जम्मू-कश्मीर में पीर पंजाल जैसे एक और ऑपरेशन की ज़रूरत 

जम्मू-कश्मीर के रियासी, कठुआ और डोडा ज़िलों में हालात शांतिपूर्ण नहीं हैं। वहां किसी भी समय ताबड़तोड़ गोलियों की आवाज़ सुनाई देने लगती है और पूरे क्षेत्र में दहशत फैल जाती है। यह सिलसिला 9 जून, 2024 से अधिक चिंताजनक हो गया है और अभी तक जारी है कि 17 जुलाई, 2024 की देर रात को भी डोडा के भट्टा-देसा पहाड़ी क्षेत्र में सुरक्षाकर्मियों और आतंकियों के बीच ज़बरदस्त मुठभेड़ हुई। पिछले कुछ वर्षों से आतंकियों ने अपनी नापाक हरकतों को अंजाम देने के जम्मू पर अधिक फोकस किया है और हाल के महीनों में जम्मू क्षेत्र में आतंकी हिंसा में तेज़ी आयी है, जबकि इससे पहले यह क्षेत्र आतंक से मुक्त था। अक्तूबर 2021 के बाद से जम्मू में कम से कम 49 सुरक्षाकर्मियों की हत्या हुई है, जिनमें 39 सेना के जवान और एक आईएएफ अधिकारी शामिल है।
हालांकि हाल की आतंकी घटनाओं के लिए कश्मीर टाइगर्स ने ज़िम्मेदारी ली है, लेकिन यह वास्तव में जैश का ही शैडो ग्रुप है। इसमें पाकिस्तान के ‘घुसपैठिया’ ऑपरेट करते हैं। इस समय यह गुट एक नई रणनीति अपनाये हुए है जो घातक साबित हो रही है। सुरक्षाबलों के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि भारी मात्रा में हथियारों से लैस तीन या चार आतंकियों के छोटे-छोटे गुट समन्वित हमला करते हैं। उनकी इस क्षमता से भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि वे कवच को भेदने वाली गोलियां और अमरीकी एम4 कार्बाइन का इस्तेमाल कर रहे हैं। जम्मू-कश्मीर के डीजीपी आर.आर. स्वैन का कहना है कि एक भी आतंकी की उपस्थिति चिंता का विषय है, क्योंकि उसमें अंधाधुंध हिंसा की क्षमता होती है और यह मालूम नहीं होता कि वह कब और कहां हमला बोल दे। स्वैन के अनुसार, ‘आतंकी हत्या मशीन की तरह काम करते हैं। विनाश ही उनका एकमात्र उद्देश्य होता है और उन्हें इसी काम के लिए भेजा भी जाता है। इन आतंकियों का हमारी भूमि से कोई संबंध नहीं है, सिवाय हिंसा में वृद्धि, डर उत्पन्न करने और दहशत फैलाने के कोई और उद्देश्य नहीं है।’
स्वैन ने कोई नई बात नहीं कही है। यह बातें हम दशकों से सुनते आ रहे हैं। सवाल यह है कि जम्मू में जो आतंक की वापसी हुई है, उस पर विराम कैसे लगाया जाये? लगभग दो दशक पहले सेना ने जम्मू क्षेत्र में आतंकियों के अड्डों को तहस-नहस कर दिया था और इस एरिया में लम्बे समय तक शांति हो गई थी। क्या अब वक्त नहीं आ गया है कि आतंकियों पर पीर पंजाल जैसी कार्रवाई फिर की जाये ताकि जम्मू-कश्मीर की शांति को फिर से पटरी से उतरने से बचाया जा सके? हाल के घटनाक्रम से एक बात तो एकदम स्पष्ट है कि पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता चाहे कितनी ही हो जाये, उसकी अर्थव्यवस्था कितनी ही डूब जाये, लेकिन जब आतंकी नेटवर्क्स पर उत्तर कश्मीर में दबाव पड़ता है, तो वह निरन्तर पीर पंजाल के दक्षिण में ‘सॉफ्ट टारगेट्स’ की तलाश करते हैं। पीर पंजाल की दक्षिण व दक्षिण-पूर्व ढलानों पर विशाल घने जंगल हैं। इसके पश्चिम में रंजाती रिजलाइन (पर्वतों की लम्बी श्रृंखला) है और दक्षिण में सुरण नदी है। इस इलाके में बेशुमार चोटियां, उभार व नाले हैं। यह घुमंतू बकरवाल व गुर्जर जातियों के लिए गर्मियों की पनाहगाह है, जिसमें वह अपने मवेशियों को चराते हैं। 
ये जातियां यहां अस्थाई शेल्टर्स बनाती हैं जिन्हें ढोक व बाहिक कहते हैं। जाड़ों में इस इलाके में कोई स्थानीय व्यक्ति नहीं जाता है। नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पूर्व में दो दिन के पैदल सफल के बाद व्यक्ति उस दो राहे पर पहुंच जाता है, जहां से उत्तर में कश्मीर घाटी के पुलवामा-अनंतनाग पहुंचा जा सकता है और दक्षिण में डोडा-किश्तवार पहुंचा जा सकता है। इसलिए आतंकियों ने इस इलाके को एक तरह से अपना गढ़ बना लिया था। लश्कर, जैश व अल-बद्र के आतंकी अपने को इतने सुरक्षित महसूस करते थे कि सुरणकोट में स्थानीय लोगों के साथ क्रिकेट तक खेल लेते थे। पीर पंजाल के दक्षिण में सुरणकोट क्षेत्र तीन साल तक आतंकियों का ‘सुरक्षित अड्डा’ बना रहा। वह हिंसक वारदातें अंजाम देकर वहां छुप जाते थे। पुंछ में सुरणकोट के उत्तर में हिलकाका का पहाड़ी क्षेत्र विशेषरूप से आतंकियों का ‘गढ़’ था। इस क्षेत्र को न केवल आतंकियों से मुक्त कराना था बल्कि उस पर नियंत्रण हासिल करके सुरक्षित भी बनाना था। इसके लिए ऑपरेशन सर्प विनाश लांच किया गया और इसकी ज़िम्मेदारी राष्ट्रीय राइफल्स की रोमियो फोर्स को दी गई। यह 2003 की बात है। उस समय जनरल एन.सी. विज सेना प्रमुख थे और लेफ्टिनेंट जनरल रुस्तम नानावटी के अंडर में उत्तरी कमांड थी और उन्हें ही इस ऑपरेशन के नेतृत्व की ज़िम्मेदारी दी गई थी। 
हिलकाका में ऑपरेशन सर्प विनाश 21 अप्रैल, 2003 को लांच हुआ और 1 मई, 2003 को सफलतापूर्वक समाप्त हुआ। इस ऑपरेशन में 65 आतंकियों को ठिकाने लगाया गया और तीन को गिरफ्तार किया गया। आतंकियों के छुपने के 119 ठिकानों को नष्ट किया गया और उनसे 79 प्रमुख हथियार व बड़ी मात्रा में गोली-बारूद बरामद किये गये। ऑपरेशन के दौरान पांच सेनाकर्मी शहीद हुए और पांच अन्य घायल हुए। इस ऑपरेशन के बाद कम से कम जम्मू क्षेत्र में, छुट-पुट घटनाओं को छोड़कर, लम्बे समय तक शांति रही। अब जम्मू में आतंक की फिर से वापसी हो गई है। इसलिए ज़रूरत इस बात की है कि आतंकियों के मुंह पर पीर पंजाल जैसा करारा थप्पड़ एक बार फिर जड़ा जाये। यहां गौर करने की बात यह है कि ऑपरेशन सर्प विनाश जम्मू-कश्मीर की राज्य सरकार के सहयोग व अनुमति से लांच किया गया था और उसकी सफलता का यह प्रमुख कारण था। लेकिन इस समय जम्मू-कश्मीर के पास न राज्य का दर्जा है और न ही चुनी हुई राज्य सरकार। सुप्रीम कोर्ट ने सितम्बर 2024 तक जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने और विधानसभा चुनाव कराने के आदेश दिए हैं।  लेकिन इस बीच केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर के लेफ्टिनेंट गवर्नर (एलजी) की शक्तियों में विस्तार किया है। नियमों में संशोधन करके आल इंडिया सर्विस कैडर, पुलिस व पोस्टिंग्स और मुकद्दमा चलाने की अनुमति आदि में एलजी को अंतिम अथॉरिटी बना दिया गया है। इस साल यह दूसरा अवसर है जब केंद्र सरकार ने केंद्र शासित प्रदेश में शासन कैसे चलाया जाये, के संदर्भ में विस्तार किया है। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर