लड़कियों की शिक्षा पर तालिबानी नज़र
पूरी दुनिया में अब लड़कियां स्वतंत्रता को महसूस करना चाहती हैं। उमंग और आशा से भरी हैं। नया क्षितिज छूना चाहती हैं। समाज में भी इक्का-दुक्का घटनाओं को छोड़ कर उन्हें भरपूर सहयोग मिला है। पहले की सशंकित निगाहें बदलने लगी हैं। जिस सम्मान और शौहरत की दरकार थी, वह मिलने लगा है, लेकिन तालिबान की सत्ता में वापिसी के जब तीन साल पूरे हो चुके हैं, इस समय में वहां की लड़कियां सैकेंडरी स्कूल तक भी नहीं जा पाईं।
उन्हें आधारभूत शिक्षा मिलनी ही चाहिए, वह तो हो नहीं सका अलबता तालिबानी राज में स्त्री-पुरुष अधिकारों में जबरदस्त भेदभाव करने वाली अ़फगानी सरकार उनके बुनियादी हकों को भी कुचलने का कार्य कर रही है। कुछ ही समय पूर्व कतर में संयुक्त राष्ट्र की हुई बैठक में तालिबान बातचीत के लिए आ तो गये लेकिन वहां भी लड़कियों के अधिकार पर चुप ही रहे। जैसे उनके एजेंडे में ही लड़कियों के अधिकार की बात नहीं हो। वे अतिरिक्त ज़ोर से कह रहे हैं कि वे इस मुद्दे पर अन्तर्राष्ट्रीय परामर्श को स्वीकार करने को तैयार नहीं। अन्तर्राष्ट्रीय कानून की अवहेलना करना उनके लिए जैसे कोई खेल हो। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र चार्टर, मानवाधिकारों की खुलेआम घोषणा और बच्चों के अधिकार पर कन्वेशन को भी दर-किनार किया। अब अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय को चाहिए कि मानवाधिकार से भरी इन चिंताओं पर ध्यान देने की मांग फिर दोहराई जाये, ताकि कहीं कुछ तो हो। वे बेशक यू.एन. की बात को अनसुना कर निकल जाएं लेकिन मुसलमानों के इसरार पर बात उन्हें करनी ही पड़ेगी और करनी भी चाहिए, जिनमें से कुछ ने चेतावनी के साथ कहना शुरू कर दिया है कि आधी आबादी की कार्य क्षमताओं को सही न झांकना पूरे देश के आने वाले दिनों को नहीं समझने जैसा है।
जब लड़कियां शिक्षा से वंचित रखी जाती हैं, उनका मानसिक विकास अवरुद्ध हो जाता है। क्या वहां की लड़कियों को शिक्षक, नर्स, डाक्टर, इंजीनियर, बिजनेस वुमेन, लघु उद्योग सम्भालने का ख्वाब देखने की मनाही है? अगर लड़की स्वाभिमान के साथ खड़ी होती है तो घर-परिवार ही नहीं, देश-समाज का सहारा बनती है। वहां उन्हें इस सपने से वंचित रखा जा रहा है। मानवाधिकार परखने वालों के मुताबिक अ़फगानिस्तान के 34 प्रांतों में से आठ में लड़कों की शिक्षा गुणवत्ता में भी कमी देखी गई है। कुछ ही समय पहले यू.एन. वुमन की एक रिपोर्ट दिखाती है कि वहां पर बाल-विवाह की दर में 25 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। लड़कियों में मानसिक तनाव, निराशा ही नहीं, आत्महत्या की कोशिशों में भी इज़ाफा हुआ है। प्रसव के दौरान यानी मातृ मृत्यु दर युवा लड़कियों में लगभग पचास प्रतिशत बढ़ रही है। ये आंकड़े एक पिछड़े समाज की घटनाओं के सूचक नहीं तो और क्या है? लड़कियों पर अत्याचार की बात ही नहीं, वहां की महिला शिक्षकों, सिविल सेवा में काम करने वाली महिलाओं, विद्यालयों में सेवाएं दे रही शिक्षित महिलाओं को भी अनेक प्रकार के प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा है। क्यों इन महिलाओं की चीखों को तालिबानी सरकार सुनने में असमर्थ है? उनकी चीख राज्य चलाने वाली कुर्सियों तक पहुंच नहीं रही क्या? महिला शक्ति का सवाल समाज व्यवस्था के सवाल से जोड़ कर देखना चाहिए। एंगेलन ने अगर महिलाओं की गुलामी के ऐतिहासिक कारणों को खोजते हुए परिवार और विवाह की संस्था को राज्य की उत्पत्ति और विकास से जोड़ा तो बहुत बड़ा काम किया।