साथ जाएं, परन्तु पंजाब के हितों के लिए एकजुट अवश्य रहें और इसके लिए भिन्न-भिन्न मंत्रालयों तथा अन्य नेताओं जिनमें प्रधानमंत्री तथा राष्ट्रपति भी शामिल हैं, को इकट्ठे होकर मिलें। परन्तु, इसके लिए पहल तो सबसे अधिक सीटें जीतने वाली पार्टी कांग्रेस को ही करनी चाहिए, परन्तु यदि पंजाब के सांसदों में से कोई अन्य भी यह कार्य कर ले तो यह कोई गलत बात नहीं होगी। जो भी पहल करेगा, उसका प्रभाव अच्छा ही पड़ेगा। 
मुझे दोस्त कहने वालो ज़रा दोस्ती निभा दो,
ये मुतालबा है हक का कोई इल्तिज़ा नहीं है।
(शकील बदायूनी)

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