भारत को भूख और गरीबी पर नये सिरे से विचार करने की ज़रूरत

हाल ही में जारी वैश्विक भूख सूचकांक 2024 और संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक 2024 के मद्देनज़र, नरेंद्र मोदी सरकार को देश में भूख और गरीबी के गंभीर स्तर पर अपनी आंखें मूंद कर नहीं बैठना चाहिए और देश में विकास की प्रकृति के बारे में बात किये बिना इसके सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि का शोर मचाते हुए चेतावनियों को नहीं दबाना चाहिए, क्योंकि जिस तरह का विकास हो रहा है उससे असमानता तेज़ी से बढ़ रही है। वैश्विक भूख सूचकांक 2024 ने 100 के पैमाने पर केवल 27.3 के स्कोर के साथ भारत को गंभीर भूख स्तर की श्रेणी में रखा है, जबकि संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक 2024 ने कहा कि भारत में दुनिया के किसी भी देश के मुकाबले सबसे ज्यादा गरीब रहते हैं। संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक गरीबी सूचकांक 2024 के अनुसार भारत में 234 मिलियन लोग गरीबी में जी रहे हैं। ये सभी अनुमान भारत में 2011-12 में की गई गरीबी की गणना के अलावा कुछ अन्य आंकड़ों पर आधारित हैं। नवीनतम वास्तविक स्थिति जानने के लिएए भारत को भूख और गरीबी की गणना नये सिरे से करनी चाहिए।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विकास की कहानी मुख्य रूप से देश में जीडीपी वृद्धि पर निर्भर करती है और जमीनी स्तर की असमानता, भूख और गरीबी को पूरी तरह से नज़रअंदाज कर देती है। इसके अलावा बड़ी संख्या में अर्थशास्त्रियों ने लंबे समय से यह माना है कि भारत का आधिकारिक जीडीपी आंकड़ा विकास को बढ़ा-चढ़ाकर बताता है। हाल ही में 2023 में जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान, भारतीय राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने विकास के बारे में कुछ डेटा जारी किए, जिसकी कई अर्थशास्त्रियों ने बेशर्मी से बढ़ाचढ़ाकर अनुमान लगाने के रूप में आलोचना की। यह भी सर्वविदित है कि आंकड़ों को दबाने के दबाव के कारण 2019 में कुछ शीर्ष अधिकारियों के इस्तीफे सामने आये, जिन्होंने बेरोज़गारी के वास्तविक स्तर को लीक कर दिया, जो 45 साल का उच्चतम था।
2023 में भी कुपोषण और एनीमिया (रक्ताल्पता) से जुड़े एक सर्वेक्षण के निदेशक को देश में इनकी उच्च-स्तरीय घटनाओं को उजागर करने के लिए अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा। उल्लेखनीय है कि कुपोषण और एनीमिया के आंकड़ों का उपयोग देश में भूख और गरीबी का अनुमान लगाने के लिए कुछ आधारों के रूप में किया जाता है। यह भी याद रखना चाहिए कि कैसे मोदी सरकार ने 2018 के एक सर्वेक्षण को रद्द कर दिया था, जिसके लीक हुए आंकड़ों से गरीबी दर में वृद्धि का स्तर दिखा था। 2012 में अंतिम व्यापक उपभोग-व्यय सर्वेक्षण में 22 प्रतिशत लोगों को गरीबी में रहते हुए दिखाया गया था।
अन्य विवरणों में जाने से पहले कुछ और बातें ध्यान में रखनी चाहिए। भारत ने 1993-94 तक गरीबी के आकलन के लिए यूनिफॉर्म रिसोर्स पीरियड (यूआरपी) का इस्तेमाल किया। यूआरपी के तहत लोगों से 30 दिन की रिकॉल अवधि में उनके उपभोग व्यय के बारे में पूछा जाता था। फिर 1999-2000 के बाद से मिश्रित संदर्भ अवधि (एमआरपी) को अपनाया गया, जिसमें पिछले वर्ष में उपभोग की गई पांच कम आवृत्ति वाली वस्तुओं (कपड़े, जूते, टिकाऊ सामान, शिक्षा और संस्थागत स्वास्थ्य व्यय) के बारे में पूछा गया और 30 दिन की स्मरण अवधि में अन्य चीजों के उपभोग के बारे में भी पूछा गया। 2011-12 में गरीबी के आकलन में एमआरपी का इस्तेमाल किया गया। हालांकि अब हमारे पास संशोधित मिश्रित संदर्भ अवधि (एमएमआरपी) है जिसका उपयोग भविष्य के सर्वेक्षणों में किया जायेगा, जो अभी सरकार द्वारा किये जाने हैं।
वास्तविक समय के ताजा आंकड़ों के अभाव में, भारत में भूख और गरीबी से संबंधित सभी अनुमान क्रॉस सेक्टोरल डेटा पर आधारित अनुमान हैं। ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2024 ने भारत को दुनिया के 127 देशों में से 105वां स्थान दिया है। भारत का जीएचआई स्कोर 27.3 इन मूल्यों पर आधारित है। 13.7 प्रतिशत आबादी कुपोषित है, पांच वर्ष से कम आयु के 35.5 प्रतिशत बच्चे अविकसित (स्टन्टेड) हैं, पांच वर्ष से कम आयु के 18.7 प्रतिशत बच्चे कमज़ोर (वेस्टेड) हैं और 2.9 प्रतिशत बच्चे अपने पांचवें जन्मदिन से पहले ही मर जाते हैं। कुछ ही दिन पहले विश्व बैंक ने भी गरीबी का अनुमान जारी किया है। इसके अनुसार 2024 में भारत में अत्यंत गरीब लोगों की संख्या 129 मिलियन थी, जो प्रतिदिन 2.15 डॉलर (लगभग 181 रुपये) से कम पर जीवन यापन कर रहे थे।
यहां दो और बातों को ध्यान में रखना चाहिए- पूर्ण गरीबी और सापेक्ष गरीबी। पूर्ण गरीबी वह गरीबी है जब किसी व्यक्ति के पास जीवित रहने के लिए भोजन खरीदने के लिए भी कोई आय नहीं होती है। सापेक्ष गरीबी वह गरीबी है जब किसी व्यक्ति के पास किसी खास बाजार की स्थिति में जीवित रहने के लिए आवश्यक चीजें खरीदने के लिए पर्याप्त आय नहीं होती है। 
इसके विपरीत, विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय अनुमानों के अनुसार 2024 में भारत की विकास दर 7 से 7.2 प्रतिशत के बीच रहने की उम्मीद है। भारत इस दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ने वाला देश है और यह वर्तमान में दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जो अगले साल 2025 में चौथी बनने वाली है। लेकिन विकास की प्रकृति के बारे में क्या? सबसे बड़ी 20 कंपनियों के पास राष्ट्रीय संपत्ति का 60 प्रतिशत हिस्सा है और राष्ट्रीय आय का 70 प्रतिशत उनके पास ही जाता है। असमानता तेजी से बढ़ रही है। ऑक्सफैम का कहना है कि अब आबादी के शीर्ष 1 प्रतिशत लोगों के पास 73 प्रतिशत संपत्ति है, जबकि 670 मिलियन गरीब लोगों की संपत्ति में केवल 1 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। ऐसी विसंगति का तत्काल निवारण आवश्यक है। (संवाद)