नकली दवाइयों का बढ़ता कारोबार
देश में नकली दवाइयों की बिक्री का मामला एक बार फिर व्यापक रूप से चर्चा में है। इस बार यह मुद्दा दर्द-निवारक और संक्रमण-रोधी अर्थात ऐंटी-बायोटिक औषधियों को लेकर गर्माया है। केन्द्रीय औषधि-माणक नियंत्रण संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार समाप्त हो रहे वर्ष 2024 में दर्द और पीड़ा का निवारण करने में सहायक होने वाली दवाइयों, विभिन्न संक्रमण-रोधी औषधियों और मधुमेह पर अंकुश लगाने वाली कई दवाइयों के नमूने सैंपल माणक गुणवत्ता अर्थात निर्धारित नियमों की कसौटी पर फेल सिद्ध हुए हैं। यहां तक कि संगठन ने इन औषधियों को नकली करार दिया है। यह भी इस रिपोर्ट का एक चिन्तनीय पक्ष है कि इस शीर्ष औषधि-नियंत्रण एजेंसी ने ऐसी शिकायतें मिलने पर कुल 618 दवाओं और सम्बद्ध औषधियों को परख हेतु चिन्हित किया था, किन्तु इनमें से अधिकतर दवाएं कसौटी के किसी भी माणक पर पूरा नहीं उतर सकीं। इनमें से कई औषधियां ऐसी हैं, जिन्हें बाकायदा घोषित एवं स्वीकृत किये गये फार्मूले के आधार पर तैयार किया गया बताया जाता है। इन दर्द-निवारक दवाओं का उपयोग अक्सर विभिन्न रोगों एवं घावों से उपजने वाली पीड़ा को हरने के लिए किया जाता है, और यह भी कि इनमें से कई औषधियां मरीज़ के लिए जीवन-रक्षक भी सिद्ध होती हैं। ऐसे रोगों में सिरदर्द यानि माईग्रेन, तीव्र ज्वर अर्थात बुखार आदि शामिल हैं। किसी भी आशंकित संक्रमण अथवा जुकाम के बचाव हेतु इन दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है। आश्चर्य की बात यह भी है कि अरबों रुपयों के वार्षिक कारोबार वाली इन कम्पनियों के कानों पर इस सब कुछ के बावजूद जूं तक नहीं रेंगी है। इन औषधियों का एक मास का राजस्व दवा उद्योग के कुल राजस्व के तीसरे भाग के तौर पर 25,672 करोड़ रुपए तक पहुंच जाता है।
इस सम्पूर्ण मामले को लेकर एक त्रासद पक्ष यह भी है कि इस पूरी कवायद के बावजूद अधिकतर कम्पनियों ने इस विफलता का दायित्व स्वीकार करने से स्पष्ट इन्कार कर दिया है। कई कम्पनियों ने तो यहां तक कह दिया है कि ये औषधियां उनके द्वारा निर्मित हैं ही नहीं। इसका अभिप्राय यह भी निकलता है कि विश्व की तीसरी बड़ी वित्तीय शक्ति बनने का दावा करने वाले 140 करोड़ की आबादी वाले देश में इतनी महत्त्वपूर्ण औषधियां नकली माल के तौर पर बिक रही हैं, और इन कम्पनियों के कारोबार का निरीक्षण करने वाली सरकारी एजेंसियों के पास इन पर अंकुश लगाने अथवा इनका पता चलाने तक की फुर्सत और सामर्थ्य नहीं बची है। प्रश्न यहां यह भी उपजता है कि आखिर इन कम्पनियों को इनके निर्माण अथवा सम्मिश्रण का लाईसैंस कैसे मिल गया, और यदि बाज़ार में बिकने वाला सम्पूर्ण माल नकली है, तो इनका अपना उत्पादन कहां गया? और फिर भारतीय औषधि बाज़ार के कुल राजस्व के तीसरे हिस्से तक इनकी कमाई कैसे पहुंच गई? बहुत स्वाभाविक है कि देश की नियंत्रण एजेंसियां और प्रयोगशालाओं के बीच कहीं न कहीं कोई अपराध सूत्र अवश्य जुड़ा है। यह भी कि दवाओं पर नियंत्रण करने वाली सरकारी संस्थाएं क्या इतनी कमज़ोर हैं कि व्यापक स्तर पर बिकते असली और नकली माल का पता भी नहीं लगा सकतीं।
इस बड़ी समस्या का एक दुखद पक्ष यह भी है कि प्राय: अस्पतालों में अधिकतर डाक्टर इस समस्या की भनक लगने के बावजूद, इन औषधियों का इस्तेमाल करने को विवश होते हैं क्योंकि उन्हें अपने मरीज का उपचार करके उन्हें आराम देना होता है, हालांकि कई बार ऐसा भी हुआ है कि किसी औषधि के विपरीत-प्रभावी हो जाने पर उसका खमियाज़ा भी सम्बद्ध मरीज़ अथवा डाक्टर को भुगतना पड़ता है। ऐसी समस्याएं इससे पूर्व भी कई बार दरपेश हो चुकी हैं, किन्तु आश्चर्य है कि सरकारें इस नकली कार्य-व्यापार पर अंकुश लगा पाने में फिर भी कामयाब नहीं हो सकी हैं। आश्चर्य तब और घना होता है जब परीक्षण में नमूने फेल सिद्ध हो जाने के बाद कम्पनियां इनका स्वामित्व स्वीकार करने से मौका पर ही इन्कार कर देती हैं, और कि मामले की फाईल अपने आप धूल फांकने लगती है।
हम समझते हैं कि नि:संदेह यह एक बहुत गम्भीर मामला है, और कि इस पर तत्काल रूप से प्रभावी प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिए। यह भी कि जन-साधारण और खास तौर पर रोगियों के जीवन से खिलवाड़ करते ऐसे कारोबार के साथ कठोर आपराधिक कानूनों के तहत निपटा जाना चाहिए। हम यह भी समझते हैं कि यदि इस आपराधिक कारोबार में कोई सरकारी एजेंसी अथवा अधिकारी चाहे वह कितना भी बड़ा और प्रभावी क्यों न हो, संलिप्त पाया जाता है, तो उसके विरुद्ध भी कठोर कार्रवाई होनी चाहिए। इससे एक ओर जहां रोगियों के जीवन से होते खिलवाड़ को रोका जा सकेगा, वहीं डाक्टरों पर पड़ने वाले विपरीत-प्रभावी परिणामों के दबाव पर भी अंकुश लगाया जा सकेगा। इससे वे निश्चिन्त होकर अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन कर सकेंगे। इससे सरकारी राजस्व में वृद्धि होगी, और इस कारण उपजने वाले काले धन के प्रवाह को भी रोका जा सकेगा। हम समझते हैं कि यह कार्य जितनी शीघ्र और जितने प्रभावी ढंग से लागू होगा, उतना ही इस देश की सेहत के लिए अच्छा रहेगा।