किसानों की खुशियों का बटुआ है किन्नू का पेड़
चार साल पहले एक राष्ट्रीय हिंदी दैनिक में खबर छपी कि राजस्थान के झुंझुनूं ज़िले के कस्बा सिंघाना से कुछ किलोमीटर दूर स्थित घरड़ाना कला गांव के चौधरी सुमेर राव किन्नू की बागवानी करके हर साल 10 लाख रुपये से ज्यादा की कमाई कर रहे हैं। उनके किन्नू अमरीका तक में जा रहे हैं। अब यह कहानी एक अकेले चौधरी सुमेर राव की नहीं बल्कि पंजाब और हरियाणा के सैकड़ों किसानों की भी कहानी है। हिमाचल और राजस्थान में भी हर साल कई नए चौधरी सुमेर राव पैदा हो रहे हैं। किन्नू का पेड़ हजारों किसानों की खुशियों का बटुआ बनकर उभरा है।
दरअसल किन्नू एक ऐसा फलदार वृक्ष है, जिसने हाल के दशकों में उत्तर भारत के सैकड़ों नहीं हजारों किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारी है। गर्म जलवायु में करीब 35 फीट या 11 मीटर तक ऊंचा उठने वाला किन्नू का पेड़ एक खास किस्म का ‘साइट्रस’ यानी खट्टा फल है, जिसे दो किस्मों की संकर ब्रीड के जरिये हासिल किया गया है ये संकर ब्रीड हैं ‘किंग’ यानी साइट्रस नोबिलिस और विलो लीफ यानी साइट्रस डेलिसियोसा। वास्तव में जिस किन्नू ने हाल के दशकों में भारत और भारत की तरह पाकिस्तान के पंजाब में विशेष तौर पर किसानों की आर्थिक स्थिति बदली है, वह पारंपरिक किन्नू नहीं है बल्कि एक उच्च उपज वाली मंडारिन संकर किस्म है। जिसे उन्हीं दो किस्मों से विकसित किया है, जिसका ऊपर हमने जिक्र किया है। ये किस्में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के सिट्रस एक्सपेरिमेंट सेंटर में 1935 में विकसित की गई थीं। लेकिन इसका फायदा भारत के किसानों तक पिछली शताब्दी के अंतिम दशक में ही पहुंचा है।
बहरहाल 10 से 11 मीटर तक ऊंचा उठने वाला किन्नू का पेड़ फसल के मौसम में फलों से लद जाता है। एक सामान्य पेड़ में औसतन 1000 फल लगते हैं। इस तरह किन्नू का एक पेड़ किसान को एक फसल में कम से कम 20,000 का मुनाफा दे देता है। लेकिन अगर इतनी आदर्श स्थिति की बात न भी करें तो भी किसान को एक पेड़ से कम से कम 10,000 रुपये तो मिल ही जाते हैं। इसलिए अगर किसी किसान ने 20 किन्नू के पेड़ अच्छी तरह से तैयार कर लिए तो 2 लाख रुपये की कमाई कहीं नहीं जाती। किन्नू का फल जनवरी या फरवरी में पकता है और इसका छिलका बहुत आसानी से उतर जाता है। चूंकि इसमें अच्छा खासा रस होता है और यह पारंपरिक किन्नू के मुकाबले काफी मीठा होता है। इसलिए लोग इसे खाना खूब पसंद करते हैं। किन्नू की देश विदेश में मांग इसलिए भी हाल के सालों में काफी बढ़ी है, क्योंकि आधुनिक मैडीकल साइंस ने बार-बार इस तथ्य को उजागर किया है कि स्वस्थ रहने और देर तक जीने में खट्टे फलों का जबरदस्त योगदान है और किन्नू ऐसे खट्टे फल के रूप में सामने आया है, जो नींबू की तरह बहुत खट्टा नहीं है और संतरे की तरह बिल्कुल मीठा नहीं है बल्कि इसका स्वाद खटमिट्ठा होता है, इसलिए यह लोगों को संतरे से भी ज्यादा पसंद आता है। यही कारण है कि भारत के फल बाजार में हाल के सालों में किन्नू की खपत काफी ज्यादा बढ़ी है और विदेशों में भी इसकी बहुत मांग है।
किन्नू की मांग न सिर्फ बढ़ी है बल्कि खानपान के जानकारों का मानना है कि आने वाले सालों में यह मांग और ज्यादा बढ़ेगी। क्योंकि किन्नू विटामिन सी, शर्करा, कैल्शियम, आयरन, बीटा कैरोटीन और फोलेट जैसे पोषक तत्वों से भरपूर है। किन्नू के खाने के बहुत सारे फायदे हैं। पेट के लिए तो यह पुदीने और छाछ की तरह ही हर समस्या में फायदेमंद है। किन्नू को छीलकर संतरे की तरह खाया जा सकता है और मौसमी की तरह इसका जूस बनाकर पीया जा सकता है। यही वजह है कि हाल के दशकों में किन्नू का जूस भारत से लेकर अमरीका तक, नाश्ते की टेबल का पसंदीदा जूस बन गया है। डॉक्टर कहते हैं अगर सुबह नाश्ते में एक गिलास किन्नू का जूस ले लिया जाए तो पूरे दिन शरीर में एनर्जी बनी रहती है। लब्बोलुआब यह है कि किसानों के लिए किन्नू का पेड़ लगाना न सिर्फ आज की तारीख में बल्कि आने वाले वक्त में भी बहुत फायदेमंद होगा।
किन्नू के साथ एक और अच्छी बात ये है कि इसे कम से कम देखभाल की ज़रूरत पड़ती है। यह इतना मज़बूत और हर तरह की जलवायु से खुद ही निपट लेने वाला पेड़ है कि यह कम से कम खाद पानी में भी अधिक से अधिक फसल देता है। किन्नू का पौधा लगाना हो तो बसंत ऋतु में फरवरी से मार्च तक और जुलाई से अक्तूबर तक कभी भी लगाया जा सकता है। किन्नू के बीज को प्रजनन टी और बडिंग विधि से तैयार किया जाता है। नर्सरी में बीज को 2/1 मीटर आकार वाली बैंडों पर 15 सेंटीमीटर की दूरी पर कतार में लगाया जा सकता है। जब यह 10 से 12 सेंटीमीटर लंबा हो जाए तो उसे निकालकर खेत में रोंप देना चाहिए। भारत में यूं तो अब किन्नू कई जगहों पर उगाया जाने लगा है, लेकिन सबसे ज्यादा यह राजस्थान के श्रीगंगानगर ज़िले में उगाया जाता है। पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश के तराई वाले इलाके नेचुरल किन्नू लैंड हैं तो अब मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और यूपी में भी किसानों को किन्नू खूब आकर्षित कर रहा है क्योंकि यह उनकी खुशियों का बटुआ बनकर जो उभरा है। किन्नू का पेड़ दो से तीन साल की अवधि में फसल देने लगता है। हालांकि अच्छी और व्यावसायिक फसल पाने के लिए चार से पांच साल लग जाते हैं। किन्नू के पेड़ को ज्यादा फल देने के लिए अच्छी जलनिकासी वाली मिट्टी और पर्याप्त धूप चाहिए होती है। हालांकि अब ऐसी किस्में विकसित कर ली गई हैं कि इसे आराम से चिकनी और तेजाबी मिट्टी में भी लगाया जा सकता है। किन्नू की फसल के लिए मिट्टी का पीएचमान 5.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए।
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