सुरक्षित अमरनाथ यात्रा हो मोदी सरकार की पहली प्राथमिकता 

पाकिस्तान के आतंकी गुट द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) की अमरनाथ यात्रियों पर हमले की खुली धमिकयों तथा खुफिया एजेंसियों को हाथ लगे भयावह इनपुट्स के बीच 29 जून, 2024 से 19 अगस्त, 2024 तक यानी कुल 52 दिनों की अमरनाथ यात्रा-2024 शुरू हो चुकी है। सीआरएफ की 231 गाड़ियों में सवार होकर 4603 तीर्थयात्रियों का पहला जत्था जब 29 जून को बालटाल और पहलगाम बेस कैंप पहुंचा तो स्थानीय वालंटियरों और सुरक्षाबालों का उत्साह देखने लायक था, लेकिन चुनौती यह है कि यह उत्साह अगले दो महीनों तक लगातार बना रहना चाहिए, क्योंकि आत्मघाती आतंकवाद के सबल प्रतिरोध का पर्याय बन चुकी पवित्र अमरनाथ यात्रा को आतंकी अपने कुत्सित इरादों के चलते छिन्न-भिन्न करना चाहते हैं। इसलिए इस बार की अमरनाथ यात्रा हाल के दूसरे सालों की तरह की यात्रा नहीं है। इस बार की यात्रा पर आत्मघाती हमलों की आशंकाएं मंडरा रही हैं। दरअसल साल 2019 में जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने के बाद यह पहला ऐसा साल है जब अमरनाथ यात्रा डर और दहशत के माहौल में हो रही है।
इसकी वजह है, जिस तरह से जम्मू-कश्मीर में हाल के लोकसभा चुनावों के दौरान मतदाताओं ने मतदान में बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी की थी, उससे आतंकी चिढ़ गये हैं। उनकी यह चिढ़ इसलिए भी उन्हें परेशान कर रही है क्योंकि जल्द ही जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सभा चुनाव भी होने वाले हैं और आतंकियों को पता लग चुका है तब मतदाता और भी ज्यादा उत्साह से मत डालेंगे। इसलिए आतंकी चाहते हैं कि वह तुरत-फुरत में ऐसा कुछ कर दें कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव ही न हो। इसके लिए वे अमरनाथ यात्रियों पर कोई कोई आत्मघाती हमला कर सकते हैं, क्योंकि कश्मीर में सफल लोकसभा चुनाव के बाद प्रदेश में सक्रिय आतंकी ही नहीं पड़ोस में बैठे उनके आका भी अंदर तक हिल गये हैं। ऐसे में वह किसी भी कीमत पर जम्मू-कश्मीर में खासकर अब तक शांत रहने वाले इसके जम्मू प्रभाग में दहशत का ऐसा माहौल बनाना चाहते हैं, जिससे कि दुनिया मान ले कि जम्मू-कश्मीर में शांति नहीं है।
यह आतंकियों की किस तरह मजबूत योजना का हिस्सा है इसका पता इसी बात से लगता है कि जिस समय मोदी सरकार 3.0 का राजधानी दिल्ली में औपचारिक रूप से गठन हो रहा था, ठीक उसी समय जम्मू में आतंकी दहशतगर्दी का माहौल बनाने के लिए आम लोगों विशेषकर तीर्थयात्रियों पर हमले कर रहे थे। मोदी सरकार 3.0 के गठन के 72 घंटों के भीतर जम्मू-कश्मीर में 3 जबरदस्त आतंकी हमले हुए। साल 2017 के बाद यह पहली बार है जब रियासी जिले में श्रद्धालुओं से भरी एक बस पर हमला किया गया, जिससे 10 श्रद्धालुओं की मौत हो गई। वैसे सुरक्षा तैयारियों के लिहाज से इस साल अमरनाथ यात्रा कहीं ज्यादा चाक-चौबंद है, लेकिन खुफिया एजेंसी को जिस तरह के इनपुट्स हाल में मिले हैं, जिसके बाद से ही जम्मू क्षेत्र में सुरक्षा की ऐसी कवायद देखी गई है, जैसे हाल के दिनों में नहीं देखी गई थी।
इससे साफ ज़ाहिर है कि इस साल की यात्रा पर जबरदस्त खतरा मंडरा रहा प्रतीत हो रहा है, इसलिए मोदी सरकार को अतिरिक्त सतर्कता बरतते हुए आशंका के मुकाबले कहीं ज्यादा निपटने का इंतजाम करना होगा। वैसे देखा जाए तो ऐसे इंतजाम हुए भी हैं। यह पहला ऐसा मौका है, जब अमरनाथ यात्रा पर जाने वाले यात्रियों के बेस कैम्प की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी आईजी रैंक के अधिकारी संभालेंगे। इससे पहले एसएसपी रैंक के अधिकारी बेस कैंप की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी संभालते थे। वास्तव में पिछले दिनों जम्मू संभाग में  ताबड़तोड़ हुए तीन आत्मघाती हमलों साथ ही रियासी जिले में तीर्थयात्रियों पर किया गया हमला, आतंकियों के मसूबों का सुराग दे गया है, इस कारण सुरक्षा व्यवस्था को जबरदस्त तरीके से मजबूत बनाया गया है। यह पहला मौका है जब पूरे यात्रा मार्ग पर ड्रोन तैनात रहेंगे और पूरे यात्रा के दौरान 10 सीसीटीवी सेंटर बनाये गये हैं, जहां पल पल की सुरक्षा व्यवस्था का जायज़ा लिया जायेग और जहां भी ज़रा सी खामी दिखेगी, तुरंत सीआरपीएफ  की क्विक रिएक्शन टीम वहां मोर्चा संभालेगी। इस बार की अमरनाथ यात्रा के लिए सुरक्षा की तीन मजबूत लेयर बनायी गई है। जम्मू-कश्मीर पुलिस, फिर सेना और अंत में आतंकियों से निपटने वाली सीआरपीएफ की क्विक रिएक्शन टीम को तैनात किया गया है। यही नहीं पिछले एक महीने से विभिन्न स्तरों की सुरक्षा व्यवस्था में गहरा तालमेल बनाने के लिए लगातार आपातकालीन स्थितियों से निपटने हेतु मॉक ड्रिल हो भी रही है, जिससे अमरनाथ यात्रियों की सौ फीसदी सुरक्षा व्यवस्था हर हाल में सुनिश्चित की जाए।
वैसे अमरनाथ यात्रा के लिए हमेशा सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद रही है, इसके बावजूद 1990 से लेकर 2017 तक यानी लगभग तीन दशकों में आतंकियों ने तीर्थयात्रियों पर 36 बार हमले किये हैं और इन हमलों में कोई 67 लोग मारे गये हैं। तीर्थयात्रियों पर आतंकियों का सबसे बड़ा हमला अगस्त 2000 में हुआ था, जब पहलगाम में आतंकियों ने तीर्थयात्रियों के पड़ाव पर हमला किया था और 32 लोगों को मार डाला था और 60 लोग गंभीर रूप से घायल हो गये थे। मगर इसके बाद से छोटी-मोटी घटनाएं तो होती रही है, वैसी बड़ी घटना नहीं हुई। वैसे अगर आंकड़ों के लिहाज से देखें तो 2019 के बाद से आतंकियों के अरेस्ट होने और जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की विभिन्न घटनाओं पर काफी कमी आयी थी, लेकिन हाल के कुछ महीनों में जैसे कि आतंकी आत्मघात के ज़रिये दुनिया को यह संदेश देना चाहते हों कि जम्मू-कश्मीर में किसी तरह की शांति नहीं है, इसलिए पिछले चार महीनों में आतंकवादियों की आत्मघाती घटनाओं में काफी इजाफा हुआ है। सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि आतंकियों के पास अब ऐसे उन्नत हथियार आ गये हैं, जिससे ज़रा-सा मौका पाकर वे बहुत बड़ी दहशत फैला सकते हैं। खुफिया एजेंसियों के मुताबिक इस समय जम्मू-कश्मीर में सक्रिय करीब 200 आतंकियों के पास छोटी मिसाइल सहित 4 तरह के घातक हथियार हैं, जिनमें छोटी मिसाइलें यानी हैंड ग्रेनेड के अलावा आईआईडी, चिपकने वाला बम और हमलावार ड्रोन भी उनके पास एक हथियार है, जिसकी बदौलत वो दूर से भी हमला कर सकते हैं।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर