भ्रष्टाचार-मुक्त समाज देश की बड़ी ज़रूरत
भ्रष्टाचार और महंगाई दो ऐसे सुरसा के खुले मुंह जैसे रोग हैं जो देश में बढ़ते ही जा रहे हैं और हर सरकार यह घोषणा करती है कि भ्रष्टाचार मुक्त शासन देगी और महंगाई नियंत्रित करेगी, पर जिस देश में आधे से ज्यादा सांसद, विधायक दागी हों, अरब पति हों और नोट देकर वोट खरीदते हों, वहां भ्रष्टाचार समाप्त करने की बात दिवास्वप्न जैसी ही लगती है। सबसे पहला भ्रष्टाचार तो वहां शुरू हो जाता है जहां चुनाव लड़ने वाले जो विवरण चुनावी खर्च का देते हैं, वहां 99 प्रतिशत प्रत्याशियों का चुनाव आयोग स्वीकार कर लेता है। कौन नहीं जानता कि धन बल, बाहुबल और शराब की नदियां बहाकर अधिकतर चुनावी संग्राम जीते जाते हैं। जीतने वाले और हारने वाले दोनों इन्हीं शस्त्रों का सहारा लेते हैं, पर पूरे देश में न महंगाई नियंत्रण में हुई और न भ्रष्टाचार।
वैसे यह हर दिन का समाचार है कि पुलिस के कनिष्ठ, वरिष्ठ बहुत से कर्मचारी पकड़े गए। नागरिक प्रशासन के लोग भी पकड़े गए और सत्ता पक्ष के कुछ कार्यकर्ता भी जो रिश्वत मांगते या बिचोलिये काम करते थे। यह भ्रष्टाचार को नकेल डालने का एक स्वस्थ प्रयास है। वैसे रिश्वत लेने वाले कुछ ज्यादा ही हिम्मत रखते हैं। यह देखने के बाद भी कि रिश्वत लेने वाले पकड़े गए, अपमानित हुए, जेलों में भेजे गए और उनकी रिटायरमेंट के सारे लाभ खत्म हो रहे हैं, फिर भी वे हिम्मत करके रिश्वत लेते हैं, लेकिन यह मानना पड़ेगा कि जब तक नैतिक मूल्यों की समाज में ज्यादा मान्यता नहीं होती, दंड से ही भ्रष्टाचार को रोकना कठिन होगा। यह लड़ाई अभी बहुत लंबी है। मैंने बार-बार यह लिखा है और समाज को यह संदेश देने का प्रयास किया है कि अगर देश की महिलाएं और परिवार के बच्चे यह तय कर लें कि वे सीमित साधनों में ही अपना गुजर बसर कर लेंगे तो रिश्वत लेने देने की बीमारी काफी कम हो जाएगी। मेरा यह भी मानना है कि अगर विवाह शादियों पर भारी खर्च और अमीरी का प्रदर्शन बंद हो जाए, तब भी कुछ ऐसे अधिकारी और कर्मचारी भ्रष्टाचार से दूर रहेंगे जो यह तर्क देते हैं कि बच्चों की शादी के कारण उन्हें अनुचित साधनों से धन कमाना पड़ता है।
राजस्थान के इतिहास में महारानी महामाया का बहुत सुंदर उदाहरण मिलता है। उसने यह तय कर लिया कि युद्ध में पीठ दिखा कर आए पति को किले में प्रवेश नहीं करने दिया जाएगा। इसका पूरा असर हुआ और पूरी शक्ति से शत्रुओं से जूझते हुए महाराजा जसवंत सिंह विजयी होकर वापस आए। इसी प्रकार अगर आज की महिलाएं, परिवारों के बच्चे यह संकल्प कर लें कि पिता, पति अथवा पुत्र द्वारा अनुचित साधनों से कमाया गया धन स्वीकार नहीं करेंगे तो अधिकतर लोग रिश्वत के मोह से बचेंगे। कुछ वर्ष पहले ही दिल्ली की एक अदालत ने रिश्वत लेने वाले अधिकारी की पत्नी को रिश्वत लेने के आरोप में दंडित किया था। भारतीय दंड संहिता की धारा 379, 380— जो अब बदल गई— के अंतर्गत चोरी का अपराध करने वाले को सजा होती है, पर साथ ही जो व्यक्ति जानते हुए भी कि वह जो वस्तु या धन संपत्ति स्वीकार कर रहा है, वह चोरी का माल है, उसे भी भारतीय दंड संहिता की धारा 411-पुरानी के अंतर्गत गिरफ्तार करके सजा दिलवाई जा सकती है।
अब इसका सीधा अर्थ यह है कि जो परिवार पति या परिवार के मुखिया द्वारा रिश्वत के रूप में लाई हुई धन संपत्ति को स्वीकार करता है, उसे भी सलाखों के पीछे किया जा सकता है। अगर इस धारा का सख्ती से पालन किया जाए तो बहुत से परिजन अपने परिवार के मुखिया को भ्रष्ट साधनों से धन कमाने से रोक लेंगे। जब तक इस देश के चुनाव लड़ने वाले नेताओं के परोक्ष धन स्रोतों का पता लगा कर सब कुछ पकड़ा नहीं जाएगा, तब तक प्रशासनिक क्षेत्र से रिश्वत बंद नहीं हो सकती। ट्रांस्फर करवाने और मन-चाहे पदों पर नियुक्ति पाने के लिए इस देश और समाज में चांदी के पहियों का सहारा लिया जाता है। जिस देश में डॉक्टर और इंजीनियर बनने के लिए लोगों को प्राइवेट कॉलेजों में मोटी रकम का चढ़ावा करके प्रवेश मिलता है, वहां नैतिकता का पाठ पढ़ाने का साहस भी कौन करेगा। हम आशा यह रखते हैं कि डॉक्टर भगवान का रूप बन जाएं, इंजीनियर मजबूत निर्माता बनें, पर कोई सरकार उस तंत्र के लिए मुंह खोलने को भी तैयार नहीं जिसमें डॉक्टर और इंजीनियर बनने से पहले प्रवेश के लिए ही एक करोड़ रुपये से भी ज्यादा देना पड़ता है। कभी स्कूलों में लिखा होता था, सीखने के लिए आइए और सेवा के लिए जाइए। अब तथाकथित पब्लिक स्कूलों में बच्चों के अभिभावकों को हजारों रुपये देकर ही स्कूल की दहलीज के अंदर प्रवेश मिलता है। पहले प्रवेश के लिए नोट बरसाओ, फिर ग्रेस मार्क्स पाने के लिए चढ़ावा दो, इसके बाद टॉपर बनने के लिए टॉप में बैठे लोगों की कृपा प्राप्त करने के लिए सभी उचित अनुचित साधनों का प्रयोग करो। व्यवसायिक प्रशिक्षण देने वाले बहुत से प्राइवेट संस्थानों को मान्यता दिलवाने के लिए भी मान्यवरों का नौ ग्रहों की तरह पूजन करना पड़ता है।
कभी भी न भूल सकने वाला दिल्ली के बांसल परिवार का दुखद प्रसंग यह है कि एक आईएएस अधिकारी बांसल रिश्वत के आरोप में गिरफ्तार किया गया। उसकी पत्नी को भी जांच एजेंसियों ने अमानवीय यातनाएं दीं, ऐसा उनका आरोप था, किन्तु यह साबित नहीं हो सका कि उन्होंने अपराध किया या नहीं। इस पर पहले बांसल की पत्नी और पुत्री ने और बाद में बांसल पिता पुत्र ने दुखी होकर आत्महत्या कर ली। उसकी पत्नी का वक्तव्य यह था कि यातना देते हुए उन्हें यह बार-बार कहा गया कि इतना तंग करेंगे कि वह मौत मांगेगी, पर मौत नहीं मिलेगी। यह कानून व्यवस्था और जांच एजेंसियों के रंग ढंग पर एक बहुत बड़ा द़ाग है, परन्तु इस घटना का सबक यह है कि भ्रष्टाचार की पहरेदारी परिवारों को भी करनी चाहिए।