आखिर जगदीप धनखड़ से इतना ़खफा क्यों है विपक्ष ?

राज्यसभा के लिए संसद का मानसून सत्र उथल-पुथल के मामले में ऐतिहासिक रहा। शायद ही अब के पहले कभी किसी राज्यसभा ने अपने सभापति को सदस्यों के व्यवहार पर वाकआउट करते देखा होगा, लेकिन गत 9 अगस्त को यह देखने को मिला। शायद इसी वजह से राज्यसभा का 265वां सत्र समय से पहले अनिश्चित काल के लिए स्थगित हो गया। अंतिम दिन सदन तीन बार स्थगित करना पड़ा, क्योंकि बार बार हंगामी स्थितियां बन रही थीं। इसलिए अंत में कुछ आवश्यक कामकाज निपटने के बाद सदन को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया।
लेकिन अब लगता है कि यह स्थगन किसी तात्कालिक स्थितियों का नतीजा नहीं बल्कि बहुत सोची समझी रणनीति थी, क्योंकि अब जो चीजें बाहर आ रही हैं, उनके मुताबिक विपक्षी ‘इंडिया’ ब्लॉक सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ जल्द से जल्द उन्हें हटाने के अविश्वास प्रस्ताव की तैयारी कर रहा है। अगर इस मानसून सत्र में आनन-फानन में राज्यसभा स्थगित नहीं की जाती, तो शायद 10 अगस्त को ही सभापति के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव सदन में आ जाता, क्योंकि संसद में पिछले दो हफ्तों के दौरान जो तीन बार जया बच्चन और जगदीप धनखड़ के बीच गर्मागर्मी देखी गई है, वह गर्मागर्मी तो शायद पूरे माहौल को एक पृष्ठभूमि देने तक सीमित थी। हकीकत यह है कि विपक्षी नेता सभापति महोदय से पहले से ही जले भुने बैठे हैं। 
गौरतलब है कि संसद के पिछले शीत सत्र में थोक के भाव (141) विपक्षी सांसदों को संसद निलम्बित किया गया था और तब से विपक्षी राजनेताओं की नज़रों में जगदीप धनखड़ चढ़े हुए हैं, क्योंकि जिस तरह से दो चार नहीं बल्कि राज्यसभा के 87 विपक्षी सांसदों ने सभापति के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए हस्ताक्षर किए हैं, वह अभूतपूर्व है। अब के पहले कभी भी सभापति को हटाने के लिए विपक्ष इस तरह से एकजुट नहीं हुआ। दरअसल विपक्ष का आरोप है कि सभापति जगदीप धनखड़ उन्हें सम्मान नहीं देते। बात-बात पर उनका निरादर करते हैं। विपक्ष जिस तरह से सभापति के विरुद्ध एकजुट हुआ है, उसके कारण 9 अगस्त को न सिर्फ तीन बार तनातनी का माहौल बना, बल्कि संसद के इतिहास में पहली बार राज्यसभा के सभापति ने  सदन से वाकआउट किया। हालांकि सूत्रों की मानें तो सत्तापक्ष को यह अंदेशा था कि कहीं आनन-फानन में अविश्वास प्रस्ताव के लिए नोटिस न आ जाये, इसलिए माना जा रहा है कि राज्यसभा को स्थगित किया गया। 
दरअसल राज्यसभा में अगर 3 सितम्बर के पहले ऐसी कोई स्थिति आ जाती है, तब सभापति जगदीप धनखड़ के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित हो सकने की भी स्थितियां बन सकती हैं, क्योंकि राज्यसभा में वर्तमान में 225 सदस्य हैं जिसमें भाजपा के 86 और राजग के सदस्यों को मिलाकर कुल 101 सदस्य बनते हैं, जबकि राज्यसभा में बहुमत के लिए वर्तमान में 113 सदस्य ज़रूरी हैं। हालांकि ‘इंडिया’ ब्लॉक का भी भाजपा से सिर्फ एक सदस्य ज्यादा है। ‘इंडिया’ ब्लॉक के राज्यसभा में 87 सदस्य हैं, लेकिन वाईएसआरसीपी के 11, बीजू जनता दल के 8 और अन्नाद्रमुक के 4 सदस्य इस पूरे मामले में गेमचेंजर बन सकते हैं, क्योंकि ये 23 सदस्य अगर ‘इंडिया’ ब्लॉक के साथ मिल जाते हैं तो उनकी संख्या 110 पहुंच जाती है, जो कि राजग से ज्यादा हैं, लेकिन 3 सितम्बर को राज्यसभा की 12 सीटों में चुनाव हैं और इन 12 सीटों में से 10 सीटे भाजपा को मिलने वाली हैं, तब राजग की कुल सीटें 111 हो जाएंगी। मगर दूसरी तरफ राज्यसभा के सदस्यों की संख्या भी 237 हो जायेगी, तब बहुमत के लिए 119 सदस्यों की ज़रूरत होगी। ऐसे बीआरएस के 4, बीएसपी के 1, एमडीएमके के 1 और अन्य स्वतंत्र सदस्यों की उपस्थिति या अनुपस्थिति बहुत महत्वपूर्ण हो जायेगी। 
हालांकि इसके बाद भी ज़रूरी नहीं है कि राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के विरुद्ध प्रस्ताव पारित ही हो जाए, क्योंकि लोकसभा में राजग के सदस्यों की संख्या 293 है और ‘इंडिया’ ब्लॉक के सदस्यों की संख्या 236 ही है। बहुमत 272 पर है, इसलिए जगदीप धनखड़ तो शायद न हटें, लेकिन जिस तरह से यह पूरी प्रक्रिया होगी, उनके राजनीतिक कद का ज़बरदस्त अवमूल्यन सामने आयेगा। मगर सवाल है कि आखिर ये स्थितियां आयी ही क्यों? इसमें कोई दो राय नहीं है कि जगदीप धनखड़ बहुत तेजतर्रार कानूनी मामलों के जानकार और वाकपटु हैं। लेकिन जिस तरह से पिछले कुछ सालों से अपनी अलग-अलग भूमिकाओं में उन्होंने सारे राजनीतिक आदर्शों और लोकलाज को ताख पर रखकर पहले दो सालों से ज्यादा समय तक पश्चिम बंगाल के उप-राज्यपाल रहते हुए ममता बनर्जी की सरकार को नाकों चने चबवाये और उसके बाद उप-राष्ट्रपति बनने के बाद विपक्षी नेताओं को मनमनी तरीके से सदन से निलम्बित किया, उन्हें बोलने से रोका, उन्हें किसी भी हद तक झिड़की देकर बैठाने की कोशिश की और उनके किसी भी आरोप पर उसे साबित करने की जिस तरह से तलवार लटकायी, उस सबके कारण विपक्षी उनसे भरे बैठे हैं। 
क्योंकि अगर जया बच्चन और सभापति जगदीप धनखड़ के बीच गर्मागर्मी को देखें तो जया बच्चन की भूमिका भी उसमें किसी से कम नहीं है। सीधी सी बात है जब संसद में आपका नाम जया अमिताभ बच्चन दर्ज है तो इस नाम से बुलाने पर आपको आपत्ति क्यों हैं? और अगर आपत्ति है तो जैसा कि सभापति ने सुझाव दिया कि आप अपने नाम को ससद में सिर्फ जया बच्चन करवा सकती हैं, लेकिन उसके लिए भी जया बच्चन राज़ी नहीं हैं और फिर ऐसी अमूर्त बातों से आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला शुरु होता है, जिसमें अंतिम रूप से कोई पक्ष साबित होना निश्चित नहीं है। जया बच्चन कहती हैं, ‘मैं आपकी टोन समझती हूं क्याेंकि मैं अभिनेत्री हूं। आप किस मन:स्थिति में और किस अंदाज़ में बात कर रहे हैं, मुझे खूब पता है।’ इस पर सभापति भी कहते हैं कि अभिनेताओं को हमेशा डायरेक्टर नियंत्रित करता है। लेकिन मैं रोज़-रोज़ आपको स्कूलिंग नहीं सिखाऊंगा। इस पर जया बच्चन भड़क जाती हैं कि उन्हें स्कूल का बच्चा समझा जा रहा है। दरअसल ये सारी बातें ऐसी हैं जो साफ बताती हैं कि असली आक्रोश या गुस्सा कहीं और तथा किसी और वजह से है, ये तो बस बहाना है। 
इसलिए ज़रा ज़रा-सी बात पर पूरा विपक्ष उठा खड़ा होता है और सभापति महोदय को लगता है कि उनके साथ ये ज़्यादती हो रही है लेकिन उन्हें याद नहीं आता कि किस तरह से अपनी ताकत का इस्तेमाल करते हुए कई बार राज्यसभा को पूरी तरह से विपक्षविहीन करते रहे हैं। यह सब उन्हीं बातों को लेकर विपक्ष का संचित गुस्सा है। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर