भारत के लिए संकट पैदा कर रहे पड़ोसी देश

अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि हम अपने पड़ोसी नहीं बदल सकते, इसलिए उनके साथ अच्छे संबंध रखने चाहिए। यही कारण है कि भारत पड़ोसी प्रथम की नीति पर चलता है। पड़ोसी देश पर कोई भी मुसीबत आये, भारत सबसे पहले मदद करने पहुंच जाता है। भारत समय-समय पर अपने पड़ोसी देशों की मुसीबत के समय में मदद करता रहा है।  पड़ोसी देशों के आंतरिक हालात अब ऐसे हो गये हैं कि भारत चाहकर भी उनसे रिश्ते अच्छे स्थापित नहीं कर पा रहा है। बांग्लादेश के साथ भारत के बहुत अच्छे संबंध थे लेकिन शेख हसीना सरकार के तख्ता पलट के बाद भारत के बांग्लादेश से भी रिश्ते खराब होने की आशंका पैदा हो गई है। वास्तव में कोई भी रिश्ता एकतरफा नहीं निभाया जा सकता। जब पड़ोसी देशों में ऐसी सरकारें सत्ता संभाल रही हैं जिनकी विचारधारा और सोच ही भारत विरोधी है तो भारत के लिए रिश्ते सुधारना मुश्किल है।
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना अपने पद से इस्तीफा देकर भारत में शरण ले चुकी हैं। वह किसी तीसरे देश में शरण मिलने तक भारत में रहेंगी लेकिन अभी तक किसी भी देश ने उन्हें शरण देने की मंजूरी नहीं दी है। बांग्लादेश के हालात भारत के लिए बड़ी मुसीबत बन गये हैं। वहां हिन्दुओं का उत्पीड़न हो रहा है। हिन्दुओं के घरों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों को आग लगाई गई है। कुछ हिन्दुओं की हत्याओं की खबरें भी आई हैं। हिन्दू मंदिरों को निशाना बनाया गाय है। देखा जाये तो 1971 जैसी परिस्थितियां पैदा होने का डर सता रहा है हालांकि वहां अंतरिम सरकार ने शपथ ग्रहण कर ली है। उम्मीद है कि वह हालात को जल्दी संभाल लेगी। अगर ऐसा नहीं होता है तो बंगलादेशी हिन्दू भारत में शरण लेने की गुहार लगा सकते हैं। अगर ये शरणार्थी बांग्लादेश से सटे हुए भारतीय राज्यों में प्रवेश कर लेते हैं तो इन राज्यों के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी हो सकती है ।  दूसरी मुसीबत यह है कि जो अंतरिम सरकार बन रही है, उसमें कट्टरपंथी तत्वों का बोलबाला है। इसकी पूरी आशंका है कि ऐसी सरकार के आने से भारत के सामने बड़ी चुनौतियां खड़ी होने वाली हैं। अगर यह सरकार चुनाव करवाती है तो पूरी सम्भावना है कि अवामी लीग की अनुपस्थिति में जमात-ए-इस्लामी और बीएनपी जैसी कट्टरवादी पार्टियां ही सत्ता में आएंगी और भारत के साथ रिश्ते खराब करेंगी। देखा जाये तो भारत के पड़ोस में एक और विरोधी देश तैयार हो रहा है॒ जो पाकिस्तान की तरह ही भारत में आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ाने का काम कर सकता है। परमाणु शक्ति सम्पन्न पाकिस्तान आज भी भारत का सबसे बड़ा विरोधी है। हालांकि ताकत के हिसाब से चीन भारत का सबसे बड़ा दुश्मन है। अफगानिस्तान में तालिबान का शासन भारत के लिए मुसीबत है और वह ऐतिहासिक रूप से भारत विरोधी शक्तियों की मदद करता रहा है। हालांकि अभी तक उसका रवैया सकारात्मक दिखाई दे रहा है। तालिबान ने कहा है कि वह भारत विरोधी शक्तियों को अपने देश में पनपने नहीं देगा, लेकिन उसकी कट्टरवादी मानसिकता कभी भी भारत के लिए मुसीबत खड़ी कर सकती है।
