खेतों के लिए कुदरती उर्वरक है - बबूल का पेड़
बबूल का पेड़ जिसे हिंदुस्तान के ज्यादातर हिस्सों में देसी कीकर कहा जाता है, किसानों के लिए बहुत फायदेमंद पेड़ है। क्योंकि बबूल का पेड़ न केवल खेती वाली जमीन की उत्पादकता बनाये रखता है बल्कि यह जमीन की उत्पादकता को बढ़ाता भी है। साथ ही यह बहुत तेज़ी से बढ़ने वाला पेड़ है, जिससे किसान इसे लगाकर तीसरे साल ही इसका इस्तेमाल पशुओं के चारे के लिए, ईंधन के लिए, गोंद आदि की प्राप्ति के लिए भी करने लगता है। इस लिहाज से बबूल का पेड़ खेती करने वाले किसानों के लिए बहुपयोगी है। बबूल की लकड़ी चूंकि बहुत से काम आती है, इसलिए बाज़ार में इसकी अच्छी खासी कीमत मिलती है। किसान इसे बेचकर अच्छी खासी कमाई कर लेते हैं। अगर धान की फसल के साथ बबूल की खेती की जाए, तो यह बहुत ही लाभ देती है। क्योंकि बबूल जहां एक बहुपयोगी वृक्ष है, वहीं इसकी जड़ें नाइट्रोजन के स्थरीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। अगर धान के खेतों में बबूल के पेड़ों का रोपन कर लिया जाए, तो ये पेड़ खेत में नाइट्रोजन को स्थिर करने में भूमिका निभाते हैं। धान के खेतों में बबूल के पेड़ लगाने के बाद घास एवं खरपतवार की मात्रा भी काफी कम हो जाती है।
लेकिन बबूल के पेड़ को जब धान की खेत में लगाएं तो सुनिश्चित करें कि उसके इर्द-गिर्द पानी का भराव न रहे। बबूल वास्तव में ऐसी जगहों पर ज्यादा सहजता से विकास नहीं करता, जहां पानी का भराव रहे। यही वजह है कि देश में बबूल सबसे ज्यादा राजस्थान में पाया जाता है। बबूल ऐसी जगहों में विशेष रूप से ज्यादा विकास करता है, जहां कम बारिश होती है। इसलिए यह राजस्थान का खास पेड़ है। बबूल के पेड़ से मिलने वाली गोंद औषधीय गुणों से भरपूर होती है और बाजार में ऊंची कीमत पर बिकती है। बबूल की पेड़ की टहनियों से दातून की जाती है, जो दांतों को मजबूत बनाने में बड़ी भूमिका निभाती है। बबूल की दातून, दांतों को साफ और स्वस्थ रखती है। इसका कोयला भी ऊंची क्वालिटी का माना जाता है। ‘फाबासेऐ’ कुल के इस पौधे का वैज्ञानिक नाम ‘आकास्या नीलोतीका’ है। बबूल भारत के हर हिस्से में पाया जाता है, लेकिन कम बारिश वाली पहाड़ी जमीन में यह काफी ज्यादा पाया जाता है। बबूल के औषधीय फायदे भी बहुत ज्यादा हैं। बबूल की छाल से त्वचा पर निकलने वाले दाने और मुंहासे खत्म हो जाते हैं। छाल को घिसकर या इसका बुरादा बनाकर लेप लगाना चाहिए। वैसे बबूल का काढ़ा पीने से जिन लोगों के बाल गिर रहे हैं, वो गिरना बंद हो जाते हैं। बबूल की छाल कसैली, रूखी और स्वभाव से ठंडी होती है। इसके फूल, पत्ते, फल और छाल का उपयोग कफ, सर्दी, जुकाम, घाव, मधुमेह, गले के रोग और त्वचा की बीमारियों में काम आते हैं।
बबूल के पेड़ की तासीर ठंडी होती है। ऐसे में नकसीर की समस्या से बचने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। बबूल के पेड़ का इस्तेमाल कई तरीके से किया जा सकता है। आप इसकी फलियों को पीसकर पाउडर बना सकते हैं और फिर हर दिन अलग-अलग किस्म की प्रॉब्लम के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। इसका इस्तेमाल हमेशा गर्म पानी के साथ करना चाहिए, गर्म न हो तो कमरे के तापमान का पानी होना चाहिए। ठंडे पानी से इसका सेवन सही नहीं होता।
लेकिन जहां बबूल के इतने सारे फायदे हैं, वहीं इसके कुछ औषधीय नुकसान भी हैं। इसलिए गर्भवती महिलाओं और दूध पिलाने वाली महिलाओं को भी बबूल के इस्तेमाल से बचना चाहिए। उच्च रक्तचाप से पीड़ित लोगाें को भी स्वत: इसके इस्तेमाल का निर्णय नहीं लेना चाहिए, अगर वह इसका इस्तेमाल करें तो हर्बल एक्सपर्ट या किसी वैद्य की सलाह पर करना चाहिए। दुनिया के कई हिस्सों में आदिवासी बबूल के बीज को खाते हैं, लेकिन भारत में आमतौर पर बबूल के बीजों को खाया नहीं जाता। लेकिन ऑस्ट्रेलिया में लोग इसके पौष्टिक बीजों को भूनकर और उसका कॉफी के विकल्प के रूप में भी इस्तेमाल करते हैं। बबूल का पेड़ जानवरों के फाइबर युक्त आहार के नजरिये से भी बहुत उपयोगी है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर