नियमों का उल्लंघन है सड़क हादसों का मुख्य कारण
दरअसल हम जब सड़क पर चलने के कायदे-कानून से ही अनजान है या आधी-अधूरी जानकारी है तो फिर सड़क हादसों में कमी लाने की बात अपने-आप में बेमानी हो जाती है। एक और तो सड़कों पर यातायात का दबाव बढ़ता जा रहा है तो दूसरी और नियमों की धज्जियां उड़ना आम बात है। यही कारण है कि साल दर साल सड़क हादसों में ज़िंदगी गंवाने वालों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। एक सर्वे के अनुसार दिल्ली के ही अधिकांश लोगों को सड़क सुरक्षा मानकों की जानकारी नहीं होती। यहां तक कि सड़क क्रॉस करने वाले अधिकांष लोग जहां ओवरब्रिज या अन्डरपास बना हुआ है, उसका इस्तेमाल नहीं करते। जेब्रा क्रॉस के उपयोग की बात तो इसलिए कोई मतलब नहीं रखती क्योंकि उस पर तो दो-पहिया, चौ-पहिया वाहन रैड लाइट पर अपने वाहन को रोकने में कोई परहेज़ ही नहीं बरतते। यही कारण है कि क्या पैदल चलने वाले और क्या वाहन चालक सड़क हादसों का आसानी से शिकर हो रहे हैं।
बात थोड़ी समझ में कम आने वाली है परन्तु इसे सिरे से खारिज भी नहीं किया जा सकता कि देश की राजधानी दिल्ली में निवास करने वाले 90 प्रतिशत लोगों को सड़क सुरक्षा मानकों की पूरी तरह से जानकारी नहीं है। कम्युनिटी अगेंस्ट ड्रंकन ड्राइविंग (कैड) द्वारा अगस्त, 2023 से 31 दिसम्बर 2023 तक दिल्ली में कराये गये सर्वे की रिपोर्ट तो यही कहती है। थोड़ी देर के लिए सर्वे रिपोर्ट को भी अत्यधिक बढ़ा-चढ़ा कर बताई हुई मान लें, तब भी सड़क दुर्घटना के आंकड़ों से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता। एक बात और साफ हो जाती है कि जब देश की राजधानी दिल्ली का यह हाल है तो फिर गांव कस्बावासियों में सड़क सुरक्षा कायदों का पूरा ज्ञान होने की अपेक्षा करना पूरी तरह से बेमानी होगा। कैड के संस्थापक प्रिस सिंघल की माने तो सड़क हादसों का सबसे बड़ा कारण लोगों को सड़क सुरक्षा मानकों की जानकारी नहीं होना है।
सरकार द्वारा भले ही लाख दावे किये जाते हों कि वाहनों के चलाने के लिए ड्राइंविंग लाइसेंस जारी करने से पहले परीक्षा लेकर जांच-परख करके ही लाइसेंस जारी होते हैं, परन्तु हकीकत कुछ और ही सामने आती है। नियमों के पालन के प्रति जो गंभीरता होनी चाहिए, वह दिखाई ही नहीं देती। दिल्ली में ही 93 फीसदी लोगों को पता ही नहीं है कि ब्लैक स्पॉट कहां-कहां है? सड़क पर चलने वाले 67 फीसदी लोग अपने आपको असुरक्षित महसूस करते हैं। कहा तो यहां तक जाता है कि अधिकांश लोगों को मध्यस्तों के माध्यम से घर बैठे ड्राइविंग लाइसेंस मिल जाते हैं। ऐसे में सड़क हादसों में कमी की बात करना दिन में सपने देखने की तरह ही है।
वर्तमान में घर से निकलने के बाद सकुषल वापिस पहुंचना किसी उपलब्धि से कम नहीं माना जाता। एक और सड़कों की हालत, दूसरी और यातायात का बढ़ता दबाव, तीसरा युवाओं में अत्यधिक आक्रामकता के कारण भी रोड रेज की घटनाएं हो रही हैं। सड़क पार करते समय लोग ज़ेब्रा क्रॉस और फुट ओवर ब्रिज का उपयोग ही नहीं करते। यह अपने आप में बड़ी लापरवाही और हादसों को न्योता देने वाली बात है। पहले वाहनों की हैड लाइट को ऊपर से आधा काला करके रखने का सख्ती से पालन होता था। समय-समय पर अभियान चलाकर पुलिस वाले या एनजीओ के लोग चौराहों पर लाइट के ऊपरी आधे हिस्से को काले रंग से पोत देते थे ताकि सामने वाल की आंखों में सीधी रोशनी न पड़े और वह आसानी से आगे देख सके। वाहनों के इंडीकेटर के उपयोग में भी लापरवाही देखने को मिल जाती है।
सड़क हादसों यदि रोकना है तो लोगों को पूरी तरह जागरुक करना होगा। पहले सिनेमा हॉल में फिल्म के इंटरवल में यातायात नियमों के प्रति जागरूक करने वाली दस्तावेज़ी फिल्म चलाई जाती थी। इसी प्रकार अब चैनलों पर आने वाले कार्यक्रमों के बीच ऐसी दस्तावेज़ी फिल्म दिखाने के निर्देश दिए जा सकते हैं। इसके लिए सरकार द्वारा अवेयरनेस क्लिप्स तैयार कर उपलब्ध कराई जा सकती है। लोकप्रिय धारावाहिकों या न्यूज के दौरान कुछ सेकेण्ड्स की क्लिपिंग के माध्यम से लोगों को जागरुक किया जा सकता है। सड़क हादसों को रोकना है, कम करना है तो सुरक्षा मानकों की जानकारी और यातायात नियमों के पालन को सुनिश्चित करने के लिए सरकार और आम आदमी दोनों को गम्भीर होना होगा।
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