भारत-पाक संबंध : अब भी अक्ल आ जाए तो बन जायेगी बात

पाकिस्तान के सियासी वायुमंडल की हवा इन दिनों कुछ बदली बदली है। पिछले दो दशकों में शायद यह पहला ऐसा मौका है, जब पाकिस्तान के राजनेता धीमी जुबान से ही सही स्वीकार कर रहे हैं कि भारत के साथ रिश्ते में उनसे अतीत में कई गलतियां हुई हैं, जिनके लिए शायद अब वे प्रायश्चित करने की हिम्मत जुटा रहे हैं। पाकिस्तान में हाल ही में सम्पन्न शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (एससीओ) की बैठक के दौरान जहां पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से लेकर दूसरे कैबिनेट मंत्रियों तक के सुर कुछ बदले बदले थे, वहीं एससीओ की मीटिंग के बाद तो पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए यह माना है कि पाकिस्तान ने पिछले 75 साल बर्बाद कर दिए हैं, इसलिए अब ज़रूरी है कि अगले 75 साल बर्बाद न हो। 
नवाज शरीफ ने माना कि इस समय भारत पाकिस्तान से बिजली खरीदने तथा दोतरफा कारोबार के लिए पहल कर रहा था। लेकिन हम उस मौके का फायदा नहीं उठा सके। पाकिस्तान के रूख में भारत को लेकर नरमी का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अपने बेबाक अंदाज में पाकिस्तान में रहते हुए ही न सिर्फ उसे बल्कि उसके दोस्त चीन को भी आईना दिखाया। लेकिन पाक प्रधानमंत्री ने धैर्य दिखाते हुए एस. जयशंकर को सुना, जब वह पाकिस्तान का नाम लिए बिना उस पर आतंकवाद को आश्रय देने का आरोप लगाया। साथ ही चीन का भी बिना नाम लिए उन्होंने उसकी विस्तारवादी मंशा और किसी देश की संप्रभुता का सम्मान न करने का आरोप लगाया। हालांकि भारतीय विदेश मंत्री ने एससीओ समिट में भाग लेने के लिए रवाना होने से पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि वह पाकिस्तान की द्विपक्षीय यात्रा पर नहीं जा रहे बल्कि एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन की बैठक में भाग लेने की औपचारिक यात्रा कर रहे है। 
इसके बावजूद न सिर्फ पाकिस्तान की मीडिया ने बल्कि पाकिस्तान की सरकार और उसके कई मंत्री अपने अपने स्तर पर भारत के विदेश मंत्री की इस यात्रा को रिश्तों में जमी बर्फ को पिघलाने वाली तथा नई संभावनाओं की उम्मीदों से भरपूर बताते रहे। जाहिर है पाकिस्तान मौका न होने के बाद भी भारत के साथ रिश्ते बेहतर बनाने का मौका ढूंढ़ने की कोशिश में लगा है। उसके लिए ऐसा करना स्वाभाविक भी है। आज पाकिस्तान दुनिया के उन कुछ गिने चुने देशों में से है, जिसकी आर्थिक स्थिति न सिर्फ बहुत खराब है बल्कि आने वाले दिनों में इसके और ज्यादा खराब होने तथा इस कारण उसके राजनीतिक और भौगोलिक अस्तित्व पर खतरे के बादल मंडराने की आशंका है।
पाकिस्तान की आर्थिक हालत बहुत खस्ता है। इस साल मार्च में पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार महज 808 करोड़ डॉलर था, जबकि भारत के महज एक दिन का आयात 2.15 अरब डॉलर है। भारत के पास पाकिस्तान से 7100 प्रतिशत ज्यादा विदेशी मुद्रा भंडार है। भारत एक महीने में अपने आयात पर जितनी विदेशी मुद्रा खर्च करता है, पाकिस्तान उतनी विदेशी मुद्रा पाने के लिए पिछले दो सालों से वैश्विक वित्तीय संस्थाओं के समक्ष गिड़गिड़ा रहा है और उनकी हर अपमानजनक शर्त को भी मानने को तैयार है। फिर भी अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने पाकिस्तान को महज इतना कर्ज ही दिया है कि जिससे पाकिस्तान अगले छह महीनों की अपनी देनदारियों की किश्त चुका पायेगा। इसके बाद उसकी फिर बुरी हालत होनी तय है। अगर भारत के साथ पाकिस्तान के आत्मीय पड़ोसी वाले या साझे अतीत वाले रिश्ते रहे होते तो शायद भारत उसे इससे कई गुना विदेशी मुद्रा बिना किसी अपमानजनक शर्त को थोपे बहुत मामूली ब्याज या संभव है बिना ब्याज के ही दे देता। जैसा कि हमने हाल के महीनों में श्रीलंका की लीक से हटकर मदद की है। 
चतुर से चतुर और स्मार्ट से स्मार्ट अपराधी भी अकेले में अपनी करतूतों से शर्मिंदा होता है। भले उसने सार्वजनिक रूप से अपना अपराध न स्वीकार किया हो, लेकिन अकेले में तो वह जानता ही होता है कि वह गुनाहगार है। पाकिस्तान की यही स्थिति है। अपने जन्म से अब तक के पिछले 75 सालों में उसने ईर्ष्या से हमेशा हमें बर्बाद करने के गुमान में रहा है और इससे खुद बर्बाद हो चुका है। पाकिस्तान के कई अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि 1947 से अब तक उसने भारत को अस्थिर करने के लिए हमारे यहां आतंकवाद का निर्यात करने में और कश्मीर को अपने घरेलू राजनीति और अपनी विदेश नीति का मोहरा बनाये रखने के लिए अरबों डॉलर खर्च करके खुद को बर्बाद कर चुका है। आज उसकी दुनिया के किसी भी कोने में न तो कोई हैसियत है और न ही इज्जत। यहां तक कि जिस पाकिस्तान ने समूची इस्लामिक दुनिया का अभिमान बनने के लिए घोषणा की थी कि वह घास की रोटी खा लेगा, लेकिन परमाणु बम ज़रूर बनायेगा और इसीलिए खुद पाकिस्तान ने तथा दुनिया के कई मुस्लिम देशों ने उसके परमाणु बम को इस्लामिक बम का नाम दिया।
लेकिन आज उसी पाकिस्तान के लोगों को इस्लामिक दुनिया के एक बड़े दावेदार यूएई ने वीजा देने पर प्रतिबंध लगा दिए हैं। पिछले कुछ महीनों में यूएई ने करीब 20,000 पाकिस्तानियों को अपने देश वापस भेजा है। पाकिस्तान की यह अपमानजनक स्थिति इसलिए बनी है कि वह पिछले सात दशकों में भारत को बर्बाद करने की जिद में कंगाल हो गया है। पाकिस्तान जिस चीन की उंगुलियों पर सिर्फ इसलिए पिछले कई दशकों से नाच रहा है कि चीन, भारत पर भारी पड़ता है, उस चीन ने भी पाकिस्तान को और कर्ज देने से मना कर दिया है तथा दिये गये कर्ज की समय पर हर हाल में किश्त चुकाने की चेतावनी दे दी है।
यहां तक कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री द्वारा एससीओ बैठक के दौरान दिये गये रात्रि भोज में प्रोटोकॉल बदलकर पाकिस्तान के विदेश मंत्री और कुछ दूसरे मंत्रियों को भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर के साथ बिठाया। दरअसल पाकिस्तान ये समझ गया है कि अगर भारत के साथ उसके अब तक के जैसे रिश्ते आगे भी रहे, तो दुनिया के नक्शे से उसका नामोनिशान मिट सकता है और अगर उसने हाथ पैर मारकर भारत के साथ रिश्ते किसी हदतक बेहतर बना लिए तो न सिर्फ उसका अस्तित्व बना रहेगा बल्कि बिगड़ी हुई आर्थिक स्थिति भी सुधर जायेगी। पाकिस्तान को समझ में आ गया है कि भारत से अब और आगे लड़ाई मोल लेना अपनी वजूद को खत्म कर लेना होगा। इसलिए वह रिश्ते बनाने की हर कोशिश में लगा है। अगर वाकई वह दिल से इस रिश्ते के लिए ईमानदार रहता है, तो सबकुछ खत्म नहीं हुआ। पाकिस्तान फिर से अपना अस्तित्व मजबूत कर सकता है। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर