वायु प्रदूषण के बढ़ते खतरे

भारत में वायु प्रदूषण की निरन्तर बिगड़ती स्थिति को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था यूनिसेफ के सतत् सहयोग से जारी की गई एक रिपोर्ट ने नि:संदेह देश और समाज में एक ओर जहां चिन्ता की स्थिति उत्पन्न की है, वहीं चिन्तन एवं सोच के धरातल पर अधिक जागरूक एवं चेतन होने की आवश्यकता पर भी बल दिया है। यह रिपोर्ट भारत में भावी पीढ़ियों की नियति के लिए अत्यधिक विनाशक और हानिकारक होने की ओर भी संकेत करती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वैसे तो दुनिया भर में वायु प्रदूषण को लेकर स्थिति निरन्तर शोचनीय होती जा रही है, किन्तु भारत में यह समस्या अधिक गम्भीर होते दिखाई दी है। इसी का एक प्रमाण यह भी है कि वर्ष 2021 में विश्व भर में वायु प्रदूषण के कारण हुई 81 लाख मौतों में से 23 लाख से अधिक अकेले भारत में हुई हैं। यहां तक कि प्रदूषण के लिए प्राय: विपरीत धरातल पर चर्चित रहने वाला देश चीन भी, वायु प्रदूषण के मामले में भारत से कहीं अच्छी श्रेणी में आता है, और कि चीन में इस काल में 21 लाख मौतें दर्ज की गई हैं। इस रिपोर्ट का एक निराशाजनक पक्ष यह भी है कि वायु प्रदूषण का अधिक बुरा प्रभाव बच्चों, महिलाओं और वृद्ध जनों पर पड़ता है जिसके कारण समाज में श्वसन प्रणाली से जुड़े रोगों में निरन्तर वृद्धि होती गई है। नि:संदेह  इन रोगों के कारण देश और समाज में होने वाली मौतों की संख्या निरन्तर बढ़ती गई है। देश में  जलवायु में विपरीत-प्रभावी परिवर्तन अक्सर मानवीय कोताहियों के कारण भी होते हैं। ग्रीन हाऊस गैसों ने वायु प्रदूषण की स्थिति को निरन्तर गम्भीर किया है, चालू वर्ष में भी वायु प्रदूषण और वैश्विक धरातल पर अप्रत्याशित रूप से दिखाई दिये पर्यावरणीय परिवर्तन से अधिक लोगों के मारे जाने की सूचना है।
इस रिपोर्ट के दूसरे पक्ष में कम उम्र के बच्चों पर वायु-प्रदूषण को लेकर पड़ते विपरीत प्रभाव को लेकर भी चर्चा की गई है। विगत पांच वर्ष की स्थितियों को लेकर उपजे निष्कर्ष के अनुसार पड़ोसी देश पाकिस्तान भी भारत से कहीं अच्छी स्थिति में है। भारत में पांच वर्ष तक के आयु वर्ग वाले बच्चों में वायु-प्रदूषण के कारण 1,69,400 मौतें हुई दर्ज की गईं जबकि पाकिस्तान में ऐसी मौतों का आंकड़ा केवल 68,100 तक रहा। रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि वायु की गुणवत्ता के निरन्तर बिगाड़ का असर दक्षिण एशियाई देशों पर अधिक पड़ा है। रिपोर्ट में देश में वायु-गुणवत्ता पर पड़ने वाले बुरे प्रभाव के लिए स्तरहीन खान-पान, तम्बाकू के सेवन और धुएं को बड़ा कारण बताया गया है। देश की बढ़ती आबादी भी वायु प्रदूषण और इस कारण होने वाली मौतों के लिए किसी सीमा तक उत्तरदायी हो सकती है। भारत आज इस मामले में चीन से आगे निकल गया है किन्तु दुनिया के ये दोनों बड़े देश इस चरण पर अक्सर नाज़ुक स्थिति में घिरते रहे हैं।
भारत में धुएं की समस्या सदैव से गम्भीर होती रही है। जंगलों की आग, उद्योगों से उपजा धुआं, निर्माण गतिविधियों से उत्पन्न प्रदूषण और कूड़े-कचरे की समस्या वायु गुणवत्ता को खराब करने का कारण बनते रहे हैं। इस कारण देश के जंगल और हरियाली वाले क्षेत्र निरन्तर कम होते गये हैं, और कंक्रीट के जंगल का दायरा निरन्तर बढ़ता जाता है। लिहाज़ा इस कारण भी देश का वायु-मंडल दुष्प्रभावित हो रहा है। नासा से प्राप्त आंकड़ों की गणना रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पर्यावरण और वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए वैश्विक धरातल पर वायु मंडल में से धुआं उत्पन्न करने वाली गैसों की मौजूदगी में निरन्तरता के साथ कमी लाना बेहद ज़रूरी है। इसके लिए विश्व के धनी देशों को प्राथमिकता के आधार पर अपनी ज़िम्मेदारी को समझना होगा। पिछले वर्ष दिसम्बर मास में दुबई में सम्पन्न हुई अन्तर्राष्ट्रीय वार्ता कान्फ्रैंस में भी इस आवश्यकता पर बल दिया गया था। भारत में भी इस वार्तालाप में प्रस्तुत मान-दण्डों और परिवर्तन उपायों को अपनाये जाने की महती आवश्यकता है। तीसरी दुनिया के देशों के साथ विचार-विमर्श के बाद, भारत को विश्व धरा पर अपनी सशक्त भूमिका निभाने हेतु आगे आना होगा। इससे जहां भारत पूरे विश्व में पर्यावरणीय प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन को कम करने में अपनी भूमिका निभा सकेगा, वहीं अपने लोगों को विनाशक अवसान की ओर बढ़ने से रोका जा सकेगा। अपने देश में हरित क्षेत्रों को बढ़ाने, धुएं की समस्या पर काबू पाने और जलवायु परिवर्तन को रोकने के धरातल पर सार्थक पग उठाये जाने होंगे। हम समझते हैं कि जितनी शीघ्र देश इस दिशा में आगे बढ़ेगा, उतना ही यह मानवता की सुरक्षा के हित में साबित होगा।