बाल विवाह रोकने के लिए मिसाल बनी लड़की
समाज का एक कड़वा और असहनीय सच बाल विवाह। खुद को ‘मार्डन’ कहलाते ऐसे समाज के लोगों के लिए यह बात हज़म करनी आसान नहीं है कि अभी भी बाल विवाह हो सकते हैं? हम सोचते हैं, यह पुराने समय की बातें हैं और अब ऐसा कुछ नहीं हो सकता, लेकिन वास्तविकता यह है कि अभी भी हमारे समाज के वह लोग जो अंधेरे में रह रहे हैं, जैसे सूर्य की किरण उन तक न पहुंची हो, वह बाल विवाह को प्राथमिकता दे रहे हैं।
जब किसी लड़की को 18 वर्ष की आयु से पहले विवाह के बंधन में बांधा जाए, उसे बाल विवाह कहते हैं।
हालांकि इस प्रथा में पहले से ऐसा अमल बहुत कम हुआ है। लोग जागरूक हुए हैं परन्तु अभी भी देश में हर पांच में से एक लड़की का बाल विवाह होता है। बाल अधिकारों की रक्षा के लिए बने राष्ट्रीय कमिशन (National Commission for Protection of Child Rights) की रिपोर्ट के अनुसार 28 प्रदेशों व 8 केन्द्र शासित प्रदेशों में 11.5 लाख बच्चे बाल विवाह करके नाज़ुक स्थिति के शिकार हैं। भाव ये बच्चे स्कूल में नहीं पढ़ते। संयुक्त राष्ट्र संघ का पूरी दुनिया में 2030 तक बाल विवाह को खत्म करने का लक्ष्य है।
बाल विवाह लड़के-लड़की के बीच किए जाते भेदभाव का परिणाम है। गरीबी, दहेज, धार्मिक और सामाजिक दबाव और अनपढ़ता आदि यह सोच कि लड़कियां काम नहीं कर सकतीं, ये बातें अभिभावकों को बाल विवाह की ओर प्रेरित करती हैं।
बाल विवाह से बच्चों का बचपन उनसे छीन लिया जाता है, उनकी पढ़ाई छुटने से उनकी ज़िंदगी रूक जाती है, उनके आर्थिक और स्वास्थ्य के पक्ष से हालात बहुत बुरे हो जाते हैं। कई बच्चियां छोटी आयु में मां बन जाती हैं। बहुत शारीरिक और मानसिक उलझनें पैदा हो जाती हैं। इस सारी प्रक्रिया में लड़कियां अपने परिवार, सहेलियों के साथ से दूर हो जाती हैं, जिसका गहरा प्रभाव उनके मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है।
पूर्व च़ीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ व जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और मनोज मिश्रा (Chief Justice D.Y. Chandrachud and Justice JB Pardiwala and Manoj Misra) पर आधारित बैंच ने कुछ समय पहले हिदायतें जारी की थीं कि बाल विवाह रोकने के कानून सख्ती से लागू किये जाएं।
हम सभी समाज की इस कड़वी सच्चाई से तब तक दूर होते हैं, जब तक हमें समाज को निकट से देखने का मौका नहीं मिलता।
यह लेख लिखने से कुछ दिन पहले तक मैं भी यही सोचती थी कि पंजाब जैसे राज्य में जहां लोग अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए ज़मीनें तक बेच कर उनको विदेश भेजते हैं, वहां बाल विवाह जैसी सोच आम आदमी की नहीं हो सकती, लेकिन पिछले दिनों सामने आए एक मामले का ज़िक्र करना ज़रूरी है जो कागज़ों में नहीं बल्कि हकीकत में है।
सुषमा (काल्पनिक नाम) पंजाब के एक शहर में 7वीं कक्षा में सरकारी स्कूल में पढ़ती थी। बहुत ही मेहनती, कक्षा में अव्वल आने वाली सुषमा को जब यह पता चला कि उसके मां-बाप उसका विवाह करवाने लगे हैं तो जैसे एक पल में उसके सपनों और ऊंचा उड़ने की उसकी इच्छा पर पानी फिर गया, लेकिन क्योंकि वह हिम्मती और जज़्बे वाली थी, उसके द्वारा अपने मां-बाप के पास विवाह न करवाने के बारे में अपना पक्ष रखा गया, लेकिन उसकी एक न सुनी गई। उसकी हिम्मत यहां टूटी नहीं बल्कि अपने हक के लिए संघर्ष करना उसके मन में और पक्का हो गया। सुषमा ने अपने स्कूल की प्रिंसीपल को पत्र लिखकर इस बात से अवगत करवाया, बहुत ही अच्छा कदम उठाते प्रिंसीपल ने बाल विभाग को शिकायत की और उन्होंने लड़की को उसकी मर्जी से बच्चों की देखभाल करने वाली एक संस्था में भेज दिया। उस संस्था ने सुषमा को इतना बढ़िया और हिम्मत वाला कदम उठाने के लिए बधाई दी और पढ़ा-लिखा कर उसका भविष्य संवारने का वायदा किया है। सुषमा की तरह हर लड़की इतना जज़्बा और हिम्मत नहीं दिखा सकती और परिवार के दबाव में आकर वह अपनी ज़िंदगी बाल विवाह के नाम कर देती है।
सच में बहुत कुछ करने की ज़रूरत है, जिसके लिए अंतर्राष्ट्रीय संस्थायें, सरकारों, धार्मिक संगठनों को इकट्ठे होने की ज़रूरत है क्योंकि बाल विवाह की कुरीति हर संस्कृति, स्थान, हालात और और वर्ग को अलग-अलग ढंग से प्रभावित करती है। इसलिए इसका हल एक नहीं हो सकता, अलग-अलग परिणाम निकालने पड़ेंगे। बच्चों की पढ़ाई से लेकर प्रत्येक तरह की सहायता उन परिवारों को देनी लाज़िमी है जो लड़की का बोझ उठा नहीं पाते। आम जनता की सोच और विचार बदलने पड़ेंगे।
हमारे कानून में नीतियां, जो शिक्षा, आर्थिक और सामाजिक मौके पर विवाहित और कुंवारी लड़कियों के लिए यकीनी बनाने, उनको लागू करवाना बहुत ज़रूरी है। सरकारों को स्कूलों में इस कुप्रथा के बारे में शिक्षित करना पड़ेगा ताकि लड़कियां सुषमा की तरह ठोस कदम उठा सकें।
समय बहुत बदल गया है, समाज बहुत बदला है, लेकिन पूरी तरह नहीं। अंतत: हम सभी बाल विवाह की प्रथा रोकने के लिए शिक्षा व सख्ती के साथ कदम उठाएं, ताकि देश-विदेश में पंजाब का नाम बाल विवाह के खात्मे के मामले में सभी प्रदेशों से ऊपर आए।