सदियों का सन्देश

मिथिहास एवं इतिहास का सुमेल दिवाली एक ऐसा त्यौहार है, जिसे रौशनी से जोड़ा जाता है। यह रौशन दिवस दिल में रौशनी पैदा करने के समर्थ है। यह खुशी एवं उल्लास का त्यौहार है। भगवान श्री राम के लम्बे वनवास के बाद अयोध्या नगरी लौटने पर लोगों ने खुशी में दीप जलाये थे। दीपों की ऐसी रौशनी सदियों से लोगों के मन में प्रेरणा का स्रोत बनी रही है। भगवान श्री राम मर्यादा पुरुष थे। सर्वगुण सम्पन्न थे। ऐसी आदर्श शख्सियत थे, जिसे उदाहरण के तौर पर सदियों से पेश किया जाता रहा है। उनकी ओर से अपनाये सिद्धांतों ने हज़ारों वर्ष का स़फर तय किया है। आज भी भगवान राम के जीवन को मानवीय आदर्शों के साथ जोड़ा जाता है। सच्चा एवं स्वच्छ जीवन व्यतीत करना, अपने वचन पर पहरा देना, लगन एवं सहनशलीता वाली ज़िन्दगी व्यतीत करना तथा मानवता की भलाई को समर्पित होने की शिक्षा राम गाथाओं से मिलती है। सिख पंथ में यह दिन बंदी छोड़ दिवस के रूप मनाया जाता है। जहांगीर के शासनकाल में इस दिन छठे पातशाह श्री गुरु हरगोबिन्द सिंह साहिब 52 राजाओं को ग्वालियर के किले से अपने साथ रिहा करवा कर श्री हरिमंदिर साहिब पहुंचे थे, जहां उनके स्वागत में दीपमाला की गई थी।
सदियों से मनुष्य के साथ नैतिक मूल्यों को धारण करने तथा अत्याचार का विरोध करने जैसे आदर्श जुड़े रहे हैं। दूसरी तरफ अहंकार, ईर्ष्या तथा लालच भी मनुष्यों की जीवन का हिस्सा बने रहे हैं। इन गुणों एवं अवगुणों से मनुष्य ने किस ओर जाना है, इसका चयन उसने स्वयं ही करना होता है। मां ने बचपन से शिक्षा देनी है। अध्यापकों ने बच्चे के चरित्र को बनाना एवं संवारना है। सदियों से चली आती अच्छाई एवं बुराई की लड़ाई में मानवीय आदर्श अच्छाई को अपनाने वाले की ओर ही रहे हैं। मानवीय सभ्यता के शुरू से ही सुखद जीवन जीने की उम्मीद के साथ-साथ विनाशकारी युद्ध भी चलते रहे हैं। समय-समय पर मनुष्य की लालसा एवं लालच ने शक्तिशाली को हमलों के लिए उकसाया तथा दुर्बल उनका आहार बनते रहे हैं। ज़िन्दगी के इस कारवां में बहादुरी, रूहानी एवं मानवता को समर्पित भावनाओं को ही प्राथमिकता दी जाती रही है। ऐसा कुछ ही भारतीय समाज अपनी इन महान कथाओं से सीखता रहा है।
इसलिए दीवाली का त्यौहार ऐसे उत्साह का स्रोत बना रहा है, परन्तु आज जो कुछ हमारे समाज में घटित हो रहा है, वह इस भावना के विपरीत है, जिसे अनदेखा करने को ही प्राथमिकता दी जानी चाहिए। रौशनियों का यह त्यौहार मानवीय-मनों को रौशन करने के समर्थ हो सके और अन्धेरों को दूर करने में सहायक हो सके। आदर्श मनुष्यों के जीवन से प्रेरणा  ली जा सके तथा एक उत्तम समाज का निर्माण किया जा सके। ऐसे उद्देश्य ही आज मानवीय समाज की प्राथमिकता बनने चाहिएं। ऐसे उद्देश्य ही मन को रौशन करने के समर्थ हो सकते हैं, परन्तु आज का मनुष्य जहां पहुंच चुका है, वहां पदार्थवाद ही उसकी प्राथमिकता बनी दिखाई देती है, जिसमें रूहानियत का स्थान एवं महत्त्व बेहद कम हो गया महसूस होता है। ऐसी स्थिति मनों में अधिक निराशा को जन्म देने वाली होती है। ज़रूरत ऐसी निराशा को आशा में बदलने एवं सच्ची एवं स्वच्छ मानवीय नैतिक मूल्यों को अपनाने की होनी चाहिए। सदियों से यह दिन मनुष्य को ऐसा ही सन्देश देता आ रहा है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द