नेपाल में फिर भारत विरोधी सरकार सत्ता में आ गई है और भारत विरोधी मानसिकता वाले के.पी. ओली उसके प्रधानमंत्री बन चुके हैं। उन्होंने सत्ता में आते ही अपने भारत विरोधी इरादे दिखा दिए हैं। उसने सीमा विवाद का मुद्दा छेड़ दिया है। नेपाल के साथ भारत की सीमा खुली हुई है। ऐसी सरकार भारत के लिए मुसीबत ही खड़ी कर सकती है। नेपाल में पिछले 16 वर्षों में 14 सरकारें बदल चुकी हैं और यह सरकार कब चली जाएगी, इसका भी पता नहीं है। अस्थिर सरकारों के कारण नेपाल की जनता भी परेशान हो चुकी है और राजशाही की वापसी की मांग कर रही है । भारत के लिए भूटान अभी तक एक बेहतर देश रहा है लेकिन यहां भी चीन दखल देने की कोशिश कर रहा है। भूटान भी स्थायी शांति के लिए चीन के साथ सीमा विवाद पर बातचीत करने की कोशिश में है। हालांकि वह भारत की सुरक्षा चिंताओं को समझता है। चीन की लाख कोशिशों के बावजूद अभी तक भूटान भारत के लिए किसी किस्म की मुसीबत खड़ी करता दिखाई नहीं दे रहा है, लेकिन यही बात कल तक बांग्लादेश में बारे में भी कही जा रही थी। भूटान के हालात कब बदल जायें, यह भी चिन्ता की बात है। अलोकतांत्रिक और विस्तारवादी रवैये वाला चीन अपने पड़ोसी देशों को धमकाता रहता है। चीन हमारे देश के कई इलाकों पर दावा कर रहा है, जिसके कारण हमारा सीमा विवाद उसके साथ चल रहा है। इस विवाद के चलते ही भारत और चीन की सेनाएं सीमा पर आमने-सामने खड़ी हुई हैं। 
म्यांमार पूरी तरह से अराजकता और राजनीतिक अस्थिरता का शिकार बन चुका है। यहां पर विद्रोही संगठन सैन्य सरकार को कमज़ोर कर चुके हैं और म्यांमार के बड़े हिस्से पर इनका कब्ज़ा हो चुका है। भारत में म्यांमार के रास्ते घुसपैठ हो रही है जिसके कारण भारत को म्यांमार सीमा पर बहुत ज्यादा चौकसी करनी पड़ी रही है। म्यांमार के बिगड़ते हालात भारत के लिए बड़ी मुसीबत बन सकते हैं। विद्रोही गुटों पर चीन का काफी प्रभाव है और चीन उन्हें भारत के खिलाफ इस्तेमाल कर सकता है। इस मामले में श्रीलंका से सुखद खबर है कि वहां हालात धीरे-धीरे सामान्य हो रहे हैं और श्रीलंका चीन की कारस्तानियों को समझ चुका है। मालदीव में भी भारत विरोधी सरकार चल रही है और वह भी चीन के समर्थन से भारत के खिलाफ  बयानबाजी करती रहती है। चीन वहां अपना अड्डा बनाने की कोशिश में है। अगर पड़ोसी देशों के हालात का गम्भीरता से विश्लेषण किया जाए तो पता चलता है कि भारत बेहद अशांत देशों से घिर चुका है। वहां अस्थिर सरकारें चल रही हैं और कट्टरपंथी सैन्य शासक हावी हो रहे हैं। इन देशों को यह बात समझनी होगी कि अगर वे चीन के इशारे पर चलते रहे तो बेशक भारत के लिए परेशानी तो खड़ी करेंगे ही, लेकिन खुद भी बर्बाद हो जाएंगे। (युवराज)

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