जलवायु परिवर्तन से निपटने में भारत का प्रदर्शन बेहतर

जलवायु परिवर्तन का समाधान निकालने की दिशा में भारत सरकार के अनेक और अथक प्रयासों का प्रभाव दिखने लगा है। शीर्ष पांच देशों में हमें स्थान मिलना दिखाता है कि हमने जलवायु परिवर्तन से निबटने के उपायों, अक्षय ऊर्जा क्षेत्र के कार्यक्रमों को संसार के किसी भी देश की तुलना में ज्यादा सफलता और कुशलता से लागू किया है। जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना, हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने के लिये राष्ट्रीय मिशन, जलवायु परिवर्तन के लिये रणनीतिक ज्ञान पर राष्ट्रीय मिशन, जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय अनुकूलन कोष जैसे सम्मिलित प्रयासों का यह सुखद परिणाम है। दुनिया के सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जकों की प्रगति का आकलन करने वाले थिंकटैंक जर्मन वॉच, न्यू क्लाइमेट इंस्टिट्यूट और क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क इंटरनेशनल को क्लाइमेट चेंज परफॉर्मेंस इंडेक्स सूचकांक जारी करने तक जब इस क्षेत्र में समग्रता के साथ प्रत्येक क्षेत्र में सर्वोत्तम प्रयास करने वाले देश नहीं मिले तो ऊपर के तीन स्थानों को छोड़ना पड़ा। चौथे पायदान पर डेनमार्क और फिर एस्टोनिया छठे पर फिलीपींस और तब भारत। अर्थात जलवायु परिवर्तन से निपटने की दिशा में बेहतर प्रदर्शन करने वाले देशों की सूची में ऊपरी पांच देशों में है भारत। यह उपलब्धि सतत सरकारी प्रयास का परिणाम है। 2014 में इस सूचकांक में हमारा दर्जा 31वां था तो 2019 में हमने शीर्ष 10 देशों में जगह बना ली थी। पिछले बरस हम आठवें नम्बर पर थे तो इस बार और ऊपर चढ़ कर सातवें स्थान पर पहुंच गये हैं, जिसे पांचवां भी कह सकते हैं। 
इस सूचकांक श्रेणी का महत्व यों समझें कि ग्रीनहाउस गैस के दो सबसे बड़े उत्सर्जकों चीन और अमरीका क्रमश: 55वें और 57वें स्थान पर हैं, तो ईरान, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और रूस भी फिसड्डी देशों में दर्ज हैं। सीसीपीआई रैंकिंग में भारत शीर्ष 10 देशों में एकमात्र जी-20 राष्ट्र है। हमें ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी और ऊर्जा उपयोग श्रेणियों में बेहतर रेटिंग मिली। जलवायु नीति और नवीकरणीय ऊर्जा के मामले में भी हमारा प्रयास सराहनीय माना गया। रिपोर्ट में उम्मीद की गई कि सरकार जलवायु कार्रवाई को लेकर विकासोन्मुखी दृष्टिकोण जारी रखेगी। जलवायु नीति में भी अतिरेकी बदलाव की आशंका नज़र नहीं आती। कुल मिलाकर जलवायु परिवर्तन से निपटने में भारत के हालिया प्रदर्शन से ऐसा लगता है कि हम अपने 2030 के उत्सर्जन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए सही रास्ते पर हैं। देश में प्रति व्यक्ति औसतन कार्बन उत्सर्जन तीन टन पर बना हुआ है, जो वैश्विक औसत तकरीबन सात टन से काफी कम है। जलवायु परिवर्तन से निपटने में लगातार सक्रिय और सफल भारत बेशक अब अपनी जलवायु परिवर्तन की शमन नीतियों से जी-20 देशों और दुनिया का मार्गदर्शक बनने का अधिकारी है। ऐसे में जलवायु परिवर्तन से संबंधित सम्मेलनों में उसका विकासशील देशों के पक्ष में मज़बूती से खड़े होना और विकसित देशों के गैर-ज़िम्मेदार रवैये के खिलाफ  मुखर होना अपेक्षित ही है।
ऐसे 63 देश जो इस समस्या के लिये उत्तरदायी उत्सर्जन का 92 फीसदी से ज्यादा उत्पन्न करते हैं और इसको कम करने का प्रयास भी, यूरोपीय संघ समेत ऐसे 60 से अधिक देशों की इस सूची में भारत ने चीन, अमरीका जर्मनी, जापान, सबको पछाड़कर क्लाइमेट चेंज परफॉर्मेंस इंडेक्स यानी सीसीपीआई 2024 में ऊंचा स्थान हासिल किया है। भारत के प्रयासों को पहचाना गया, प्रशस्ति मिली, प्रतिष्ठा बढ़ी, एक भारतीय होने के नाते नि:संदेह सबको प्रसन्नता  होगी पर इस के साथ कई प्रश्न भी हैं जिनके उत्तर आवश्यक हैं। देश में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन आज भले ही कम हो पर बढ़ती आबादी और चौतरफा विकास के साथ ऊर्जा की बढ़ती खपत के लिए हम काफी हद तक जीवाश्म ईंधनों, कोयला, तेल और गैस पर ही निर्भर हैं। यह निर्भरता ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन तथा मारक प्रदूषण की वजह है। ऐसे में भविष्य में जलवायु परिवर्तन के लिये सबसे बड़े दोषी ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन पर भारत प्रभावी रोक कैसे लगा सकेगा? वायु गुणवत्ता के मामले में भारत 180 देशों में 176वें स्थान पर है। संसार में जीवाश्म ईंधन के बरअक्स स्वच्छ ऊर्जा पर दोगुना से अधिक धन निवेश किया जा रहा है,पर हम ऐसा नहीं कर पा रहे। रीन्यूवेबल एनर्जी के स्रोतों के बढ़ावा देने के बावजूद उम्मीद की जाती है कि वर्ष 2025 तक भारत ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में मामले में 172वें स्थान पर ही होगा। अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में भी विकास अभी भी बेहद सुस्त है वह तेज़ कैसे होगा? 
जलवायु परिवर्तन से उपजी प्राकृतिक आपदाओं ने देश को 1998-2017 के बीच लगभग 8,000 करोड़ डॉलर की आर्थिक क्षति पहुंचाई, बीते दशक में आर्थिक नुकसान दोगुना हो गया जिसके और बढ़ने की आशंका है इससे पार पाने का क्या उपाय हैं? क्योंकि इसकी वजह से उपजी आर्थिक कमी दूसरे विकास कार्यों का रफ्तार रोकेगी। अनियोजित शहरीकरण इस समस्या का प्रमुख खलनायक है, इस पर रोक की रणनीति क्या होगी?  तापमान वृद्धि का सबसे बुरा असर गरीब देशों पर होगा क्योंकि उनके पास जलवायु परिवर्तन को अनुकूल बनाने के लिए पैसे नहीं। भले देश विश्व की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाये पर जलवायु परिवर्तन शमन के लक्ष्य प्राप्ति हेतु प्रतिवर्ष अतिरिक्त 160 अरब अमरीकी डॉलर का निवेश भारी पडेगा। यह कहां से आयेगा? इन सवालों पर भी हमें गंभीरता से सोचना होगा। इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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